रायबरेली सीट पर प्रत्याशी को लेकर असमंजस में कांग्रेस

रायबरेली। रायबरेली केवल एक संसदीय सीट भर नहीं है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेसियों का मनोबल भी है और इस बार जब सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ रही हैं तो सबकी जुबान पर यह सवाल होना स्वाभाविक भी है कि अब कौन? इस कौन के जवाब पर बहुत कुछ निर्भर है और दूसरे अन्य दलों की रणनीति भी। यहां तक कि भाजपा की किलेबंदी भी।

अमेठी का किला पिछले ही चुनाव में गंवा चुकी कांग्रेस के लिए अब रायबरेली ही उम्मीद है, लेकिन दरारें यहां भी हैं। यही वजह है कि परंपरानुसार गांधी परिवार से ही किसी को उतारने को लेकर असमंजस है, क्योंकि इस बार यदि यह किला भी दरक गया तो प्रदेश में कांग्रेस शून्य की स्थिति में होगी जिस घाव से उबर पाना मुश्किल होगा।

यूपी में कांग्रेस का खराब दौर
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का खराब दौर पिछले कई चुनाव से चल रहा है, लेकिन इस बार स्थिति और बुरी है। राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद वह राज्य स्तर की समाजवादी पार्टी की बैसाखी के सहारे चुनाव मैदान में है और उसे 80 सीटों में केवल 17 सीटों पर ही संतोष करने के लिए विवश होना पड़ा है। इसके बावजूद उसे प्रत्याशी खोजने पड़ रहे हैं।

रायबरेली ही नहीं, अमेठी में भी कौन लड़ेगा, यह तय नहीं है और यहां राहुल गांधी दोबारा लड़ेंगे, इसको लेकर संशय है। मथुरा और इलाहाबाद संसदीय सीट को लेकर भी असमंजस है।

कांग्रेस की वापसी करा सकते हैं उज्ज्वल रमण सिंह
चर्चा तो यहां तक है कि सपा के पुराने और वरिष्ठ नेता रेवती रमण सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमण सिंह यहां कांग्रेस का झंडा लेकर आ सकते हैं। यानी कि जिस इलाहाबाद से कभी कांग्रेस की रीति-नीति तय होती थी और जो जिला पार्टी के अतीत का मुख्य हिस्सा है, वहां भी उसका आधार कमजोर हो चला है।

मथुरा में भी उसके पास फिलहाल कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं दिख रहा है और यहां से आइएनडीआइए में शामिल किसी दूसरे दल का नेता चुनाव लड़ता दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं। कांग्रेस यूपी में गांधी परिवार के चेहरे पर ही राजनीति करती आई है और अब यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है।

इन चेहरों पर कितनी निर्भरता है, इसे पिछले दिनों यहां आयोजित प्रशिक्षण शिविर में देखने को मिला था, जबकि प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय व प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से मिलने वाले हर नेता ने एक ही मांग की थी कि अमेठी से ‘राहुल भैया’ और रायबरेली से ‘प्रियंका दीदी’ को लड़ाया जाए। यदि ये लोग चुनाव न लड़े तो कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ेगा।

प्रियंका को रायबरेली से लड़ाने की मांग
कार्यकर्ता मानते हैं कि सोनिया गांधी के रायबरेली की सीट छोड़ने के बाद उत्तर प्रदेश की प्रभारी रह चुकीं प्रियंका ही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। प्रियंका को रायबरेली से लड़ाने की मांग पहले भी उठती रही है और इस बार भी केंद्रीय नेतृत्व को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस बुरे दौर में प्रियंका को चुनाव लड़कर अगुवाई करनी भी चाहिए।

हालांकि केंद्रीय नेतृत्व को इस बात पर भी विचार करना होगा कि क्या यह ‘बुरा दौर’ प्रियंका के लिए उपयुक्त समय होगा। इस बुरे दौर से उबरने के लिए राहुल गांधी प्रदेश में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकाल चुके हैं जिससे पार्टी में थोड़ी सक्रियता दिखी थी और जोश का संचार भी हुआ था, लेकिन वह कितना बरकरार रहेगा, यह प्रत्याशियों के चयन पर निर्भर है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती अमेठी है, जहां स्मृति इरानी का मुकाबला आसान न होगा।

बीते कुछ वर्षों में रायबरेली में भी कांग्रेस के कई सिपहसालार पार्टी छोड़कर भाजपा के खेमे में जा चुके हैं। इंदिरा गांधी के कार्यकाल से जुड़ा यहां के लोगों का भावनात्मक रिश्ता भी धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। इसलिए संभव है कि इन दोनों क्षेत्रों के लिए कांग्रेस आलाकमान को कोई अप्रत्याशित निर्णय लेना पड़े। विशेष तौर पर अमेठी की सीट पर कुछ नए प्रयोग हो सकते हैं।

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