बलिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक प्रो रामकृष्ण उपाध्याय ने दीनदयाल जी के स्मृति दिवस के अवसर पर आगामी 13 फरवरी को जननायक चन्द्रशेखर विद्यविद्यालय के सभागार में “विकसित भारत 2047 विषयक संगोष्ठी को लेकर रविवार को प्रेसवार्ता की। उन्होंने संगोष्ठर के महत्व को बताते हुए कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने हमेशा भारत के लिए एक विकसित, वैभवशाली एवं गौरवपूर्ण राष्ट्र की कल्पना की थी। विकसित राष्ट्र ऐसे होते हैं जहाँ प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है, सकल घरेलू उत्पाद का स्तर ऊँचा होता है, जीवन स्तर उच्च होता है, देश की आपारभूत संरचना विकसित होती है, गरीबी और बेरोजगारी का स्तर कम होता है एवं नवीन तकनीकी सम्पन्न होता है।
विकसित राष्ट्र को अक्सर उनके शिक्षित आबादी, उन्नत प्रौद्योगिकी, उच्च स्तर का शहरीकरण, उच्च मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) और स्थिर अर्थव्यवस्था से पहचाना जाता है। दीनदयाल जी, भारत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, पत्रकार और ख्यातिलब्ध चिन्तक थे। उन्होंने भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए एकात्म मानववाद, समाजिक समरसता, अन्त्योदय एवं आत्मनिर्भरता दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया। दीनदयाल जी भारतीय संस्कृति, धर्म, और आध्यात्मिकता से अत्यधिक प्रभावित थे। उनका मानना था कि एक समृद्ध और सशक्त भारत केवल अखंड मानववाद के माध्यम से ही संभव है। उन्होंने समाज में समरसता, सामाजिक न्याय, और समानता को प्रमुख माना। विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए आर्थिक लोकतंत्र को सच्चे प्रजातंत्र के लिए वे आवश्यक मानते थे। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर एवं गौरवपूर्ण बनाने के लिए स्वदेशी और अन्त्योदय को महत्वपूर्ण माना। उन्होंने बताया की भारत गांवों का देश है, बिना ग्रामोदय के राष्ट्रोदय संभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योगों के साथ साथ परस्परावलंची एवं परस्परपूरक क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल दिया । प्रेस वार्ता के समय प्रमुख रूप से – विनय कुमार सिंह, हरिनरायन राय, राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, प्रवीण प्रत्लप सिंह उपस्थित थे।