साल के आखिरी में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव 2023 के 4 राज्यों के नतीजे सभी के सामने हैं जबकि एक राज्य मिजोरम में वोटों की गिनती की जा रही है. इस चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बंपर जीत हासिल की. कांग्रेस सिर्फ तेलंगाना में अपना जलवा बिखेर पाई.
इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेताओं पर भरोसा करते हुए उन्हें चुनाव अभियान में सबसे आगे रखा. देश के हिंदी पट्टी राज्यों में बुरी तरह विफल होन के बाद अब इन नेताओं के भविष्य पर सवालिया निशान खड़े होने लगे हैं. मध्य प्रदेश में जहां कमलनाथ ने मोर्चा संभाला हुआ था, राजस्थान में अशोक गहलोत ने कमान संभाली हुई थी और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल पार्टी का चेहरा बने हुए थे. इन्हीं तीनों नेता के बारे में बात करते हैं.
अशोक गहलोत, राजस्थान
राजस्थान में कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत ने राज्य में चुनावी अभियान का नेतृत्व किया. उन्होंने अपनी कल्याणकारी योजनाओं और कई लोकलुभावन वादों के आधार पर वो हासिल करने की कोशिश की जो पिछले तीन दशकों में कभी नहीं हुआ- सत्ता संभालकर रखना. राज्य में 72 साल के अशोक गहलोत ही पार्टी का वो चेहरा था जो पिछले कई महीनों से सरकार की योजनाओं की बात कर रहे थे. चुनाव से कुछ दिन पहले ही पार्टी के अन्य नेताओं को पोस्टर्स और बैनर्स पर जगह मिली. कहने का मतलब ये है कि ये पूरा चुनाव अशोक गहलोत के दम पर लड़ा गया.
ये चुनाव अशोक गहलोत के लिए राजनीतिक अस्तित्व की नजर से भी महत्वपूर्ण था. वो राजस्थान में अपनी जमीन बचाने की कोशिश भी कर रहे थे. उनके धुर विरोधी कांग्रेस नेता सचिन पायलट के साथ उनके संबंध किसी से छिपे नहीं. वो लगातार विरोध कर रहे थे, हालांकि चुनाव के समय इन दूरियों को नजदीकियों में बदलने की पार्टी की तरफ से पूरी कोशिश की गई लेकिन इसका फायदा होता नहीं दिखा और कांग्रेस राजस्थान में हार गई. अब अशोक गहलोत के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले खुलकर अपना तांडव मचाते हुए दिख सकते हैं.
कमलनाथ, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में भी लगभग राजस्थान वाली ही स्थिति देखने को मिली और राज्य में कमलनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया. पार्टी का चुनाव प्रचार अभियान उनके चेहरे के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा. वहीं, पार्टी के दूसरे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की भी पर्दे के पीछे सक्रिय भूमिका रही. कांग्रेस कि खिलाफ बीजेपी की बंपर जीत को देखते हुए अब कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की जोड़ी को अब अपना कदम छोटा होता दिखेगा. कांग्रेस को राज्य में संगठन के लिए नया नेता ढूंढना आसान नहीं होगा क्योंकि उसके पास कोई मजबूत चेहरा भी नहीं है.
जीतू पटवारी वो नेता हो सकते थे जिन्हें राहुल गांधी के करीबी के रूप में देखा जाता है और भविष्य में पार्टी के अभियानों का नेतृत्व करने की संभावना के रूप में देखा जा सकता था, वो भी राऊ विधानसभा सीट से चुनाव हार गए.
भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़
हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा है. जहां पर कहा जा रहा था कि भूपेश बघेल बीजेपी को कड़ी चुनौती दे सकते हैं. हालांकि भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया गया था लेकिन चुनावी अभियान और रणनीति पर उनकी छाप थी. चाहे उनको धरती पुत्र की तरह पेश करना हो, ओबीसी का चेहरा बनाना हो या फिर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना हो. बीजेपी के खिलाफ उनके आक्रामक रवैये को अन्य राज्यों में मॉडल की तरह पेश किया गया, साथ ही अन्य राज्यों में कांग्रेस प्रचार अभियान में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही.
उधर, बीजेपी ने भी कांग्रेस की रणनीति का मुकाबला करने के लिए भूपेश बघेल के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया. उन्हें एक ऐसे भ्रष्ट नेता के रूप में पेश किया जिसने जबरन धर्मांतरण को बढ़ावा दिया और आदिवासियों के लिए बिल्कुल काम नहीं किया.