मनमानी ब्याज दर पर प्रभावशाली लोग शहर में चला रहे समानांतर बैंक
डायरी सिस्टम से ब्याज पर बांटे जा रहे रुपए, रसूख की दम पर कर रहे मनमाने ब्याज की वसूली
बाराबंकी। आदर्श नगर कोतवाली के मोहल्ला कानून गोयन निवासी भाजपा नेता व व्यापारी संगठन के पदाधिकारी हर्ष टंडन (46) पुत्र मदन मोहन टंडन जोकि लखनऊ के थाना बीबीडी अंतर्गत बीबीडी ग्रीन सिटी के लोटस अपार्टमेंट विला नम्बर 72 में सपरिवार रहते थे। बीते गुरुवार की रात करीब नौ बजे अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से ख़ुद को गोली मार ली। जिससे उनकी मौक़े पर ही मौत हो गयी। बताते है कि व्यापार के सिलसिले में उन्होंने सुजीत शाह नाम के एक सूदखोर से ब्याज़ पर रूपया लिया था। रकम से दस गुना ज़्यादा अदा करने के बाद भी सूदखोर उनका पीछा नही छोड़ रहा था। अपने मकड़जाल में उलझाकर बाराबंकी शहर के प्रधान डाकघर के सामने स्थित करोड़ो का मकान हथियाने के बाद भी सुजीत शाह आये दिन और पैसा देने के लिए दबाव बना रहा था। सूदखोरी से परेशान व्यापारी नेता को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि सूदखोरों से प्रताड़ित लोगों की मदद के लिए यहां का पुलिसिया तंत्र और प्रशासन सख्त नहीं है।
बताते चले कि शहर में सूदखोरी का धंधा बेरोकटोक चल रहा है। सूदखोरों के चंगुल में फंसने के बाद कम ही कर्जदार उनके जंजाल से बाहर आ पाते हैं। अधिकतर तो ब्याज ही भरते रह जाते हैं। सूदखोर रकम और ब्याज की वसूली के नाम पर कर्जदार को जमकर लूटते हैं। कई बार तो ब्याज इतना ज्यादा हो जाता है कि कर्जदार का जेवर, मकान, प्लाट तक सूदखोर हथिया लेते हैं। शहर के मोहल्ला सरावगी, कटरा, लाजपतनगर, लखपेड़ाबाग, आवास विकास के अलावा आजादनगर और पैसार तक सूदखोरों का जाल फैला हुआ है। बड़े सूदखोर योजनाबद्ध तरीके से अवैध कारोबार चला रहे हैं। सूदखोर पहले ही ब्याज काटकर कर्ज देते हैं। कर्ज देने से पहले कर्ज लेने वाले से हस्ताक्षर युक्त ब्लैंक चेक या स्टांप ले लिया जाता है और फिर 10 से 20 फीसदी मासिक ब्याज पर कर्ज दिया जाता है। इसके बाद मूल रकम के साथ ही ब्याज वसूली का खेल शुरू हो जाता है। मूल रकम से दो से तीन गुना से अधिक रकम कर्जदार ब्याज में चुका भी देता है लेकिन उस पर कर्जा बरकरार रहता है।
सूदखोरों की तरफ से वसूली के लिए प्रताड़ित तक किया जाता है। कभी-कभी तो अपराधियों की मदद तक ली जाती है। जब कर्जदार रकम चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो हस्ताक्षर युक्त कोरे चेक और कोरे स्टांप से ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू हो जाता है। चेक में मनमानी रकम भरकर या तो बाउंस कराकर मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है या फिर स्टांप के सहारे कर्जदार की संपत्ति पर कब्जा कर लिया जाता है। मुकदमा दर्ज कराने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं। संगठित रूप से सक्रिय सूदखोरों का पेट भरता रहता है और कर्जदार की जेब ढीली होते-होते वह सबकुछ गंवा बैठता है।
सूत्रों की माने तो बैंकों से ऋण लेने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आज भी लोगों को सूदखोरों के आगे अपनी पगड़ी उतारनी पड़ रही है जो कई गुना ब्याज लेने के साथ उनकी चल अचल सम्पत्ति पर कब्जा कर रहे हैं। प्रशासन ने एक भी बार सूदखोरों के खिलाफ मुहिम नहीं चलाई। इसके चलते इनका मकडज़ाल पूरे जिले में फैला हुआ है। सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने में लोग शादी विवाह और इलाज के लिए सूदखोरों के यहां अपने जेवरात गिरवी रख देते हैं या अधिक ब्याज पर कर्ज ले लेते हैं। इसके बाद साहूकार चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर इतना कर्ज लाद देते हैं कि उसे अदा करने में युवक बिक जाता हैं। जिले में ‘बीसी’ या ‘डायरी’ के नाम पर भी बड़े पैमाने पर खेल किया जा रहा है। शहर में सूदखोरी के कारोबार ने आधुनिक रूप ले लिया है। यहां अब प्रभावशाली और अपराधिक छवि के लोग डायरी सिस्टम से लोगों को 10 से 20 प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्जा देने हैं। फिर हर दिन लोगों से वसूली करते हैं।
डायरी सिस्टम चलाने वाले प्रभावशाली लोग छोटे दुकानदारों और जरूरतमंद व्यक्तियों को एक मुश्त रकम देने के बाद प्रतिदिन डायरी लेकर अपने आदमियों को वसूली के लिए भेजते हैं। अगर एक भी दिन किस्त चुकाने में कर्जदार व्यक्ति देरी कर देता है तो उस पर चक्रवृत्ति से भी कहीं अधिक की दर व रफ्तार से कर्ज का बोझ बढ़ता चला जाता है। शहर के कई परिवार डायरी सिस्टम से लिए गए कर्ज के कारण तबाह हो चुके हैं। कई लोग अपने दुकान, मकान और जमीन खो चुके हैं तो कई लोगों की जान भी चली गई। पुलिस इसी आधार पर रिपोर्ट तो दर्ज कर लेती लेकिन अवैध रूप से फलफूल रहे इस कारोबार से जुड़े लोगों पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है। यह स्थित तब है जबकि जनपद में साहूकार लाइसेंस धारक हैं। इन्हें 1.15 रुपये प्रति सैकड़ा पर रुपया देना होता है लेकिन ये साहूकार भी केवल कागजों पर ही चल रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक देवा में पूर्व कांग्रेसी नेता के निधन के बाद उनके बेटे ने अपनी बंद पड़ी फैक्ट्री को शुरू कराने के लिए तीन साल पहले रुपयों की जरूरत पड़ी तो उसने सूदखोर से अलग-अलग किश्तों में अठारह लाख रुपये का कर्ज लिया था। सूदखोर ने उससे हस्ताक्षर किया कोरा चेक ले लिया। कर्ज देते समय ब्याज 10 फीसदी था, जो बाद में बढ़कर 20 फीसदी मासिक हो गया। कई बार कोरे कागज और स्टाम्प पर हस्ताक्षर लिए, पुलिस, प्रशासन, राजनीतिक और वकालत मे सम्पर्क और रसूखदार दबंगों का डर और दबाव बनाया । पीड़ित व्यक्ति अब तक मूलधन से 3 गुना अधिक रुपए दे चुका है। इसके लिए उसने फैक्ट्री, घर, जेवर गिरवी रख दिए, वो भी सूदखोरों ने अपने ही लोगों से ऑने-पौने दामों मे बिकवाया लेकिन फिर भी सूदखोर ने लाखों रुपये बकाया होने की बात कह दी। उसने असमर्थता जताई तो सूदखोर ने पिछले साल चेक बाउंस कराकर उस पर मुकदमा दर्ज करा दिया। अब मामला निपटाने के लिए और रुपये मांग रहे है। उसके और उसके परिवार पर जानमाल का खतरा है और उसकी सामाजिक और पारिवारिक जीवन को सोशल मीडिया और अखबारो मे बदनाम करने की धमकियां दी जाती हैं। और कर्जा चुकाने के चक्कर में उसे अच्छी खासी पैतृक संपत्ति को बेचना पड़ा। यह कर्ज उसके लिए दर्द साबित हो रहा है।
जिले में नहीं है सूदखोरों की लिस्ट
शासन द्वारा अपंजीकृत सूदखोरों से श्रमिकों और किसानों को मुक्ति दिलाने के प्रशासन को सख्त आदेश हैं लेकिन अब तक सूदखोरों को चिह्नित कर न तो लिस्ट बनाई गई और न ही किसी प्रकार की कोई कार्रवाई अमल में लाई गई। पुलिस व प्रशासन का सूदखोरी को लेकर यह ढुलमुल रवैया शासन के आदेश के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करता है।
सूदखोर जमानत के तौर पर रखते हैं ब्लैंक चेक
रुपया देने से पहले अक्सर सूदखोर ब्लैंक चेक पर साइन करवा लेते हैं। कई बार वो जमीन भी लिखवा लेते हैं। समय पर रुपये न आने पर सूदखोर सामाजिक बेइज्जती करते हैं। साथ में चेक बाउंस होने पर जेल भिजवाने की धमकी देते है। ऐसे में कर्ज लेने वाले व्यक्ति को आत्महत्या ही एक रास्ता नजर आता हे। सूदखोरों के चंगुल में फंस चुके लोग बताते हैं कि सूदखोर मनमर्जी का ब्याज वसूलते है।
संगठित गिरोह की तरह चलता है धंधा
जिले में कुछ रसूखदार सूदखोर हैं जो संगठित ढंग से कारोबार को चलाते हैं। ये लोग कर्जदार से लिया चेक परिचित सूदखोर के नाम मनमानी रकम भरकर उसके मार्फत बैंक से बाउंस कराकर मुकदमा दर्ज कराते हैं। जिनमें कुछ अधिवक्ता और व्यवसाई समेत कई अन्य लोग शामिल है जो लोगों को कर्जा देकर मनमानी वसूली के बाद चेक बाउंस के मुुकदमे दर्ज करा चुके है। उसके साथ सूदखोरी का कारोबार करने वाले अन्य लोग खाली रहते हैं और उनका काम बस सूद वसूलना ही है। कई बार तो पुलिसकर्मी भी सूदखोरों की मदद कर कर्जदारों को परेशान करते हैं।
शिकायत करने से कतराते हैं लोग
बेहद जरूरतमंद व्यक्ति ही सूदखोर से कर्ज लेता है, इसलिए उस पर कर्ज चुकाने का खासा दबाव रहता है। कर्जदार तो पूरी रकम चुकाना चाहता है, मगर ब्याज की रकम ही इतनी ज्यादा होती है कि उसकी कमाई इसे चुकाने में ही चली जाती है। सिर पर कर्ज होने की वजह से वह पुलिस प्रशासन से शिकायत करने का जोखिम उठाने में कतराता है। ऊपर से सूदखारों का रसूख भी उनको ऐसा करने से रोक देता है।