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- आलू के लिए घातक है झुलसा और पाला, इसके कारण चौपट हो जाती फ़सल
- जिले में 55 सौ हेक्टेयर रकबे पर बोई गई है आलू की फसल
अजय सिंह चौहान
निष्पक्ष प्रतिदिन,लखनऊ। आलू उत्पादक किसानों के लिए हर साला पाला और ब्लाइट (बीमारी) मुसीबत लेकर आता है।ठंड बढ़ने के साथ ही इनका प्रकोप खेतों में नजर आने लगता है। इसे अगर नजर अंदाज कर दिया तो फिर उत्पादन चौपट समझो।जिला उद्यान अधिकारी बैजनाथ सिंह ऐसे में किसानों को एहतियात बरतने की राय दे रहे हैं। थोड़ा एहतियात और कुछ दवाएं, फिर कोई दिक्कत ही नहीं।
जिले में 55 सौ हेक्टेयर रकबे पर आलू की फसल बोई गई है।जिले में हर बार ठंड अपने साथ भीषण शीतलहर लेकर आती है। इससे हर बार आलू उत्पादक किसानों को जूझना पड़ता है। सैकड़ों एकड़ आलू की फसल पाले और ब्लाइट के कारण चौपट हो जाती है। दिन ब दिन गिरते पारे ने इसकी आशंका बढ़ा दी है।
शीतलहर देखकर आलू उत्पादक किसान ऊपर वाले से दिन साफ होने की फरियाद करेंगे। फिलहाल मौसम के तेवर देखकर अभी ऐसा होता नहीं लगता। ऐसे में जिला उद्यान अधिकारी आलू उत्पादक किसानों को फसल पर ध्यान देने का सुझाव दे रहे हैं। उनका कहना है कि आलू को पाले की मार से बचाने के लिए खेतों में नमीं बनाए रखने पर ध्यान देना होगा। अगर खेत में ब्लाइट (झुलसा रोग) की संभावना है तो मैंकोजेब दवा का सवा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। यदि खेत में झुलसा रोग लग चुका है, तो इसमें मैंकोजेब और मेटालैक्सिल के कंपोजिशन (मिश्रण) वाली दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए। यह दवा दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग की जाए। इस हिसाब से एक किलोग्राम दवा का उपयोग एक हेक्टेयर आलू में करना चाहिए।
लक्षण-
पाला- इसमें आलू की पत्तियों पर छोटी-छोटी काली बिंदी पड़ जाती है। ध्यान न देने पर यह आकार में बढ़ती जाती है।
ब्लॉइट- इसमें आलू की पत्तियों पर दाग बनते हैं, साथ ही इनकी निचली सतह पर महीन रोएं नजर आने लगते हैं।
बचाव-
आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए खेत में नमीं का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही जिस दिन तापमान काफी कम होने का अनुमान हो, उस दिन शाम को खेत के पश्चिम में धुआं सुलगा देना चाहिए। इससे खेत को पाले की मार से बचाया जा सकता है। ब्लाइट के लिए दवाओं के उचित इस्तेमाल में ही समझदारी है।