समाजवादी पार्टी की मध्य प्रदेश में कोई बड़ी राजनीतिक जमीन नहीं है. फिर भी वह यहां हो रहे चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बाद तीसरी बड़ी पार्टी बनने का सपना संजोय हुए है. सपा मुखिया अखिलेश यादव यहां लगातार पसीना बहा रहे हैं. सपा की रणनीति यहां कांग्रेस की उंगली पकड़कर खुद को मजबूत करने की थी, लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस ने सीटें न देकर सपा के मंसूबे में पानी फेर दिया.
मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है, लेकिन सपा भी अपने को इस मुकाबले में शामिल दिखा रही है. राजनीतिक जानकर बताते हैं कि मध्य प्रदेश में सपा का असर बीजेपी और कांग्रेस जितना नहीं है, लेकिन पार्टी बसपा के बाद चौथी ताकत जरूर रही है. बुंदेलखंड, खासतौर पर उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे टीकमगढ़ और निवाड़ी जिलों में पार्टी का वोट बैंक है. सपा ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2003 के चुनाव में किया था, जब उसके सात विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे
सपा का विंध्य और बुंदेलखंड में वर्चस्व
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा यूपी की सीमा से सटे विंध्य और बुंदेलखंड में अपना वर्चस्व रखती है. बुंदेलखंड क्षेत्र में ही 26 सीटें हैं. यह बेल्ट इटावा से लगा हुआ है. भिंड और चंबल संभाग में सपा का कुछ असर है. चुनावी आंकड़ों की मानें तो 2018 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई थी. ऐसे में कांग्रेस ने बसपा और सपा विधायकों के सहयोग से सरकार बनाई थी. पिछले चुनाव में सपा को सीट के साथ 1.30 फीसदी वोट हासिल हुआ था.
वहीं समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सपा को सीटें न देकर पार्टी की उपेक्षा की है. इसके अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पत्रकारों से राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में बड़ी बेरुखी से बोलते हुए कहा, ‘अरे भाई छोड़ो अखिलेश-वखिलेश’. यह बात तो ऐसी हुई कि जैसे वह सपा मुखिया को जानते ही न हो, जबकि सच यह है कि कांग्रेस ने हमारे कारण कई बार अपनी सरकार बचाई है.
पिछले चुनाव में सपा को मिले थे 1.3 फीसदी वोट
नेता ने बताया कि अब ऐसे शब्दों का प्रयोग पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चुभ गया है. इसीलिए ठाना गया है कि हमारी ऐसी सीटें जो यहां पर सरकार बनाने और बिगाड़ने के दम रखती हो. हम बीजेपी कांग्रेस के बाद तीसरी बड़ी ताकत बनाना चाहते हैं. इसी उद्देश्य को लेकर सपा मुखिया मैदान में उतरे हैं. वो अपनी बातें लोगों तक पहुंचा रहे हैं. सपा को भरपूर प्यार भी मिल रहा है. उन्होंने बताया कि अगर पिछले चुनावों पर नजर डालें तो सपा भले ही 1.3 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीत सकी थी, लेकिन पांच सीटों पर दूसरे और चार सीटों पर तीसरे स्थान पर रही थी. सपा को कई सीटों पर जीत-हार के अंतर से अधिक वोट मिले थे.
‘कांग्रेस नहीं चाहती कि हम उनके सहयोगी दल बने’
विंध्य रीजन की मैहर सीट कांग्रेस 2984 वोट के अंतर से हार गई थी. मैहर में सपा उम्मीदवार को 11,202 वोट मिले थे. पारसवाड़ा, बालाघाट, गूढ़ समेत पांच सीटों पर सपा के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी. निवाड़ी में सपा दूसरे तो कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी का जनाधार बढ़ रहा है. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती कि हम उनके सहयोगी दल बने. कांग्रेस के पास मौका था कि वो छोटे दलों को साथ लेकर एक गठबंधन का संदेश दिया जाता, लेकिन वो सोचते हैं कि उनके साथ जनता खड़ी है तो अब उन्हें पीडीए इस बार जवाब देगी.
अखिलेश यादव को है ये यकीन
अखिलेश यादव को पूरा यकीन है कि इस बार उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी और उनकी पार्टी किंग मेकर की भूमिका अदा करेगी. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि अखिलेश यादव के पास यूपी में 2027 में ही अपनी पार्टी को सत्ता जोड़ने का मौका है. इसी कारण उन्होंने केंद्र में हिस्सेदारी के लिए इंडिया गठबंधन का रास्ता चुना था, लेकिन उसमें अब कठिनाई आ रही है. कांग्रेस से बात नहीं बन पा रही है, लेकिन वह अपने काडर को संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पैठ बढ़ाने में लगी है.इसी कारण वह मध्य प्रदेश चुनाव में भाग ले रहे हैं.
‘सपा के चुनाव लड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता’
उनका मानना है कि यूपी के बाहर के बीजेपी के खिलाफ सरकार बनाने का मौका मिलता है तो उनकी पार्टी उसमें जरूर भाग लेना चाहेंगे.चाहे उन्हें भले ही छोटे पार्टनर के तौर पर सत्ता में आने का मौका मिले तब भी उस पर दांव आजमाना चाहेंगे. एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ सपा के चुनाव लड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.
वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि इसी कारण कांग्रेस सपा के खिलाफ कोई बयान भी नहीं दे रहे हैं.क्योंकि मध्य प्रदेश में सपा की कोई बड़ी राजनीतिक अहमियत नहीं है.लेकिन फिर भी वह अपने को बड़ा बनाने में जुटी हुई है.सपा अपने इस परफॉर्मेंस के सहारे यूपी के लोकसभा चुनाव में अपनी मजबूती चाहती है.मध्य प्रदेश के जरिए वो अपना नरेटिव सेट कर रही है.