कानपुर। भले चुनाव लोकसभा का हुआ, प्रत्याशियों ने सुबह से शाम तक दो-दो हाथ किए, कार्यकर्ताओं ने मेहनत की पर परिणाम में पंचायत चुनाव सा उतार-चढ़ाव बड़े सबक दे गया। लाखों मतों के अंतर से हार-जीत हजारों में सिमट गई।
कानपुर-बुंदेलखंड की अधिकांश सीटों पर यही स्थिति नजर आई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं सीटों पर भाजपा प्रत्याशी एक से पांच लाख मतों से जीते थे लेकिन, इस बार नजारा एकदम बदला रहा। चाहे, वो भाजपा हो, कांग्रेस, सपा या फिर बसपा, ये बदलाव सबको सबक दे गया।
करीबी रहा मुकाबला
कानपुर-बुंदेलखंड की 10 विधानसभा सीटों में कन्नौज को छोड़ दें तो बाकी में मतों का अंतर काफी नजदीकी ही रहा। अकबपुर, बांदा, जालौन व उन्नाव में जीते प्रत्याशियों के वोटों का अंतर थोड़ा अधिक रहा, लेकिन पिछले चुनाव में लाखों की जीत के स्थान पर सभी हजारों की विजय में ही सिमट गए।
इसी तरह फर्रुखाबाद में मुकेश राजपूत और डा. नवल किशोर शाक्य के बीच तो पूरी मतगणना में लुकाछिपी का ही खेल चलता रहा। कभी मुकेश आगे तो कभी नवल पीछे। कई बार बढ़त का अंतर 500 मतों से भी कम रहा।
फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति को मिली हार
ऐसे ही हमीरपुर में पुष्पेंद्र सिंह चंदेल व अजेंद्र सिंह लोधी के बीच भी ऐसा ही रहा। दोनों एक-दूसरे से आगे निकलने व पीछे धकेलने की होड़ में ही दिखाई पड़े। फतेहपुर में भी शुरुआती दौर में केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और सपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के बीच कुछ ऐसा ही द्वंद्व छिड़ा दिखा।
अकबरपुर में देवेंद्र सिंह भोले व राजाराम पाल में भी बार-बार उतार-चढ़ाव चला। कानपुर लोकसभा क्षेत्र में रमेश अवस्थी व आलोक मिश्र के बीच भी आगे-पीछे की टक्कर चलती रही। ऐसे ही दूसरी सीटों पर भी शुरुआती दौर से लेकर अंतिम तक कश्मकश का दौर चलता रहा। राजनीतिक जानकार कहते हैं, जनता की चुप्पी से ही ये साफ हो गया था कि इस बार कुछ अलग ही परिणाम आने वाले हैं और वही हुआ भी।