जीजा के घर में रहने वाली महिला को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता

बाराबंकी। जीजा के घर में रहने वाली महिला को गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा। नाबालिग पुत्र को पिता तीन हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देगा। पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दुर्ग नारायण सिंह ने महिला की ओर से दाखिल गुजारा भत्ते के दावे को खारिज कर दिया है।

यह है पूरा मामला
सिरौलीगौसपुर क्षेत्र के एक गांव की महिला का विवाह दरियाबाद के रहने वाले युवक के साथ वर्ष 2016 में हुआ था। दोनों से एक पुत्र का जन्म हुआ। महिला ने वर्ष 2019 में गुजारा भत्ता के लिए पारिवारिक न्यायालय में मुकदमा किया।

अदालत को बताया कि पति ने दहेज के लिए प्रताड़ित कर भगा दिया। अदालत से मिली नोटिस पर पति हाजिर हुआ। पति ने जज को बताया कि उसने पत्नी को नहीं भगाया है। पत्नी की बहन का निधन हो गया था।

ऐसे में पत्नी अपने जीजा के घर में रहकर देखभाल करती है, जबकि वह पत्नी को अपने साथ अपने घर में रखना चाहता है। इसके लिए कई बार प्रयास किया, लेकिन पत्नी नहीं मानी।

जज ने पति की बातों को सुनकर महिला से बात की। राज्य सरकार की ओर से नामित अधिवक्ता के साथ दोनों की बात कराई, लेकिन महिला किसी भी स्थिति में पति के साथ जाने को राजी नहीं हुई।

ऐसे में जज ने महिला की ओर से किए गए गुजारे भत्ते के दावे को खारिज कर दिया। महिला के साथ रहने वाले उनके नाबालिग पुत्र को बालिग होने तक प्रति माह तीन हजार रुपये देने का आदेश दिया।

पारिवारिक न्यायालय के अधिवक्ता ने दी जानकारी
पारिवारिक न्यायालय के अधिवक्ता व काउंसलर वीरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि अदालत ने इस मामले में पत्नी की ओर से गुजारा भत्ता पाने के लिए प्रार्थना पत्र में पति से अलग रहने के जो भी कारण बताए थे, सभी का परीक्षण किया।

पति ने पत्नी के जीजा के घर में रहने के साक्ष्य भी दिए। जब पत्नी किसी भी दशा में पति के साथ रहने को राजी नहीं हुई, सिर्फ गुजारा भत्ता पर अड़ी रही तब अदालत ने अपना निर्णय दिया, जो अन्य ऐसे मामलों में भी नजीर बनेगा।

बातचीत से मिटे गिले-शिकवे
पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश की अदालत पर दो गुजारे के लिए मुकदमा दाखिल करने वाली दो महिलाएं अदालत के हस्तक्षेप के बाद पति के साथ जाने को राजी हो गईं। नगर कोतवाली क्षेत्र के एक मामले में दंपति में सुलह का कारण उनका तीन वर्षीय पुत्र बना।

पति-पत्नी दोनों ने अपनी जिद के आगे पुत्र की अच्छी परवरिश को प्राथमिकता दी। अधिवक्ता वीरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि दोनों ही मामलों में परिवार के लोगों का पति-पत्नी के बीच बेजा हस्तक्षेप विवाद का कारण बन गया था। बातचीत से गिले-शिकवे मिट गए।

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