चीन आए दिन दुनिया को अपने हैरतअंगेज कारनामों से चौंकाता रहता है. कभी आसमान में मानव निर्मित सूरज बनाने की कोशिश करता है तो कभी चांद पर बस्तियां बसाने की बात कहता है. अब चीन ने दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला बनाई है. इसकी गहराई 2400 मीटर है यानी धरती से करीब 2.5 किलोमीटर नीचे है. चीन ने इस प्रयोगशाला में काम करना भी शुरू कर दिया है. चीन दावा कर रहा है कि धरती की गहराई में वह ‘डार्क मैटर’ की तलाश में गया है.
डार्क मैटर वैज्ञानिकों के लिए आज भी रहस्य बना हुआ है. माना जाता है कि पूरी दुनिया डार्क मैटर से बनी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की वजह से ही पूरा यूनिवर्स एक क्रम में बंधा हुआ है. इसके अलावा वैज्ञानिकों ने माना है कि चांद, तारों, सूरज और ग्रहों के बीच का तालमेल भी डार्क मैटर की वजह से है, क्योंकि पूरे यूनिवर्स में इतना गुरुत्वाकर्षण है ही नहीं कि वो सभी ग्रहों, तारों, सूरज, चांद को एक ऑर्बिट में बांध सकें.
माना जाता है कि डार्क मैटर ऐसे पदार्थों से बना है जो न तो रोशनी को अपनी ओर खींचते हैं और न ही उनसे रोशनी निकलती है. पिछले साल अमेरिका में डार्क मैटर की खोज के लिए लक्स जेप्लिन एलजेड नाम का एक प्रयोग किया गया था.
चीन कर रहा डार्क मैटर की खोज
गुरुवार को चीन की सरकार समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने जानकारी दी है कि चीन धरती के नीचे जिस प्रयोगशाला में काम कर रहा है, उसका नाम जिनपिंग लैब है और उसे बनाने में तीन साल का समय लगा.
चीनी मीडिया के मुताबिक, डार्क मैटर की खोज के लिए दुनियाभर में अभी चीन से मुफीद जगह नहीं है, क्योंकि उनके पास सबसे उन्नत प्रयोगशाला है. इस लैब से धरती की गहराई में प्रयोगों के नए मोर्चे खुलने की उम्मीद है.
धरती के नीचे क्यों हो रही है खोज?
सिंघुआ के भौतिक विज्ञानी ने कहा कि हम जितनी गहराई में जाएंगे हम उतनी ही कॉस्मिक किरणों को रोक सकेंगे. इस वजह से ही गहराई में बनी हुई लैब डार्क मैटर का पता लगाने के लिए एक आदर्श ‘अल्ट्रा-क्लीन’ साइट मानी जाती है.