मेनका को पीलीभीत सीट मिलने की अटकलें

सुलतानपुर। सुलतानपुर लोकसभा सीट। गांधी परिवार से नाता रखने वाली सीट। पहले वरुण, फिर मेनका की सीट। भाजपा ने अब तक इस सीट पर प्रत्याशी घोषित नहीं किया। ऐसे में सवाल यही है कि इस बार यहां भाजपा से चुनाव कौन लड़ेगा? आसपास की सीटों का जातीय गणित साधने के लिए सुलतानपुर में कुछ बदलाव होगा या फिर मेनका ही लौटेंगी? विपक्षी दल भी चुप्पी साधे हैं। यहां का राजनीतिक परिदृश्य बता रहे हैं अजय सिंह

गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और अयोध्या से सटी सुलतानपुर सीट भी सत्तादल और विपक्ष के लिए खास मायने रखती है। यही वजह है कि दावेदारों की खूब जांच-परख करने के बाद ही घोषणा की जाती है। इस बड़ी सीट पर लोकसभा चुनाव में बड़ा दांव आजमाने की जुगत में भाजपा व विपक्षी दल हैं। इसी कारण से अब तक जहां भाजपा वर्तमान सांसद मेनका गांधी को यहां से चुनाव लड़ाने की घोषणा नहीं कर सकी, वहीं, आइएनडीआइए गठबंधन और बसपा भी वाजिब अवसर की तलाश में हैं।

मेनका को पीलीभीत सीट मिलने की अटकलें

इस बीच खबर है कि मेनका गांधी को यहां के बजाय पीलीभीत से एक बार पार्टी फिर मौका देना चाहती है। यदि ऐसा हुआ तो यहां से पिछड़ी जाति, वह भी कुर्मी बिरादरी का उम्मीदवार उतारने की तैयारी भी है। प्रदेश मुख्यालय से जो तीन नाम पार्टी हाईकमान को भेजे गए हैं, उनमें एक इस बिरादरी के भी दावेदार का है। वहीं, पिछली बार गठबंधन दलों के उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह सोनू और रायबरेली के ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पांडेय समेत अन्य नामों की भी चर्चा है, लेकिन अब तक कुछ स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है।

इस सीट पर 2014 के चुनाव में वरुण गांधी सांसद चुने गए थे, जबकि 2019 में उनकी मां पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी। पिछली बार इनकी सीटों की अदला-बदली हुई थी। इस बार वरुण को लेकर उच्च स्तर पर नाराजगी है। ऐसे में मेनका गांधी की सीट को लेकर भी पेच फंसा है। मेनका गांधी का मजबूत पक्ष यह है कि पांच साल के कार्यकाल में भाजपा की स्थिति ठीक है। 2022 के विधानसभा चुनाव में वह पांच में चार सीटें जीतने में कामयाब रही।

वहीं, इस सीट पर कुर्मी बिरादरी का उम्मीदवार भाजपा द्वारा उतारे जाने को लेकर तर्क भी दिए जा रहे हैं कि मंडल में अयोध्या से लल्लू सिंह, अंबेडकरनगर से रितेश पांडेय, अमेठी से स्मृति इरानी और बाराबंकी में अनुसूचित जाति का प्रत्याशी होगा। अब बची सुलतानपुर सीट पर इस बार पिछड़ी जाति का उम्मीदवार देकर पार्टी जातीय संतुलन साधने की कोशिश में है।

इसके जरिए वह सपा के पीडीए को जवाब भी दे सकेगी, साथ ही आसपास की सीटों पर भी इसका असर पड़ेगा। वहीं, गठबंधन के नेता इस फेर में हैं कि यदि मेनका को भाजपा ना बोल देगी तो उसकी मनचाही मुराद पूरी हो जाएगी। शायद यही कारण है कि खाते में सीट आने के बावजूद सपा की चुनावी तैयारियां शिथिल हैं। जिले के पदाधिकारी यह कह रहे हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का जो निर्देश होगा, उसका अनुपालन कराया जाएगा।

वहीं, बसपा इस बार अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है, लेकिन उसने भी पत्ते नहीं खोले। पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि आलाकमान से गठबंधन दल के वरिष्ठ नेताओं के बीच वार्ता चल रही है। जल्द ही कुछ स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। भाजपा का रुख देखकर ही बसपा निर्णय लेगी।

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