जनाब गुबार सहसवानी साहब के निवास पर एक गैर तरही मुशायरे के आयोजन किया गया

कटरा नई बस्ती। जिस की सदारत जमील अहमद साहब ने और निज़ामत जनाब क़ासिर सहसवानी साहब ने की मुशायरे का आग़ाज़ नाते पाक से क़ारी साहब ने किया सर प्रथम गुबार सहसवानी साहब ने कहा

मिरा अंदाज़ा ए दिल क्यूँ ग़लत अकसर निकलता है
जिसे शीशा समझता हूँ वही पत्थर निकलता है

बदायूॅं से तशरीफ़ लाए जनाब अहमद अमजदी बदायूॅनी ने कहा
ग़म ज़दा हो नहीं सकते कभी जज़्बात से हम
खूब वाकिफ़ हैं ज़माने तिरे हालात से हम

नाज़िम ए मुशायरा क़ासिर सहसवानी साहब ने कहा
रात दिन मांझते रहो इन को
खोटे सिक्के खरे नहीं होते

बिल्सी से तशरीफ़ लाए क़ासिम ख़ैरवी ने कहा
तेरे आ जाने का एहसास जगाते गुज़रीं
जब हवा गेट के पर्दे को हिलाते गुज़री
रब ने खुशियों से नवाज़ा था तो सजदे करता
आज की शब भी तेरी नाचते गाते गुज़री

मुनफरिद लबों लहजे के शायर राजवीर सिंह तरंग बदायूॅनी ने कहा
न जाने क्यूँ दिले अरमाॅं मेरा पूरा नहीं होता
जिसे अपना समझता हूँ वही अपना नहीं होता

नौजवान शायर अज़हर सहसवानी ने कहा
तू क्यूँ मायूस होता है ज़रा सी मात को लेकर
मै रोया ही नहीं अब तक किसी भी बात को लेकर
कोई खैरात का खाकर बड़ा बे फिक्र जीता है
कोई बे चैन रहता है इसी खैरात को लेकर

इनके अलावा, ज़मीर सहसवानी, तौसीफ़ क़ासमी, मु‌‌‌०सुलेमान, नसीम बाबू, अरशद, खुरशीद, साहब ने भी अपने कलाम से नवाजा मुशायरा देर रात तक चला।

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