अडिय़ल रुख छोड़े चीन, एलएसी पर सेना का जमावड़ा

आर्मी चीफ जनरल मनोज पांडे ने भारत-चीन सीमा के ताजा हालात पर जो कहा, वह दोनों देशों के बीच चल रहे गतिरोध पर भारत के कड़े रुख को दर्शाता है। सेना प्रमुख ने साफ-साफ कहा कि सीमा पर भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती तब तक रहेगी जब तक वहां हालात नहीं बदलते। उन्होंने यह भी कहा कि भारत का पहला उद्देश्य सीमा पर 2020 मध्य से पहले की स्थिति बहाल करना है। जब यह हो जाएगा, तभी अन्य बातों पर विचार किया जाएगा।

दो दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में भी भारत-चीन संबंधों में आए गतिरोध पर ऐसी ही बात कही थी। उन्होंने साफ किया था कि जब तक स्टेटस को आंटे (यानी यथास्थिति से पहले की स्थिति) बहाल नहीं की जाती तब तक संबंधों में बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।
स मामले में शुरू से भारत अपने इस रुख पर कायम है। अगर दोनों देशों के रिश्तों को देखा जाए तो सीमा को लेकर मतभेद तो हमेशा रहे। मगर इसके बावजूद विश्वास का माहौल बन गया था, जिसके आधार पर न केवल सीमा पर लंबे समय से शांति बनी हुई थी बल्कि द्विपक्षीय सहयोग और व्यापार भी फल-फूल रहा था। अप्रैल-मई 2020 में चीन की एकतरफा कार्रवाई से वह स्थिति बदली और दोनों देशों के बीच टकराव का नया दौर शुरू हुआ।

ऐसे में जब तक सीमा पर उस कार्रवाई से पहले वाली स्थिति बहाल नहीं की जाती, तब तक यह कहने का क्या अर्थ है कि बीती बातों को भूलकर नए सिरे से सहयोग शुरू किया जाए? यही मूल बिंदु है जहां बात आगे नहीं बढ़ रही। सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के दौर पर दौर हुए, कुछ बातों पर सहमति भी बनी लेकिन 2020 मध्य से पहले की स्थिति बहाल करना तो दूर, चीन बचे हुए दो प्रमुख स्थानों देपसांग और देमचोक पर सैन्य उपस्थिति कम करने को भी राजी नहीं हो रहा।

यही वजह है कि भारत ने भी खुद को इस बात के लिए तैयार कर लिया है कि सीमा पर बना यह गतिरोध लंबे समय तक चल सकता है। रु्रष्ट पर 50 हजार से ज्यादा सैनिकों के लिए रहने की जगह तो पहले ही बन चुकी थी, वहां इसी हिसाब से इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने और कनेक्टिविटी डिवेलप करने की भी प्रक्रिया चल रही है। हालांकि रु्रष्ट पर इतनी बड़ी संख्या में फौज की मौजूदगी लगातार बनाए रखना दोनों देशों के लिए न केवल कठिन है बल्कि संसाधनों की बर्बादी भी है। इसलिए यह दोनों के हक में है कि मध्य 2020 से पहले की स्थिति बहाल कर संबंधों में भी पुराना विश्वास कायम करने की कोशिश की जाए। चीन इस बात को जितनी जल्दी समझ ले उतना अच्छा।

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