नई दिल्ली। उत्तर भारत में भाजपा भले ही विपक्ष पर हावी दिख रही हो, पर दक्षिण भारत के विपक्षी किले को ध्वस्त करना उसके लिए आसान नहीं होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 303 सीटें जीतने के बावजूद तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में खाता खोलने में विफल रही थी। पुडुचेरी की एक सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा था।
दक्षिण के राज्यों में भाजपा सिर्फ कर्नाटक में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही थी, जहां वह 28 में से 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। एक सीट उसके समर्थित उम्मीदवार को मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों मिली हार के बाद भाजपा के लिए 2019 की जीत को दोहराना अब आसान नहीं होगा।
वैसे भाजपा ने जेडीएस के साथ समझौता कर और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजेंद्र को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर जातीय और सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री सिद्दरमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार विस चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लोस चुनाव में दोहराने की कोशिश में हैं।
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश साथियों के सहारे
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की राजनीति भाजपा सहयोगी दलों के सहारे चलती रही है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव से पहले आंध्रप्रदेश में तेदेपा और इस बार तमिलनाडु में एआइएडीएमके भाजपा का साथ छोड़ चुकी हैं। तेदेपा राजग में वापसी की कोशिश कर रही है और उसके प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की भाजपा के शीर्ष नेताओं से बातचीत भी हो चुकी है, पर भाजपा अभी तक जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ जाकर चंद्रबाबू नायडू के साथ जाने का फैसला नहीं कर सकी है।
एआइएडीएमके के बाहर होने के बाद भाजपा तमिलनाडु में अकेली रह गई है। पिछले दिनों उसने तमिल मनीला कांग्रेस के साथ समझौता जरूर किया है, पर उसका प्रभाव नतीजों में कितना पड़ेगा, यह देखना होगा। वैसे भाजपा तमिलनाडु में पैर जमाने को लगातार कोशिश कर रही है।
तमिल-काशी संगमम, सौराष्ट्र-तमिल संगमम और सेंगोल को नई संसद में स्थापित कर भाजपा ने तमिलनाडु की जनता को जोड़ने का प्रयास किया। इसके अलावा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अन्नामलाई सभी 236 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर जनसमर्थन जुटाने का भी प्रयास कर रहे हैं। 2019 में डीएमके व कांग्रेस गठबंधन तमिलनाडु में 39 में से 38 सीटें जीतने में सफल रहा था।
केरल खाता खोलने को लेकर आश्वस्त नहीं
केरल में भाजपा की स्थिति सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण है। अकेले दम पर भाजपा आज तक खाता नहीं खोल सकी है। भाजपा ने इस बार ईसाई समुदाय को जोड़ने की कोशिश जरूर की है और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी बना दिया है।
कर्नाटक: कांग्रेस पेश कर सकती कड़ी चुनौती
17 सीटों वाले तेलंगाना में 2019 में भाजपा अपने दम पर चार सीटें जीतने में सफल रही थी, जो कांग्रेस से एक सीट ज्यादा है। इसके बाद भाजपा को बीआरएस के खिलाफ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में देखा जाने लगा था, पर तीन महीने पहले हुए विस चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। कांग्रेस लोस चुनाव में भी भाजपा के लिए चुनौती पेश कर सकती है। ऐसे में भाजपा के लिए 2019 के परिणाम को दोहराना आसान नहीं होगा।