नई दिल्ली। पूरे भारत में 12 जगहों पर शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं, जिन्हें 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित श्री महाकालेश्वर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिनकी भस्म से आरती की जाती है। भस्म तैयार किए जाने से लेकर भस्म आरती तक, सभी का अपने आप में एक विशेष महत्व है।
इसलिए की जाती है भस्म आरती
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दूषण नाम के एक राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा रखी थी। तब ब्राह्मणों ने भगवान शिव से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। इस पर भगवान शिव ने दूषण को चेतावनी दी लेकिन वह नहीं माना। तब शिव जी क्रोधित हो गए उन्होंने महाकाल का रूप धारण किया। महादेव ने दूषण को भस्म कर दिया और उसी भस्म से अपना श्रृंगार किया। तभी से महादेव का श्रृंगार भस्म से करने की प्रथा चली आ रही है, जिसे आज हम भस्म आरती के रूप में जानते हैं।
मृत्यु ही है परम सत्य
भगवान शिव को श्मशान के साधक के रूप में जाना जाता है। साथ ही भस्म को उनका श्रृंगार भी कहा गया है। ऐसे में महाकाल जी को भस्म अर्पित कर संसार के नश्वर होने का संदेश दिया जाता है। देखा जाए तो भस्म आरती में एक गहरा अर्थ छिपा हुआ है। यहां भस्म यानी राख को देह के अंतिम सत्य के रूप में देखा गया है, क्योंकि हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शरीर को जला दिया जाता है और अंत में केवल राख बचती है। ऐसे में जहां भस्म आरती देह के अंतिम सत्य को दर्शाती है, तो वहीं सृष्टि का सार को भी।
ऐसे तैयार होती है भस्म
जिस भस्म से महाकालेश्वर जी की आरती की जाती है, वह कोई आम भस्म नहीं है, बल्कि अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। इस भस्म को तैयार करने के लिए पीपल, कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाया जाता है। लेकिन वर्षों पहले महाकाल की आरती के लिए जिस भस्म का इस्तेमाल किया जाता था, वह श्मशान से लाई जाती थी।
मिलते हैं ये लाभ
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भस्म अर्पित करने के बाद इसे प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है। मान्यता है कि इस भस्म को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे साधक को कई तरह के रोग और दोष से मुक्ति मिल सकती है।