नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले में उस टिप्पणी को गंभीरता से लिया है कि प्रत्येक महिला किशोरी को यौन इच्छा पर नियंत्रण रखने की जरूरत है. हाईकोर्ट ने लड़कियों से आग्रह किया था कि वे अपनी सेक्सुअल इच्छाओं पर कंट्रोल रखें क्योंकि समाज की नजरों में जब लड़कियां सिर्फ दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती है तो वह हार जाती हैं. अब इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये टिप्पणियां “आपत्तिजनक और अनुचित हैं, जो पूरी तरह से संविधान की धारा 21 के तहत किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन है.” ऐसे मामलों में न्यायाधीशों से व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती. हमने पाया कि पैरा 30.3 समेत इसके कई हिस्से बेहद आपत्तिजनक हैं.
जजों को अपनी निजी राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित लड़की और पश्चिम बंगाल राज्य को नोटिस जारी किया गया है. नोटिस का जवाब 4 जनवरी तक तलब करते हुए जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने टिप्पणी की और कहा, ऐसे मामलों में जजों को अपनी निजी राय नहीं व्यक्त करनी चाहिए. ऐसा आदेश किशोरों के अधिकारों का हनन है. अभियुक्तों को बरी करने के आदेश के पीछे पॉक्सो एक्ट से संबंधित कोई कारण नहीं बताया गया है. दोषी को बरी करना भी पहली निगाह में उचित नहीं जान पड़ता. सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा कि वो हाईकोर्ट के ऑर्डर की प्रति भी मंगवाए. कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान को न्याय मित्र यानी अमाइकस क्यूरी भी नियुक्त किया है.