नफ़रत और तिकड़म की राजनीति के खिलाफ मुखर हुई भाजपा
बाराबंकी। लोकसभा चुनाव से पहले ही एक पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी, उसमें नया कुछ नही हुआ है। सांसद उपेंद्र सिंह रावत ने जब अपने सामाजिक कार्यों के जरिए राजनीति की ओर पदार्पण किया, तो वक़्त के साथ ताल मिलाते हुए, समाज के बहुत से दलितों, पिछड़ों और समाज के अन्य लोगों को राजनीति की मुख्य धारा में शामिल किया। तब उन्होंने यह नहीं सोचा था अपना कोई बेहद करीब उन्हे राजनीति में चरखा दांव दे सकता है।
अभी ताज़ा ताज़ा मामला तब का है, जब सबको लग रहा था कहीं लोकसभा का टिकट एक बार फिर उपेंद्र रावत को न मिल जाए, इससे पहले षड्यंत्रकारियों ने एक चक्रव्यूह रचना तैयार की। जैसे ही भाजपा में उपेंद्र रावत के पुनः टिकट की घोषणा हुई उसके तुरंत बाद सोशल मीडिया पर एक डीप फेक वीडियो प्रचारित किया गया। जिसने बाराबंकी की सियासत को शर्मसार कर दिया। यह घृणित कार्य पूर्णतया राजनीति से प्रेरित कुछ जयचंदों द्वारा कराया गया। जिसमें वे सफल भी हुए, लेकिन वह यह भूल गए कि राजनीति में सर्वोपरि जनता होती है जो अपने प्रतिनिधि का चुनाव खुद करती है।
बहरहाल, सांसद उपेंद्र रावत ने खुद को संभाला। ऐसी परिस्थिति में उन्हें परिवार और समर्थकों का भरपूर सहयोग और साथ मिला। जिसके बाद तय हो गया कि उपेंद्र रावत को जनता के बीच जाना चाहिए। कितने ही विधायक और सांसद हैं जो ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे, और घर बैठ गए हैं। लेकिन उपेंद्र रावत के घर बैठने का सवाल ही नहीं उठता। जब कोई जनप्रतिनिधि राजनीति में विरोधियों के डर से घर बैठ जाता है, तो वह जानता के साथ विश्वासघात करता है, जिनके वह लीडर हैं। लेकिन उपेंद्र रावत ने ऐसा नहीं किया।
करीब तीन दशक पहले से उपेंद्र रावत ने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप से जिले में अपनी अलग पहचान बनाई। कुछ समय बाद भाजपा की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करके उन्होंने सधे कदमों से राजनीति शुरू की। तब भाजपा इतनी मजबूत नहीं थी, लेकिन फिर भी वह भाजपा के साथ मज़बूती से खड़े रहे। ऐसे में इस घटनाक्रम के बाद कुछ लोगों का यह कहना कि उपेंद्र रावत की राजनीति ख़त्म, मूर्खता ही है। वह फिर खड़े होंगे अगर इनकी ज़रूरत भाजपा को होगी।
बहरहाल, अभी बाराबंकी की सियासत में बहुत कुछ घटना बाकी है, अभी यह देखना है कि उपेंद्र रावत की राजनीतिक हत्या के प्रयास में कौन लोग शामिल थे, उनके चेहरे से नकाब हटने के बाद उनका क्या बर्ताव होगा। अभी ऐसा और भी कई जनपदों और राज्यों में होगा। कई जिंदगियां बर्बाद होंगी, इसकी आशंकाए हैं। देखते हैं, विरोधी वह क्या बंदोबस्त करते हैं। इसपर गहराई से नज़र रखनी चाहिए। राजनीति से प्रेरित होकर सामाजिक छवि को खराब करने से संघर्ष नहीं खत्म होता, बल्कि राजनीति की नई ऊर्जा जन्म लेती है, जिसे सब लोग इस्तेमाल करते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम का भाजपा की राजनीति पर इसलिए असर नही होगा, क्योंकि भाजपा अपनी योजनाओं से जनता के दिलों पर राज कर रही है। उपेंद्र रावत के लिए बाराबंकी की आवाम में हमदर्दी का भी माहौल है, जो एक झटके में सारी शतरंज की चालों को उलट देंगे। इस बार लोकसभा चुनाव बड़ा दिलचस्प होगा। भाजपा इन हमलों से और मज़बूत हो रही है। जनता में सबको यह पता चल गया। इसमें जो सबसे बेहतर बात है, वह यह कि राजनीति के जयचंद धीरे धीरे बेनकाब हो रहे है और उसकी चालें अब इतनी मामूली हैं कि हर कोई पकड़े ले रहा है।
सबको पता है कि चुनाव नफ़रत पर और गिनती तिकड़म से पूरी करने के अलावा उनके पास कहने को कुछ भी नही है। फिलहाल यह काफी है कि बाराबंकी के घटनाक्रम से भाजपा और उपेंद्र रावत को कुछ भी नुकसान नहीं हो रहा। वह पहले से भी ज्यादा मज़बूत खड़े है। उपेंद्र रावत उतनी ही शिद्दत से जनता के बीच जा रहे और जनता उनके सामने खड़ी हैं। उनके पास खड़ी यह अथाह भीड़ ही उनकी ताकत है, जो विरोधियों को शिकस्त देने को तैयार है।