एक पार्टी व एक प्रत्याशी लगातार साथ नहीं जीते दोबारा

रामसेवक व रामसागर ने पार्टी बदलकर लगाई हैट्रिक

बाराबंकी। यह बाराबंकी इतिहास है। यहां एक पार्टी व एक प्रत्याशी को लगातार मतदाताओं ने पसंद नहीं किया गया। इतिहास के पन्नों की बात करें तो रामसागर व रामसेवक की भी हैट्रिक पार्टी बदलकर ही है। यूं कहें एक चेहरा व एक पार्टी को साथ-साथ लगातार दोबारा मौका नहीं मिला। चाहे चार चुनाव जीते रामसागर ही क्यों ना हो। लेकिन पार्टी या चेहरे दोनों में एक बदलने पर वह संसद पहुंचे।

रामसेवक और रामसागर की भी हैट्रिक पार्टी बदलकर:

लोकसभा पहला 1952 का चुनाव कांग्रेस के मोहनलाल सक्सेना ने जीता। फिर 1957, 1962 व 1967 में लगातार रामसेवक यादव सांसद चुने गए। लेकिन तीनों बार उनकी पार्टी आईएनडी, एसओसी व एसएसपी से चुनाव जीता था। इसी तरह 1989, 1991 व 1996 में रामसागर ने लगातार तीन चुनाव जीता। लेकिन वह तीनों बार अलग-अलग जनता दल, जनता पार्टी व समाजवादी पार्टी से जीते हैं। लेकिन 1998 के अंतराल 1999 सपा से जीता है‌। इसी तरीके से कमला प्रसाद दो चुनाव जीते थे। दोनों बार 1984 में कांग्रेस तो 2004 में बीएसपी से सांसद बने। यही इतिहास रामकिंकर साथ दोहराया है। 1977 में भारतीय लोकदल तो 1980 मध्यावधि चुनाव जनता पार्टी से जीता था।

यह सिलसिला यहीं नहीं रोका हैं। 1998 में भाजपा का खाता खोलने वाले बैजनाथ रावत के बाद 2014 में पहली महिला सांसद प्रियंका रावत चुनी गई। 2019 में मोदी लहर में लगातार दूसरी बार पार्टी तो जीती। लेकिन चेहरा बदल गया। यहां फिर इतिहास दोहरा गया। भाजपा से उपेंद्र सिंह रावत सांसद बने। जो जैदपुर विधानसभा की विधायकी की छोड़ चुने गए। यानि बाराबंकी लोकसभा इतिहास गवाह है कि एक पार्टी और एक चेहरा को मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। फिरहाल यह कहना संभव नहीं है। क्योंकि इंडिया गठबंधन से कांग्रेस संभावित प्रत्याशी तनुज पुनिया है। लेकिन भाजपा टिकट वापस कर चुके उपेंद्र सिंह रावत साथ यह अपवाद रहेगा। निर्दोष साबित होने पर वह चुन लड़ सकेगे। यह 20 मई मतदान ही बताएगा।

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