नई दिल्ली। फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों में इस साल 31 जनवरी तक पॉक्सो कानून के तहत 2.43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। यह बात एक गैर सरकारी संगठन द्वारा प्रकाशित शोधपत्र में कही गई है। कहा गया है कि 2022 में ऐसे मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर दोषसिद्धि दर मात्र तीन प्रतिशत रही। नाबालिग बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए पॉक्सो कानून बनाया गया है।
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के शोधपत्र – ‘न्याय की प्रतीक्षा : भारत में बाल यौन शोषण के मामलों में न्याय तंत्र की प्रभावकारिता का विश्लेषण’ में कहा गया है कि अगर पॉक्सो का नया मामला न हो तो भी लंबित मामलों को निपटाने में देश को कम से कम नौ साल लगेंगे। अरुणाचल प्रदेश और बिहार जैसे कुछ राज्यों में लंबित मामलों को निपटाने में 25 साल से अधिक का समय लग सकता है।
शोधपत्र के निष्कर्षों ने बाल यौन शोषण पीडि़तों को न्याय देने के लिए फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतें स्थापित करने के केंद्र सरकार के फैसले और करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद देश की न्यायिक प्रणाली पर सवालिया निशान लगाया है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अरुणाचल प्रदेश को पॉक्सो अधिनियम के तहत लंबित मामलों की सुनवाई पूरी करने में 30 साल लगेंगे, जबकि दिल्ली को लंबित मामलों की सुनवाई पूरी करने में 27 साल, बंगाल को 25 साल, मेघालय को 21 साल, बिहार को 26 साल और उत्तर प्रदेश को 22 साल लगेंगे।
कितने मामलों में अबतक हुई सजा?
साल 2019 में स्थापित फास्ट-ट्रैक अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई एक साल के भीतर पूरी कर फैसला सुनाना था, लेकिन 2,68,038 मामलों में से केवल 8,909 मामलों में सजा हुई। केंद्र सरकार ने हाल ही में 1,900 करोड़ रुपये से अधिक के आवंटन के साथ 2026 तक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में एफटीएससी को जारी रखने की मंजूरी दी है।
देश में प्रत्येक एफटीएससी औसतन प्रति वर्ष केवल 28 मामलों का निपटारा करती है। यह रिपोर्ट कानून और न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर आधारित है।
रोजाना महज तीन बाल विवाह की मिलती है सूचना
शोधपत्र में कहा गया है कि प्रत्येक एफटीएससी से एक तिमाही में 41-42 मामलों और एक वर्ष में कम से कम 165 मामलों का निपटारा करने की उम्मीद थी, लेकिन एफटीएससी निर्धारित लक्ष्य हासिल करने में असमर्थ हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2011 की जनगणना के अनुसार, हर दिन 4,442 नाबालिग लड़कियों की शादी होती थी, यानी हर मिनट तीन बच्चों को बाल विवाह में धकेल दिया जाता था। हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, हर दिन केवल तीन बाल विवाह की सूचना मिलती है।