- अर्घ्य देने के बाद छठी मइया के लिए बनाए खास ठेकुओं और प्रसाद को बांटा गया
- शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक के लोगों ने सवेरे घाट व तालाबों पर बनाये गये पूजा घाटों पर जाकर की पूजा-अर्चना
लखनऊ।नियम,संयम,आस्था और संस्कार के पर्व छठ का उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ सोमवार को समापन हो गया है।सोमवार सुबह नदी, तालाब और नहरों के पानी में उतरकर महिलाओं ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया और संतान के कल्याण के लिए मुरादें मांगी। अर्घ्य देने के बाद छठी मइया के लिए बनाए गए खास ठेकुआ और प्रसाद लोगों में बांटा गया। चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ था। इस दौरान लोग भक्ति भाव में डूबे नजर आए और गोमती नदी के किनारे आस्था का सैलाब देखने को मिला।इस बार प्रदेश भर में छठ की छटा की आई तस्वीरें देखकर अहसास हुआ, कि यह अब कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं है।बल्कि देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तर प्रदेश भर में हर जगह एक समान आस्था और श्रद्धा के साथ लोगों ने छठ का महापर्व मनाया।
यूं तो नदी, तालाब, पोखर के किनारे का सन्नाटा आधी रात बाद से ही छंटने लगा था। लेकिन तड़के चार बजे जब घरों से महिलाओं, युवतियों, पुरुषों, बच्चों का रेला गीत गाते निकला तो माहौल भक्तिमय हो उठा। एक स्वर में छठी मैया के गीत ‘कांच ही बांस क बहंगिया बहंगी लचकत जाए, हाेईं ना बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाए… गीत कानों को प्रिय लग रहे थे। लोक पर्व से जुड़े इस तरह के गीतों ने ग्रामीण क्षेत्रों को भक्ति के रंग में डुबो दिया। व्रती पानी में खड़े होकर कुछ इस तरह इत्मीनान से सूर्यदेव के उगने का इंतजार कर रहे थे, जैसे उन्हें कोई जल्दबाजी ही न हो। जबकि सुबह कुड़िया घाट,झूलेलाल पार्क,लक्ष्मण मेला मैदान, झूलेलाल वाटिका,पक्का पुल घाट, डालीगंज पुल, खाटू श्याम मंदिर घाट,खदरा आदि घाटों के किनारे ठंड भी कम सितम नहीं ढा रही थी, लेकिन व्रतियों के चट्टानी इरादों के सामने उसकी एक न चली। इसके साथ ही इंतजार खत्म हुआ और सूर्यदेव की लालिमा नजर आते ही व्रती महिलाओं ने सूर्य को अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि की कामना की। छठ मइया के गीत से पूजा घाट गूंज रहे थे।सूर्यदेव की लालिमा फूटते ही हजारों की तादाद में एक साथ अर्घ्य दे रहे व्रती मन को मोह रहे थे। इसके साथ खुशियों की जबरदस्त आतिशबाजी ने माहौल को खुशनुमना बना दिया। में महिलाओं ने तड़के सवेरे घाट पर जाकर पूजा की तैयारी की और फिर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया।घाटों पर प्रशासन की तरफ से खास इंतजाम भी किए गए। महिलाओं के साथ उनके पति और बच्चे भी घाटों पर नजर आए। इस दौरान घाटों पर लोग गन्ने भी हाथ में लिए रहे। सूर्य को अर्घ्य देकर लोगों ने छठी मैया के गीत गाए और प्रसाद खाकर व्रतियों ने व्रत तोड़ा।
युवतियों ने सेल्फी लेकर छठ पूजा को बनाया यादगार
छठ घाटों पर जाने की जितनी चिंता व्रती महिलाओं को रही उतनी ही परिजनों को भी। घर के सभी सदस्य खास कर युवतियां नये परिधान में श्रंगार कर छठ घाटों पर पहुंची और अपनी बहन, मां और सहेलियों के साथ सेल्फी लेकर छठ पूजा को यादगार बनायी। महानगरों से अपनी मां के साथ घाटों पर पहुंची युवतियों की सहेलियां वर्षो बाद मिली तो वो अपने आप को रोक नही सकी और उन्हें गले लगा कर सुख दु:ख बांटा।झूलेलाल वाटिका पूजा स्थल पर पहुंची रीता, मोनिका और रोशनी ने कहा कि प्रति वर्ष हम लोग यहां अपनी मां के साथ छठ पूजा में आती हैं। हमें इस बात की ज्यादा खुशी होती है कि हम सभी सहेलियां एक वर्ष में इसी बहाने मिल लेती हैं।
डूबते सूर्य को दिया गया था अर्घ्य
इससे पहले रविवार को नदी में उतरकर अस्त हो रहे सूर्य भगवान को दूध और जल से अर्घ्य दिया गया था। इस दौरान घाटों पर नए वस्त्र धारण कर पूजन करने लोग पहुंचे थे। छठ का व्रत काफी मुश्किल होता है, इसलिए इसे महाव्रत भी कहा जाता है। इस दौरान छठी मईया की पूजा की जाती है।छठी मईया सूर्य की बहन हैं लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ मईया ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं।
दीपावली के छठे दिन शुरू होता है छठी मईया का त्योहार
बता दें कि हर साल दीपावली के छठे दिन यात्री कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता है। इसकी शुरुआत चतुर्थी को नहाय-खाय से होती है। अगले दिन खरना या लोहंडा जिसमें गन्ना के रस से बनी खीर प्रसाद के रूप में दी जाती है। षष्ठी को डूबते सूर्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल चढ़ाकर इस पर्व की समाप्ति होती है। छठी मइया को अर्घ्य देकर संतान प्राप्ति और उनके अच्छे भविष्य की कामना की जाती है।