नई दिल्ली। तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने वाली संसदीय समिति ने कानूनी कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने की सराहना की है। इसके साथ ही इसने ताकीद की है कि संवाद और सुनवाई के साधनों के रूप में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल माकूल सुरक्षा उपायों के साथ हो और तभी इस दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए।
भाजपा के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि आनलाइन या इलेक्ट्रानिक प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति देना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन केवल राज्य द्वारा निर्दिष्ट तरीकों के माध्यम से यह अनुमति दी जानी चाहिए। समिति ने कहा, प्रस्तावित कानून में इलेक्ट्रानिक माध्यम से सुनवाई की स्वीकृति का प्रविधान है, जिसमें जांच, पूछताछ या सुनवाई संबंधी कार्यवाही उन इलेक्ट्रानिक संचार उपकरणों के माध्यम से की जा सकती है, जिनमें डिजिटल साक्ष्य होने की संभावना है। इलेक्ट्रानिक संचार में मोबाइल, कंप्यूटर या टेलीफोन जैसे उपकरण शामिल हैं।
लेक्ट्रानिक मोड में आयोजित की जा सकती हैं सुनवाई
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खंड 532 के अनुसार, इस संहिता के तहत सभी सुनवाई, पूछताछ और कार्यवाही-समन और वारंट जारी करने, सेवा और निष्पादन सहित जांच का आयोजन, शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच, सत्र न्यायालय के समक्ष मुकदमा, वारंट मामलों में सुनवाई इलेक्ट्रानिक संचार या आडियो-वीडियो इलेक्ट्रानिक साधनों के उपयोग के माध्यम से इलेक्ट्रानिक मोड में आयोजित की जा सकती हैं।
अमित शाह ने BNS, BNSS और BS विधेयक किए पेश
बताते चलें, गृह मंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक पेश किए थे। तीनों प्रस्तावित कानून दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम, 1898, भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे।