महोली सीतापुर। नगर के पश्चिम में निर्मल जल से पोषित कल कल करती अविरल प्रवाह से ओतप्रोत जीवनदायिनी उत्तर वाहिनी मां कठिना नदी के तट पर स्थित अष्टकोणीय शैली पर बना देवाधिदेव महादेव बाबा बैजनाथ धाम मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। वैसे तो मंदिर की स्थापना द्वापरकालीन बताई जाती है। करीब 250 वर्ष पहले बैजनाथ नामक भगवान शिव के परम उपासक मंदिर में रहकर देखरेख किया करते थे। उनके समाधिस्थ होने के बाद वर्तमान मंदिर के महंत के पूर्वजों द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती रही। मंदिर के महंत पंडित धीरेन्द्र गिरी जी महाराज बताते हैं की सन् 1962 में तत्कालीन थाना प्रभारी जयकरन सिंह ने मंदिर के वर्तमान स्वरूप का जीर्णोद्धार कराया था । इसके पीछे भी एक मान्यता है कि थाना प्रभारी के कोई पुत्र नहीं था। जिसकी मान्यता उन्होंने भोलेनाथ से की थी। जिसके बाद उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। धीरेंद्र गिरी जी महाराज ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती रही है।उसी परंपरा को उनके द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है। मंदिर परिसर में माता संतोषी जी, खब्बीश बाबा का भी स्थान है। उन्होंने बताया कि श्रष्टि का मूल शिव तत्व ही हैं । वह ब्रह्म और परमेश्वर भी हैं । आदि गुरु शंकराचार्य ने शिव के आध्यात्मिक महत्व की विशेष चर्चा की है उन्होंने बताया है कि चराचर जगत मे जीव जंतु, वनस्पति या मनुष्य सभी की आत्मा शिव हैं । जीव आत्माओ मे बुद्धि की देवी माँ पार्वती हैं वहीं उनके प्राण शिव के गण माने जाते हैं । मनुष्य या समस्त संसार जगत में सभी जीव जो दिनचर्या करते हैं वही शिव पूजन है । जीव जो कुछ बोलता है वह शिव की स्तुति करता है। कण कण में जिनका वास है, अवढ़रदानी, भोले शंकर महादेव और माता शक्ति के मिलन की रात्रि महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर क्षेत्र के शिवालयों में रात्रि के चारों प्रहर श्रंगार पूजा का आयोजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि को देवाधिदेव महादेव ने वैराग्य त्याग कर माता पार्वती से विवाह किया था।तथा पहली बार अवढ़रदानी शिव जी का प्रकाट्य ज्योतिर्लिंग के रूप में महाशिवरात्रि पर ही माना गया है। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भोलेनाथ की स्तुति व जलाभिषेक करने वाले भक्तों पर शिव की विशेष कृपा रहती है।