पूर्व में घोषित प्रत्याशी के जगह जगह विरोध के बाद राकेश राठौर को बनाया प्रत्याशी
राकेश राठौर को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद बदल सकते है समीकरण
सीतापुर। लोकसभा सीट 30 सीतापुर पर आखिरकार पार्टी को राकेश राठौर को टिकट देना ही पड़ गया, पार्टी नेतृत्व ने पहले इस सीट पर नकुल दुबे को अपना प्रत्याशी बनाया था प्रत्याशी घोषित होते ही जनपद में जगह जगह नकुल दुबे का विरोध किया गया कही कही तो पार्टी के समर्थकों ने जमकर नारे बाजी करते हुए पुतले तक फुक दिए थे, इस पूरे क्रम से यह तो साफ हो गया था नकुल दुबे लड़ाई से बाहर हो गए है, और मतदाताओं ने भी पैराशूट प्रत्याशी होने की वजह से अपना मन बदल लिया था, इसी जद्दोजहद के बाद कल दिन बुधवार को पार्टी की शीर्ष नेतृत्व ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए पूर्व विधायक राकेश राठौर को प्रत्याशी घोषित कर दिया है, नाम की घोषणा होने के बाद से ही राकेश राठौर के समर्थको में खुशी का माहौल है और राकेश राठौर के प्रतिष्ठान व घर पर हुजूम उमड़ पड़ा है।
बताते चले की यह वही पूर्व विधायक राकेश राठौर है, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए आम जनमानस की समश्याओ के लिए सत्ता से विरोध कर दिया और विरोध इतना कि उस वक़्त इनका नाम सिर्फ जनपद में ही नही बल्कि समूचे देश के पटल पर छा गया था, की कोई ऐसा नेता भी है जो सत्ता रहते हुए भी सत्ता पक्ष के खिलाफ जाकर जनता के लिए लड़ रहा है, हालाकि इसके लिए उनको नुकसान भी उठाना पड़ा लेकिन देर आये दुरुस्त आये की कहावत को चरितार्थ करते हुए आज एक बार फिर उसी जनता के हक की लड़ाई लड़ने वाले प्रत्याशी पर पार्टी ने भरोसा जताते हुए अपना उम्मीदवार बनाया है।
राकेश राठौर को टिकट मिलने के बाद भाजपा के खेमे में भी खलबली सी मच गई है क्योंकि अब आसान सी दिखने वाली राह कठिन हो गयी है,क्योकि राकेश राठौर जैसे नेता को इंडिया गढ़बन्धन ने अपना प्रत्याशी बना दिया जिससे कि भाजपा प्रत्याशी के समीकरणों में बड़ा उलट फेर होने वाला है, जिसकी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि भाजपा प्रत्याशी चार के बार के सांसद है और यदि चार बार के सांसद के मुताबिक आँकड़े लगाए जाए तो फिर क्षेत्र में कोई खास विकास कार्य भी नही करा पाए है, दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि आज भी युवाओं के रोजगार की, गरीबो के बेहतर शिक्षा की व्यवस्था और स्वास्थ्य की व्यवस्था करने में निष्फल रहे है, वही इसके उलट गढ़बन्धन प्रत्याशी ने जनता के हक की लड़ाई के लिए सत्ता में रहते हुए सत्ता को विरोध किया और यदि राकेश राठौर चाहते तो शांत रखकर मलाई भी काट सकते थे। सबसे बड़ी वजह यही है कि जनता के बीच राकेश को साहनुभूति भी मिलने की संभावना है।