सप्त ऋषि आश्रम में महाऋषि वशिष्ठ के गुरुकुल का कुछ अंश आज भी मौजूद

  • आश्रम पहुंचने पर मिलते हैं राम से जुड़े साक्ष्य
  • सरकारों की उपेक्षा से आश्रम हुआ जीर्ण-शीर्ण

बाराबंकी। परंपराओं की माने तो शहर का सबसे करीब सतरिख क्षेत्र कालांतर में सप्त ऋषि क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। जोकि बाद में धीरे-धीरे सतरिख कहा जाने लगा। लेकिन यहां मौजूद महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल आश्रम का कुछ अंश आज भी मौजूद है। जहां दशरथ नंदन भगवान श्री राम सहित चारों भाइयों ने शिक्षा दीक्षा ग्रहण की थी। ऐसे में जब भगवान रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम की तिथियां नजदीक है। तो जनपद के जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने भी राम से जुड़ी विरासत और बाराबंकी-अयोध्या मार्ग को राम-मय करने के प्रयास में तेजी से जुट गए है। जिसमें जिलाधिकारी ने पत्रकारों से बात करते हुए सप्त ऋषि आश्रम को भी विकसित करने की बात कही है। जिसके बाद इस सप्तऋषि आश्रम के मुख्य महंत नानक शरण दास उदासीन से मिलने व इस पारंपरिक विरासत की स्थिति जानने के लिए हिंदी दैनिक अमर भारती के संवाददाता मौके पर पहुंचे। यहां सर्वप्रथम बात करने पर महंत नानक शरण दास जी ने बताया कि फिलहाल अभी तक उनके पास कोई प्रशासनिक व्यक्ति नहीं पहुंचा है। जिसने यह बताया हो कि इसे विकसित किया जाएगा। लेकिन पत्रकारों द्वारा जरूर इसे विकसित करने की बात कही जा रही है। जिसको लेकर वह उत्साहित व भाव विभोर है। आगे उन्होंने आश्रम के प्राचीन इतिहास की कई मार्मिक कथाएं सुनाई। फिर उन्होंने खबर के माध्यम से शासन को सूचना देना का काम किया कि किस तरह से कालांतर में मुगल शासन के द्वारा यहां चल रहे गुरुकुल को तहस-नहस कर दिया गया। उन्होंने बताया कि यह सप्त ऋषि आश्रम वशिष्ठ मुनि का आश्रम था। जहां राजा महाराजाओं के बच्चों को शस्त्र और शास्त्र दोनों ही विद्या से निपुण किया जाता था। त्रेता युग में भगवान श्री राम अपने भाई लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समेत यहां शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर चुके है। इस आश्रम के मुख्य मंदिर में विराजमान मूर्तियों और सूर्यवंश के टीके को किसने स्थापित किया। यह किसी को ज्ञात नहीं है।
गुरुकुल पद्धति के साथ आश्रम का हुआ विध्वंस
महंत नानक दास जी बताते हैं कि भगवान राम के जन्म से पहले भी यह सप्त ऋषि आश्रम गुरुकुल के तौर पर विश्व विख्यात था। लेकिन कालांतर में मुगल शासको ने जब गुरकुल पद्धति को खत्म किया। तो यहां बने विशाल भवनों का भी विध्वंश कर इसे खत्म कर दिया।जिसके अंश आज भी आश्रम की पीछे की दीवारों पर बनी आकृति में दिखाई देते है। एक बार की बात है कि भगवान राम धनुष बाण सीख रहे थे। एक बाण यहां से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर पर जाकर गिर गया। जो आज भी मौजूद है। जिसकी लोग पूजा अर्चना करने आते रहते है। आश्रम में मौजूद कुआं और उसके पास एक नदी बहती है। जहां भगवान राम अपने भाइयों समेत स्नान किया करते थे। आश्रम के पास लगभग 70 बीघा जमीन है। जिसमें से लगभग तीन बीघे पर लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है। जिसके लिए एक बार मेरे ऊपर जानलेवा हमला भी किया गया।

मंदिर में विराजमान सूर्यवंश का टीका
इस सप्त ऋषि आश्रम में के मंदिर में विराजमान देवताओं की मूर्ति के साथ सूर्यवंश का टीका इसके प्राचीन इतिहास का साक्षात प्रमाण है। परंपराओं और भारतीय संस्कृति के मुताबिक जिस वंश के लोगों का शासन जहां तक भी रहा है। वहां पर होने वाली प्रमुख जगहों पर उनके वंश का टीका स्थापित किया जाता था। इस सप्त ऋषि आश्रम के मंदिर में मौजूद सूर्यवंश का टीका यह अपने आप में प्रमाण देता है कि यह आश्रम सूर्यवंशी राजतंत्र के अधीन था।
(22 जनवरी को नगर भृमण
यहां महंत नानक शरण दास जी के साथ-साथ मौजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को देखते हुए यहां पर भी दीपोत्सव सहित अन्य कार्यक्रम रखे गए है। साथ ही मंदिर में विराजमान चारों भाइयों समेत देवी देवताओं को नगर भ्रमण कराया जाएगा। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे। यह नगर भ्रमण लगभग 5 किलोमीटर के दायरे में होगा। यह दिन हमारे लिए भाव विभोर कर देने वाला होगा। इस समय का सभी संत महात्मा बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
सरकारों की उपेक्षा से आश्रम जीर्ण-शीर्ण
शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह आश्रम पूर्ववर्ती सरकारों की उपेक्षा का शिकार रहा।जिसके संबंध में बीते वर्षों में कई बार खबरें भी प्रकाशित हुई लेकिन इसका पुख्ताहाल लेने वाला कोई नहीं था। ऐसे में जब राम के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया गया है और राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है। तो राम से जुड़ी विरासत को भी संवारने की कवायत शुरू हो गई है। वरना हालात यह है कि आश्रम तक जाने वाली मुख्य सड़क ही जगह-जगह जानलेवा गड्ढों में तब्दील हो गई है।

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