नई दिल्ली: लड़कियों को ‘शारीरिक इच्छाओं’ पर नियंत्रण की नसीहत देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला देते वक्त जजों को अपनी निजी राय व्यक्त करने या उपदेश देने से बचना चाहिए. हाईकोर्ट की टिप्पणी न सिर्फ गैरजरूरी और आपत्तिजनक है, बल्कि अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मिले मूल अधिकार का भी हनन है.
18 अक्टूबर को कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाबालिग के साथ शारीरिक उत्पीड़न के मामले में एक फैसला दिया था. हाईकोर्ट के जस्टिस चित्तरंजन दास और पार्थसारथी सेन ने नाबालिग लड़की के शारीरिक शोषण के आरोपी लड़के को पॉक्सो एक्ट की धाराओं से बरी कर दिया था. जजों ने दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बनने को आधार बनाते हुए यह फैसला दिया था. इतना ही नहीं जजों ने युवाओं को बहुत सी नसीहत दे दी थी.
क्या बोला था हाईकोर्ट?
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था, ‘लड़कियों को अपनी शारीरिक इच्छा को नियंत्रण में रखना चाहिए और 2 मिनट के आनंद पर ध्यान नहीं देना चाहिए’. हाईकोर्ट ने लड़को को भी नसीहत दी थी कि उन्हें भी लड़कियों की गरिमा का सम्मान करना चाहिए. हाईकोर्ट के इस फैसले की जानकारी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान ले लिया. आज यह केस सुप्रीम कोर्ट में In Re: Right to Privacy of Adolescent के नाम से सुनवाई के लिए लगा.
कब होगी मामले की अगली सुनवाई?
जस्टिस अभय एस ओक और पंकज मिथल की बेंच ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों को अवांछित बताया. बेंच ने एडिशनल सॉलिसीटर जनरल माधवी दीवान को मामले में अपनी सहायता के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया. साथ ही कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से पूछा कि क्या वह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर करना चाहती है. राज्य सरकार के वकील सरकार से निर्देश लेकर कोर्ट को अवगत कराएंगे. मामले की अगली सुनवाई 4 जनवरी को होगी