- बिना खाद्य सुरक्षा लाइसेंस के ही संचालित हैं ज्यादातर शराब की दुकानें
- लाइसेंस को लेकर दोनों विभागों में अब तक नहीं बनी सहमति,खाद्य सुरक्षा अधिनियम में अल्कोहल भी है शामिल
- एफएसएसएआई ने 01अप्रैल, 2019 से अल्कोहलिक खाद्य व्यवसाय संचालकों के लिए लाइसेंस लेना कर दिया है अनिवार्य
लखनऊ। सरकार के दो विभाग एक फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन और दूसरा आबकारी विभाग। दोनों को शराब में मिलावट रोकने के लिए सैंपलिंग के अधिकार दिए गए हैं। हालात यह हैं कि दोनों ही विभाग इसमें रुचि नहीं ले रहें हैं। खानापूर्ति के लिए एक्का-दुक्का सैंपल लिए जाते हैं, लेकिन इनकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं होती है।राजधानी में 87 अंग्रेजी और देशी शराब की दुकानें संचालित हो रही हैं,लेकिन एक भी कारोबारी ने अब तक फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के नियमों के तहत फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से फूड लाइसेंस नहीं लिया है।
यही स्थिति प्रदेश में अन्य शराब कारोबारियों की भी है। ये लाइसेंस लेते नहीं और न ही फूड इंस्पेक्टर सैंपल लेते हैं।जबकि नकली एवं मिलावटी शराब की बिक्री न हो , इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार ने फूड सेफ्टी एक्ट में में बदलाव किया था। एफएसएसएआई ने 2018 में व्हिस्की, ब्रांडी, जिन, रम, वोदका, बीयर, वाइन और शराब जैसे मादक पेय पदार्थों के लिए मानकों को परिभाषित किया और 01अप्रैल, 2019 से अल्कोहलिक खाद्य व्यवसाय संचालकों के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया। यह एक्ट लागू होने के बाद खाद्य सुरक्षा प्रशासन को शराब के सैंपल लेने के जहां अधिकार दिए गए , वहीं शराब कारोबारियों को फूड लाइसेंस अनिवार्य कर दिया गया। शराब दुकानों की निगरानी की जिम्मेदारी केवल आबकारी विभाग के पास थी। ऐसे में अवैध शराब पर तो कार्रवाई होती थी , लेकिन नकली या मिलावटी शराब पर कार्रवाई कम ही होती थी। खाद्य एवं औषधीय नियंत्रक कार्यालय से फूड लाइसेंस लेने के बाद वह कभी भी संबंधित शराब दुकान पर सैंपलिंग की कार्रवाई कर सकता है। मिलावटी शराब मिलने पर सजा का और लाइसेंस नहीं मिलने पर दस लाख तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
बता दें कि यूपी के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने इस साल 31 मार्च 2022 को सभी जिलाधिकारियों और उत्पाद शुल्क विभाग को एफएसएसएआई द्वारा बनाए गए नियमों को लागू करने के लिए कहा था। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के आदेशों का अनुपालन कराने के लिए लखनऊ के तत्कालीन डीएम अभिषेक प्रकाश ने 25 अप्रैल 2022 को जिला आबकारी अधिकारी को लाइसेंस प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करने के लिए पत्र जारी किया था।उन्होंने मीटिंग में आबकारी विभाग को आदेश भी दिए थे कि अनुज्ञापी को खाद्य सुरक्षा विभाग का लाइसेंस लेने के लिए बाध्य करें।उन्होंने यह भी कहा था कि अब शराब की दुकानों के चालान की कार्रवाई की जाएगी। किसी भी हालत में बिना लाइसेंस के शराब दुकान नहीं चलने दी जाएगी।
वहीं 4 मई 2022 को लखनऊ के तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी सुशील मिश्रा ने कहा था कि आबकारी निरीक्षकों की टीम को नियमों को लागू करने और खुदरा विक्रेताओं को खाद्य सुरक्षा लाइसेंस प्राप्त करने के लिए कहने को कहा गया है। हम शराब वितरण श्रृंखला में शामिल ट्रांसपोर्टरों और अन्य हितधारकों को कवर करेंगे।श्री मिश्रा ने यह भी कहा था कि समग्र उद्देश्य व्यवसाय में शामिल हितधारकों की जवाबदेही बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है, कि खुदरा काउंटरों के माध्यम से केवल वैध स्टॉक ही बेचा जाए।01अप्रैल 2019 से एफएसएसएआई द्वारा अल्कोहलिक खाद्य व्यवसाय संचालकों के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिए जाने के बाद भी बाद भी राजधानी लखनऊ ही नहीं बल्कि समूचे प्रदेश में खाद्य सुरक्षा विभाग व आबकारी विभाग में लाइसेंस को लेकर सहमति न बनने से शासन के आदेशों पर अमल नहीं हो रहा है।राजधानी लखनऊ की कुल 1046 शराब दुकानें हैं। इनमें ज्यादातर दुकानदारों ने खाद्य विभाग से लाइसेंस नहीं बनवाया है। आबकारी विभाग को शराब कारोबार में खाद्य सुरक्षा विभाग का दखल रास नहीं आ रहा है। दोनों विभागों में इसे लेकर फिलहाल सहमति नहीं बन पा रही है। इससे लाइसेंस को लेकर शासन का आदेश रद्दी की टोकरी में पड़ा है। अधिकांश दुकानें बिना खाद्य सुरक्षा विभाग के लाइसेंस के संचालित हो रही हैं।
जहरीली शराब की बिक्री रोकने के लिए बनाया था नियम
जहरीली शराब पीकर मौत की घटनाएं समय-समय पर सामने आती रहीं हैं। नशा बढ़ाने के लिए शराब में खतरनाक रसायन मिलाए जाने का कारोबार धड़ल्ले से चलता है। जहरीली शराब से मौत की घटनाओं के बाद जांच की औपचारिकता पूरी की जाती थी। खाद्य विभाग जहरीली शराब बिक्री को रोक सके, इसलिए शासन ने यह नियम बनाया गया था।
शराब के अलग-अलग मानक
श्रेणी के अनुसार शराब के अलग-अलग मानक तय किए गए हैं। उनमें अल्कोहल के अलावा अन्य पदार्थों की मात्रा भी निर्धारित की गई है। इससे अधिक या कम मात्रा होने पर दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान होगा। अफसरों के अनुसार दुकानों से लिए गए नमूनों की जांच खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के लैब में होगी।
मिलावट की सबसे अधिक शिकायतें
सूत्रों की मानें तो लखनऊ समेत पूरे प्रदेश भर में देशी और अंग्रेजी शराब में मिलावट की शिकायतें सबसे अधिक पहुंचती हैं। इसके अलावा लोअर रेंज की शराब को लेकर भी शिकायत जिम्मेदारों को मिलती हैं । खासबात यह है कि इन शिकायतों के बाद भी कभी इनके सेंपल नहीं होते हैं । करीब दो साल पहले इंदौर सहित अन्य जिलों में जहरीली शराब का मामला आने के बाद बड़े पैमाने पर शराब के सैंपल लिए गए थे,लेकिन इसके बाद जिम्मेदारों ने देखना भी जरूरी नहीं समझा।