बेनी बाबू के इर्दगिर्द घूमती बाराबंकी की सियासत

बाराबंकी। सियासत करना और तलवार की धार पर चलना एक जैसा होता है। यानी जैसे ही तनिक चूके, वैसे ही हो गए घायल। घायल का इलाज सम्भव है किंतु सियासत में चूक की भरपायी बहुत मुश्किल होती है। सच पूछो सहज मानवीय गुण किसी सियासत दाँ के लिए अभिशाप होते हैं जैसे सच को सच और झूठ को झूठ बोलना। सियासत का सच कुछ अलग रंग और अलग ढंग का होता है जैसे- अश्वत्थामा हतो नरो व कुन्जरो। लेकिन ऐसा सच अथवा ऐसा झूठ बोलने के लिए कृष्ण जैसा सारथी भी होना चाहिये जो कि आगे की सियासत के लिए तानाबाना बुने। सियासत की सफलता के लिए एक अदद सारथी की जरूरत होती ही होती है।

आज के नेता सारथी नहीं समर्थक की जरूरत महसूस करते हैं। समर्थक भी नहीं बल्कि समर्थकों का झुण्ड चाहिए होता है। हाँ में हाँ मिलाने के लिए और जयकारा लगाने के लिए। समर्थक अगर चाटुकार हो तब क्या कहना वह तमाम समर्थकों को पीछे छोड़कर नेता जी की आँख का तारा बन जाया करता है।

यूँ तो हर एक समर्थक के लिए नेता दुनियाँ का सबसे उत्कृष्ट जनप्रतिनिधि तबतक होता है जबतक साथ न छोड़ दे। वहीं चाटुकार के लिए उसका नेता विकास पुरुष ही होता है। चाहे वह अपनी विकास निधि भी 5 साल में खर्च न कर पाए। बहुत मजेदार यह है कि नेता को भी यह सब सुनना अच्छा लगता है। इसीलिए बाराबंकी में भी अनेक नेताओं के समर्थकों ने उन्हें विकास पुरुष कहा है। बैनर पोस्टर में छपवाया है। अगर बेनी बाबू के समर्थकों ने उन्हें विकास पुरूष कहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। कोई माने या न माने बेनी बाबू का बाराबंकी के विकास में जो योगदान है उसका कोई सानी नहीं है।

कल भी और आज भी, यानी जब बेनी बाबू थे तब और आज जब वे नहीं हैं तब भी, यदि बाराबंकी के विकास पर चर्चा होती है, तो बेनी बाबू का नाम सबसे पहले आता है। दो बातें विशेष हैं- एक यह कि उनके रहने पर भी और न रहने पर भी, पक्ष विपक्ष सभी उनके द्वारा किये गए विकास कार्यो को स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि उनके समर्थक उनके न रहने के बाद भी संख्या में बहुतायत हैं। उनके नेतृत्व की स्वीकार्यता में कमी नहीं आयी है। महत्वपूर्ण यह है कि बेनी बाबू के इर्दगिर्द भी चाटुकार समर्थक कम नहीं थे किंतु उनमें यह समझ थी कि चम्मच और समर्थक में अंतर कर सके। फिर भी वे चूके थे, घायल भी हुए थे। सियासत थरथरा और भरभरा गयी थी। लेकिन फिर से न सिर्फ ऊँचाई अर्जित की बल्कि पुनः विकास का इतिहास दोहराया।

बेनी बाबू के बारे में अगर यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सिरौली भवन से लेकर अन्य कई सियासी घरानों में उजाले की किरणें बाबूजी की यशः कीर्ति का परिणाम हैं। समर्थकों में इतनी गहरी छाप है कि बेनी बाबू का नाम लेने भर से सियासत की बयार बदलने लगती है। आसन्न लोक सभा चुनाव 2024 में भी बेनी बाबू का नाम जपकर न सिर्फ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी बल्कि भाजपा प्रत्याशी भी बेड़ा पार लग जाने की मंशा पाले हुए हैं। आखिरकार बाराबंकी की सियासत की धुरी एक बार फिर बेनी बाबू बन गए हैं। भाजपा के चुनाव प्रभारी एम एल सी अवनीश कुमार सिंह पटेल ने एक मीटिंग में उल्लेख किया कि बेनी बाबू विकास पुरुष रहे हैं उनका अपमान करने वालों को जनता माफ नहीं करेगी। सियासत तो सियासत है जवाब आना स्वाभाविक है।

इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के समर्थकों द्वारा जवाब में सोशल मीडिया पर और बन्द बैठकों में कुर्सी के विधान सभा चुनाव में बेनी बाबू के बेटे राकेश कुमार वर्मा के साथ भाजपा द्वारा की गई कारगुजारी याद दिलाई जाने लगी। गठबंधन प्रत्याशी के सारथी व उनके पिता डॉ पी एल पुनिया ने भी एक बैठक में कहा कि मेरे साथ के दो सांसद जो मुझसे खुन्नस खाते थे उन्होनें बेनी बाबू से लाई लगाई करके कुछ समय के लिए नाराज कर दिया था जबकि हमने बेनी बाबू के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की क्योंकि हम उन्हीं की बदौलत संसद पहुँचे थे। जो भी हो बाराबंकी की सियासत में बेनी बाबू की भरपूर चर्चा का होना उनके प्रभाव की महत्ता दर्शाता है। बेनी बाबू के नाम का ज्यादा लाभ किस प्रत्याशी को मिलेगा यह समय तय करेगा। लेकिन आम मतदाता को मूर्ख समझने वाले लोगों को यह चुनाव सबक जरूर सिखायेगा।

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