बाराबंकी। बुधवार को बड़ा ठाकुरद्वारा में श्री रघुनाथ जी के सामने न्यास पदाधिकारियों की गहमागहमी के बीच बैठक आहूत हुई। आरोपों-प्रत्यारोपों के दौर चले। कसमें खाने की बातें हुईं। बुद्धिजीवियों के बीच मनः रोष और कुण्ठा स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। यह सब कुछ ‘सियाराम’ के सामने हो रहा था। निष्कासित अध्यक्ष पवन वैश्य और सचिव अजय सिंह के बीच पुरानी बैठकों को लेकर काफी गर्माहट दिखी। कोष को लेकर काफी चर्चाएं हुईं। लेकिन, इन सबके बीच निष्कासित कोषाध्यक्ष के मुंह से प्रभु राम के सम्मुख यह अवश्य निकल गया कि, हम अभी लाकर आभूषण दे दें। अर्थात, पूर्व में पवन वैश्य पर जो आरोप लग रहे थे कि, ठाकुरद्वारा में स्थापित श्री प्रभु के आभूषण उन्होनें रखे हुये हैं, वह सत्य साबित हुई। हरि इच्छा के आगे सत्य और असत्य के तमाम राजफाश होते रहे। बता दें कि, शिवसेना (यूबीटी) जिला प्रमुख मनोज मिश्र विद्रोही ने जिलाधिकारी को पत्र प्रेषित कर आभूषण निष्कासित अध्यक्ष द्वारा रखे जाने का जिक्र भी किया था। सचिव अजय सिंह ने बताया कि, बीती 22 दिसम्बर 2022 को तत्कालीन अध्यक्ष पवन वैश्य के निष्कासन का निर्णय लिया गया था। उन्हें डाक द्वारा सूचना भी भेजी गई। लेकिन, उन्होनें ग्रहण नहीं की। बीती 14 जनवरी 2023 को समाचार पत्र में निष्कासन की सूचना सार्वजनिक की गई। उन्होनें बैठक में बात रखी कि, ठाकुरद्वारा की एक दुकान का किराया 12 हज़ार रूपया और एक दुकान का किराया 60 रूपया, यह कैसे न्याय संगत है? ऐसे में भगवान के भोग, साजसज्जा, बिजली, सफाई आदि का खर्च कैसे सम्भव है? मात्र खोया मण्डी के किराये से मन्दिर का खर्च चल रहा है। बैठक में मौजूद वर्तमान अध्यक्ष रमेश चन्द्र भारती, सचिव अजय सिंह, कोषाध्यक्ष चन्द्र प्रकाश गुप्त सहित अन्य सदस्यों ने एकमत से कहा कि, भगवान के पुराने जेवरात नहीं दिये जा रहे हैं। यह खेदजनक और निन्दनीय है। इसके विरूद्ध वैधानिक कार्रवाई होनी चाहिये। सदस्य प्रदीप जायसवाल ने कहा कि, निष्कासित अध्यक्ष पवन वैश्य और सचिव अजय सिंह, दोनों के बीच पहले एकरूपता थी। सामन्जस्यता थी। एकाएक से ऐसा क्या हो गया कि, आपसी सामन्जस्य ही नहीं बैठ रहा है। उन्होनें सौदेबाजी तक की शंका जता डाली। उन्होनें कहा कि, मेरे पिता और बाबा भी इस मन्दिर से जुड़े रहे हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ। सचिव अजय सिंह ने बताया कि, पूर्व में हुई समस्त बैठकें रजिस्टर में दर्ज हैं। गहमागहमी के बीच हर कोई एक दूसरे पर आरोप लगाते नज़र आया। हर एक सदस्य और पदाधिकारी की आवाजें गूंज रही थीं। सिर्फ एक ही वहां पर शांति से सबकुछ सुन रहे थे, वह थे ‘प्रभु राम।’ कोषाध्यक्ष चन्द्र प्रकाश गुप्ता ने प्रदीप जायसवाल से कहा कि, आपने ही तो मुझे इस ट्रस्ट में आने के लिये प्रेरित किया। इस पर प्रदीप जायसवाल ने कहा, आपका व्यवहार कार्य अच्छा था। आप चीजों को भलीभांति समझते थे। इसलिये, इन्हें लाये। इसी बीच, निष्कासित पूर्व अध्यक्ष पवन वैश्य भी आ पहुंचे। उनके आने के बाद मामला गम्भीर हो चला। उन्होनें कहा कि, जिस सोसायटी में एक कोषाध्यक्ष है, बिना उसको निकाले दूसरा कोषाध्यक्ष कैसे नियुक्त हो गया? हमने मना किया था। यह सब हो ही रहा था कि, पूर्व कोषाध्यक्ष महावीर भी आ गये। फिर क्या था? वाचिक शब्दबाणों की श्रंखला में लगातार बढ़ोत्तरी ही होती रही। लेकिन, जब बात आभूषणों की आई तो पवन वैश्य ने कहा कि, मैं अभी लाकर दे दूं। इस पर सदस्य एडवोकेट बलराम सिंह ने कहा कि, यह सुन्दर बात। अगर यह आभूषण लाकर दे रहे हैं तो इन्हें बतौर सदस्य पुनः शामिल किया जा सकता है। लेकिन, बड़ा ठाकुरद्वारा में ‘श्रीराम’ के सामने चर्चाओं और आरोपों का लगा बाज़ार अपने पूरे परवान पर ही चढ़ता नज़र आया। वार्ता बीच, बिल्डर नौशाद का भी नाम आ ही गया। पवन वैश्य ने कहा कि, ‘बिल्डर नौशाद से दुकानों को लेकर 60 और 40 की बात तय हुई थी। बाकी आप आइये, हम आपको सबकुछ बतायेंगे।’ दुर्भाग्य कि, वहां पर कई सारी बातें खुल कर नहीं बोली गईं। सचिव अजय सिंह द्वारा जारी प्रेस नोट के मुताबिक, न्यास के पूर्व अध्यक्ष को न्यास हितों के प्रतिकूल आचरण करने, न्यास बैठकों में निरन्तर सूचना बाद भी अनुपस्थित रहने, मन्दिर के एक भाग पर निर्मित दुकानों के बिल्डर नौशाद अहमद के साथ मिलकर ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा किये गये करार के विपरीत आचरण करते हुये मन्दिर के अग्रभाग को अधूरा छोड़कर मन्दिर के स्वरूप को बिगाड़ने के कारण निष्कासित करने का निर्णय बहुमत से लिया गया। बताया गया कि, वर्ष 2011 से लगातार अनुरोध करने के बाद भी पवन वैश्य द्वारा प्राचीन आभूषण और रजत पात्र, जिनको विराजमान मूर्तियों के श्रंगार और भोग में प्रयुक्त किया जाता था, निरन्तर मांगे जाने के बाद भी ट्रस्ट को वापस नहीं किया गया है। विगत डेढ़ वर्षों से न्यास के यूनियन बैंक के बचत खाते पर पवन कुमार वैश्य ने पत्र प्रेषित कर धन निकासी पर रोक लगा रखी है। एसबीआई एटीएम का किराया भी बैंक खाते में जाता रहा है। इस तरह अन्य कई मुद्दों पर भी बैठक में चर्चा हुई। बैठक में एडवोकेट भरत लाल सिंह, एडवोकेट प्रमोद कुमार वर्मा, रमेश चन्द्र कुरील एवं वीपी दास आदि शामिल रहे। इस गहमागहमी भरी बैठक को देखकर अन्य लोगों के मन में यह प्रश्न उठ ही रहा था कि, ‘प्रभु! देख रहे हैं? यह आपकी सेवा के लिये वार्ता कर रहे हैं या फिर कोष के लिये?’