नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि समाज में जिस तथाकथित मुफ्त उपहार की अंधी दौड़ देखने को मिल रही है, उसकी राजनीति खर्च करने संबंधी प्राथमिकताओं को बिगाड़ देती है। उन्होंने इस बार पर जोर दिया कि जरूरत जेबों को नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क को सशक्त करने की है।
भारत में सबसे ज्यादा मानवाधिकार
उपराष्ट्रपति ने मानवाधिकार दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा ‘भारत मंडपम’ में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया का कोई भी हिस्सा हमारे देश की तरह मानवाधिकारों से इतना समृद्ध नहीं है।
इस अवसर पर मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई गई। भारत में संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय समन्वयक शोम्बी शार्प भी मंच पर उपस्थित थे। शार्प ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस का संदेश पढ़ा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि धनखड़ ने कहा कि एक संयोग है कि यह (मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 75वीं वर्षगांठ) हमारे अमृत काल के बाद आई है और हमारा अमृत काल मुख्यत: मानवाधिकारों और मूल्यों के फलने-फूलने के कारण हमारा गौरव काल बन गया है।
कुछ वैश्विक संस्थाओं ने भारत के साथ अनुचित व्यवहार किया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि कुछ वैश्विक संस्थाओं ने भारत के साथ सर्वाधिक अनुचित व्यवहार किया है, क्योंकि उन्होंने इसके प्रदर्शन का व्यापक अध्ययन नहीं किया है। उन्होंने इन संस्थाओं से देश के शासन में हुए बड़े बदलाव पर ध्यान देने का आग्रह किया।
मानवाधिकार दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान की गई उनकी यह टिप्पणी अक्टूबर में जारी ‘वैश्विक भूख सूचकांक-2023’ में 125 देशों में भारत के 111वें स्थान पर रहने की पृष्ठभूमि में आई है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह इस बात से हैरान हैं कि 1.4 अरब की आबादी वाले देश के बारे में लोग ‘भूख संकट’ को लेकर बात करने लगते हैं। क्या उन्हें अहसास नहीं है कि अप्रैल 2020 से 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। यही इस देश की ताकत है।
आतंकियों से सहानुभूति मानवाधिकार के प्रति बड़ा अन्याय
जस्टिस मिश्राराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर) अरुण कुमार मिश्रा ने रविवार को कहा कि आतंकवाद पूरे विश्व में नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन करता है। आतंकवादी कृत्यों एवं आतंकवादियों की अनदेखी करना या उनसे सहानुभूति रखना मानवाधिकारों के प्रति बड़ा अन्याय है।
भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस मिश्रा ने यह भी कहा कि उन्नत प्रौद्योगिकियों का नैतिक प्रभाव गंभीर चिंता का विषय है। असमानता में नाटकीय वृद्धि के साथ-साथ जलवायु, जैव विविधता और प्रदूषण के तिहरे संकट पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि आधुनिक प्रौद्योगिकियों की चुनौतियां समकालीन समाज के ताने-बाने में बुनी जाती हैं। नई डिजिटल प्रौद्योगिकियों ने लोगों के रहने के तरीके को बदल दिया है। इंटरनेट उपयोगी है, लेकिन उसका स्याह पक्ष भी है। वह घृणा फैलाने वाली सामग्री के जरिये निजता का उल्लंघन कर रहा है।