नई दिल्ली। डायबिटीज (मधुमेह) मेटाबॉलिज्म से जुड़ी एक समस्या है, जिसमें मरीज का ब्लड ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है। दुनिया में लगभग 422 मिलियन (42 करोड़) लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं। डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसका असर शरीर के कई सारे अंगों पर पड़ता है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा किडनी प्रभावित होती है, जिसे अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है। डायबिटीज से पीड़ित हर 3 में से 1 वयस्क किडनी से संबंधित समस्याओं से पीड़ित है।
डायबिटीज और किडनी फंक्शन के बीच यह कनेक्शन एक बड़ी चिंता का कारण है। ग्लूकोज लेवल बढ़ने से शरीर के कई अंग खासतौर से कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम और किडनी के खराब होने सबसे ज्यादा खतरा होता है। किडनी के डैमेज होने की स्थिति को डायबिटीक नेफ्रोपैथी कहते हैं। डायबिटीक नेफ्रोपैथी एक तरह का क्रोनिक किडनी डिजीज़ है। हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की समस्या से परेशान लोगों को इसका ज्यादा खतरा होता है।
किडनी शरीर के आंतरिक संतुलन को बनाए रखने और ब्लड से अपशिष्ट व अतिरिक्त तरल पदार्थों को फ़िल्टर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डायबिटीज में ब्लड शुगर लंबे समय तक हाई रहने से किडनी की नाजुक फ़िल्टर इकाइयों को नुकसान होता है, जिन्हें नेफ्रॉन के रूप में जाना जाता है।
इन तरीकों से डैमेज होती है किडनी
ग्लोमेरुलर डैमेज
हाई ब्लड शुगर का लेवल ग्लोमेरुली (किडनी के नेफ्रॉन के भीतर छोटी ब्लड वेसेल्स) को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे अपशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
पुरानी सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव
ये सूजन संबंधी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करके और फ्री रेडिकल्स के निर्माण को बढ़ावा देकर किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट (एजीई) का संचय
हाई ब्लड शुगर के स्तर पर प्रोटीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एजीई का फॉर्मेशन होता है, जो किडनी फंक्शन को ख़राब कर सकता है और सूजन व फाइब्रोसिस का कारण बन सकता है।
डायबिटीज के साथ अक्सर हाई ब्लड प्रेशर भी रहता है, जिससे दोनों के बीच एक नुकसानदायक तालमेल बनता है, जो किडनी के नुकसान को और बढ़ा देता है। बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर किडनी में पहले से ही डैमेज ब्लड वेसेल्स पर एक्स्ट्रा प्रेशर डालता है, जिससे डायबिटीज संबंधी नेफ्रोपैथी की गति और तेज हो जाती है।
जैसे-जैसे डायबिटीज किडनी को नुकसान पहुंचाता रहता है, अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ़िल्टर करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। किडनी की कार्यक्षमता में इस कमी से रक्त में विषाक्त पदार्थों का संचय हो सकता है, जिससे कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। डायबेटिक नेफ्रोपैथी वाले व्यक्तियों को दिल के दौरे और स्ट्रोक सहित हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
शीघ्र इलाज और मैनेजमेंट
डॉ. संजीव गुलाटी, प्रेसिडेंट, इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी और प्रिंसिपल डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, दिल्ली का कहना है कि, ‘डायबेटिक किडनी की बीमारी एक साइलेंट किलर है। डायबेटिक किडनी की बीमारी वाले अधिकांश रोगियों में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए, यूरिन एल्ब्यूमिन-टू-क्रिएटिनिन रेशियो (यूएसीआर) और अनुमानित ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (ईजीएफआर) जैसे टेस्ट के जरिए किडनी की कार्यप्रणाली की नियमित निगरानी से इस रोग शीघ्र पता लगाने और समय पर इसके उपचार में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, दवा, खानपान और जीवनशैली में बदलाव के जरिए डायबिटीज के रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर पर नियंत्रण डायबेटिक किडनी की बीमारी को रोकने और मैनेज करने के लिए महत्वपूर्ण है। हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जीवनशैली में बदलाव और दवाएं ब्लड प्रेशर को सही सीमा के भीतर बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।’