नई दिल्ली। 1 नवंबर, 1956… वह दिन जब एक नया राज्य मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया। इस नए-नवेले राज्य की राजधानी किस शहर में बनेगी, इसे लेकर कई दिनों तक उहापोह जारी रही। जब नवाबों के शहर को राजधानी बना दिया तो संस्कारधानी की उपमा पा चुके शहर में दिवाली नहीं मनी।
देश का दिल मध्यप्रदेश 1 नवंबर 2023 यानी कल अपना 68वां स्थापना दिवस मनाने की तैयारी में है। गठन से लेकर आज तक राज्य का सफर खासा उतार-चढ़ाव भरा रहा है। राज्य ने भयंकर गैस त्रासदी और हरसूद कस्बे को डूबते देखा तो गौरवान्वित करने वाले क्षण का साक्षी भी रहा।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के बीच राज्य के स्थापना दिवस पर पढ़िए इसके गठन और भोपाल के राजधानी बनने की रोचक कहानी…
मध्यप्रदेश का जन्म अपने आप में एक संयोग है। यहां रहने वालों ने कभी किसी ऐसे राज्य की मांग नहीं की थी। इस कहानी की शुरुआत 71 साल पहले हुई थी। देश आजाद हो चुका था। कांग्रेस भी भाषाई आधार पर राज्य बनाने के अपने 1920 के वादे को ठंडे बस्ते में डाल चुकी थी।
दिसंबर 1952 में आंध्र प्रदेश (मद्रास प्रेसीडेंसी) में एक घटना घटी, जिसने उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के जज सर सैयद फजल अली को एक्शन लेने को मजबूर कर दिया। आंध्रप्रदेश में श्रीरामालु नाम का एक शख्स तेलगु भाषी राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल करते हुए मर गया। इसके बाद आज का आंध्र प्रदेश बना। बस फिर क्या था देश के बाकी इलाके भी भाषाई आधार पर राज्य की मांग करने लगे।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने साल 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। आयोग सदस्यों ने 38000 मील लंबी यात्रा कर 267 पेज की एक रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट में भाषाई आधार पर 16 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेश बनाने की सिफारिश की गई।
ऐसे हुआ मध्यप्रदेश का जन्म
नए बनने वाले गैर-हिंदी राज्यों के हिंदी भाषी जिले और तहसीलें बची थीं, उन्हें और मध्यभारत के महाकौशल, भोपाल और विंध्य प्रदेश को मिलाकर एक नया राज्य बना दिया गया, जिसका नाम मध्यप्रदेश रख दिया गया। इस तरह 1 नवंबर, 1956 को मध्यप्रदेश का जन्म हुआ।
नक्शा देख नेहरू ने दिया था यह रिएक्शन
उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब राज्य का नक्शा देखा तो कहा- ‘यह क्या ऊंट तरह दिखने वाला राज्य बना दिया।’
कैसे भोपाल बना राजधानी?
नया-नवेला राज्य बनते ही राजधानी को लेकर जद्दोजहद शुरू हुई। ग्वालियर और इंदौर देश के बड़े नगर थे तो रविशंकर शुक्ल (राज्य के पहले सीएम) के चलते रायपुर भी अहम था। इन सबके बीच जबलपुर की दावेदारी सबसे अधिक थी। आयोग ने भी जबलपुर के नाम का ही प्रस्ताव दिया। इस बीच, नेहरू के भोपाल प्रेम और सरदार पटेल की रणनीति के चलते भोपाल शहर को राजधानी बना दिया गया।
बताया जाता है कि भोपाल को राजधानी बनाने के दो कारण थे। पहला- उन दिनों भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खां की गतिविधियां बेहद संदिग्ध थीं, ऐसे में भोपाल पर नजर रखने के लिए इसे राजधानी बनाया गया था।
दूसरा- एक अखबार में खबर छपी, जिसमें कहा गया कि सेठ गोविंददास ने जबलपुर-नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली है। जब जबलपुर राजधानी बनेगा तो सेठ परिवार को मोटा मुनाफा मिलेगा। बता दें कि सेठ गोविंददास जबलपुर को राजधानी बनाने की पैरवी कर रहे थे।
जबलपुर में नहीं मनी थी दीवाली
जब मात्र 50 हजार आबादी वाले शहर भोपाल को राजधानी बना दिया गया तो जबलपुर से एक प्रतिनिधिमंडल जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आजाद, लाल बहादुर शास्त्री और गोविंद वल्लभ पंत से मिलने दिल्ली पहुंचा। लेकिन प्रतिनिधि मंडल को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा।