‘मुझे तुम नजर से गिरा तो रहे हो, मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे’…मेहदी हसन की यह गजल अमेठी लोकसभा क्षेत्र के लोगों को बहुत याद आ रही होगी. पांच साल पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी क्षेत्र के लोगों ने राहुल गांधी से मुंह मोड़ा, तो गांधी परिवार ने भी पलटकर अमेठी की सुध नहीं ली. वहीं, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट छोड़कर राज्यसभा जाने का फैसला किया, तो रायबरेली को सियासी संदेश देना नहीं भूलीं. सोनिया ने गुरुवार को रायबरेली क्षेत्र की जनता को एक भावुक पत्र लिखकर कहा कि अब वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन उनका मन और प्राण हमेशा रायबरेली के पास रहेंगे.
सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों को संबोधित करते हुए पत्र में लिखा है, ‘मेरा परिवार दिल्ली में अधूरा है. वह रायबरेली आकर आप लोगों के साथ मिलकर ही पूरा होता है. यह नाता बहुत पुराना है और अपनी ससुराल से मुझे सौभाग्य की तरह मिला है.’ सोनिया ने फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी का हवाला देते हुए रायबरेली के साथ अपने परिवारिक रिश्ते और नाते की दुहाई दी, लेकिन अमेठी का जिक्र तक नहीं किया, जबकि सोनिया ने अपनी सियासी पारी का आगाज अमेठी से ही किया था. हालांकि, जब भी गांधी परिवार के दुर्ग की बात होती थी तो रायबरेली और अमेठी का एक साथ नाम लिया जाता था. सोनिया रायबरेली के लिए सियासी संदेश दे रही हैं, लेकिन अमेठी का नाम तक नहीं लिया.
उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट से नेहरू-गांधी परिवार का एक भावनात्मक रिश्ता रहा है. अमेठी में राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार मिले पांच साल होने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए अभी तक यह जख्म हरे हैं. ऐसे में गांधी परिवार का लगाव और भावनात्मक रिश्ता अमेठी से पहले की तरह नहीं रहा. 2019 के बाद से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने एक से दो बार ही अमेठी का दौरा किया है. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद गांधी परिवार से कोई भी अमेठी नहीं गया है. इतना ही नहीं, गांधी परिवार का कोई प्रतिनिधि भी अमेठी में नहीं है और अब तो सोनिया गांधी भी अमेठी से मुंह मोड़ रही हैं
रायबरेली से गांधी परिवार का नाता
कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता अमेठी और रायबरेली के साथ काफी पहले जुड़ गया था. रायबरेली के साथ नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता चार पीढ़ियों का है और वो आजादी से पहले का है, जबकि अमेठी सीट से गांधी परिवार का लगाव 1977 में हुआ है, जब संजय गांधी चुनाव लड़े. रायबरेली से सोनिया गांधी के ससुर और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बने थे, उसके बाद से इंदिरा गांधी ने अपनी कर्मभूमि बनाई. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1967 के आम चुनावों में यहां से जीत हासिल की. इसके बाद 1971 के चुनावों में भी इंदिरा गांधी यहां से जीतीं.
साल 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद जब 1977 में चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी को रायबरेली में जनता पार्टी के राजनारायण के हाथों हार मिली. इसके बाद गांधी परिवार ने 43 सालों तक रायबरेली क्षेत्र से मुंह फेर लिया था. इंदिरा गांधी ने 1978 के उपचुनावों में दक्षिण का रुख किया और पहले कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट को चुना. साल 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेंडक (तेलंगाना) सीट से चुनाव लड़ी थीं और दोनों ही सीटों से जीतने में कामयाब रही थीं, लेकिन उन्होंने रायबरेली सीट से इस्तीफा देकर मेंडक सीट को चुना. इसके बाद इंदिरा गांधी कभी भी रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ीं.
इंदिरा ने रायबरेली को दिया था संदेश
दिलचस्प बात है कि इंदिरा गांधी 1984 तक जिंदा रहीं, लेकिन दोबारा रायबरेली का रुख तक नहीं किया और मेडक से ही सांसद रहीं. इंदिरा गांधी की हार के बाद गांधी परिवार से सोनिया गांधी 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ने आईं. इस तरह से 43 सालों तक गांधी परिवार से कोई भी सदस्य रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन गांधी परिवार के रिश्तेदार अरुण नेहरू और शीला कौल रायबरेली से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे थे. सोनिया गांधी 2004 से लेकर अभी तक रायबरेली सीट से सांसद हैं. मोदी लहर में भी सोनिया गांधी रायबरेली से जीतने में सफल रही हैं.
वहीं, रायबरेली के बगल की अमेठी लोकसभा सीट है, जो रायबरेली जिले से ही कटकर बनी है. 1977 में पहली बार संजय गांधी चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद 1980 में अमेठी सीट से संजय गांधी और उसके बाद राजीव गांधी लोकसभा चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. सोनिया गांधी ने सियासत में कदम रखा तो रायबरेली को नहीं बल्कि अमेठी सीट को अपनी कर्मभूमि चुना था. 1999 में वो अमेठी से सांसद चुनी गईं और उसके बाद 2004 में राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट छोड़ दी.
गांधी परिवार ने जब मुंह मोड़ा
गांधी राहुल 2004 से लेकर 2014 तक यानी लगातार तीन बार अमेठी से जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों हार गए. रायबरेली और अमेठी संसदीय सीटें गांधी परिवार की गढ़ मानी जाती रही हैं, लेकिन 2019 में मोदी लहर में अमेठी सीट को गांधी परिवार गंवा चुका है. ऐसा लगाता है कि गांधी परिवार ने जिस तरह से 1980 में रायबरेली से नाता तोड़ लिया था, उसी तरह से अमेठी सीट से भी मुंह मोड़ रखा. राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं और 2024 में उनके उसी सीट से ही चुनाव लड़ने की संभावना है. इसके चलते ही गांधी परिवार अमेठी की सुध नहीं ले रहा. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक अमेठी तक की सुध नहीं ले रही हैं.
माना जा रहा है कि गांधी परिवार अमेठी के लोगों को सियासी संदेश देना चाह रहा, क्योंकि गांधी परिवार के मन में अभी 2019 के लोकसभा चुनाव की हार के जख्म हरे हैं और वो अभी भरे नहीं हैं. सोनिया गांधी के पत्र से एक बात को साफ है कि गांधी परिवार के लिए रायबरेली की अपनी एक अहमियत है, लेकिन अमेठी से मोहभंग हो चुका है. सोनिया ने जिस तरह रायबरेली के लोगों को कहा है कि उनका रायबरेली से रिश्ता-नाता बहुत पुराना है और अपनी ससुराल से सौभाग्य में मिला है. साथ ही कहा कि मुझे पता है कि आप भी हर मुश्किल में मुझे और मेरे परिवार को वैसे ही संभाल लेंगे जैसे अब तक संभालते आए हैं. सोनिया का संदेश साफ है कि रायबरेली सीट से गांधी परिवार का कोई चुनावी मैदान में होगा.
अमेठी से ज्यादा रायबरेली की अहमियत
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार के चुनाव लड़ने की संभावना बहुत की कम दिख रही है, जिसके चलते माना जा रहा है कि कांग्रेस अमेठी सीट को क्या त्याग सकती है. कांग्रेस पार्टी इस बार इस सीट पर प्रियंका गांधी को रायबरेली सीट से चुनावी मैदान में उतार सकती है. वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि रायबरेली और अमेठी लोकसभा के साथ गांधी परिवार के लगाव में काफी अंतर है. अमेठी से गांधी परिवार का लगाव 1977 में हुआ है, जबकि रायबरेली से आजादी से बाद है.
रायबरेली सीट के साथ मोतीलाल नेहरू से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी का नाता जुड़ा हुआ है. आजादी से पूर्व किसान आंदोलन के दौरान 7 जनवरी 1921 को मोतीलाल नेहरू ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को भेजा था. ऐसे ही 8 अप्रैल 1930 के यूपी में दांडी यात्रा के लिए रायबरेली को चुना गया और उस समय जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष थे, उन्होंने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को रायबरेली भेजा था.
आजादी के बाद पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो नेहरू इलाहाबाद-फूलपुर सीट को नहीं छोड़ना चाहते थे, जिसके चलते फिरोज गांधी को रायबरेली सीट से चुनाव लड़ाया गया. इसके बाद इंदिरा गांधी और फिर सोनिया गांधी सांसद रहीं, लेकिन अमेठी सीट पर पहली बार 1977 में उतरे संजय गांधी को हरा दिया था. इसके बाद 2019 में राहुल गांधी को बीजेपी के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा है. ऐसे में अमेठी की सुध कौन लेगा, लेकिन राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ यूपी में दाखिल हो रही है, जो 18 फरवरी को अमेठी में प्रवेश करेगी. इस तरह राहुल गांधी लंबे समय के बाद अमेठी में होंगे, लेकिन क्या 2024 लोकसभा चुनाव में भी नजर आएंगे?