- समय रहते यदि जिले की सबसे बड़ी झील को बचाने के लिये प्रयास नहीं किये गए तो आने वाली पीढ़ियां इस झील का केवल नाम ही सुन पाएंगी
- वर्ष 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर ने इस झील का सौन्दर्यीकरण कराकर इसे पर्यटन स्थल बनाने की बनाई थी कार्ययोजना
- सैकड़ों बार लिखित शिकायती पत्र दिये जाने के बाद भी आज तक झील की जमीन को खाली नहीं कराया जा सका खाली
लखनऊ। राजधानी के बीकेटी तहसील क्षेत्र के राजस्व ग्राम अल्दमपुर, उसरना, परसहिया के बॉर्डर पर स्थित जिले की सबसे बड़ी सौतल झील को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमें प्रदान किया था। लेकिन आज यह झील अवैध कब्जों के कारण लुप्त हो रही है। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में सौतल झील पहुंच रहे प्रवासी पक्षियों को निराशा मिल रही है। पक्षी यहां से निकलकर कर दूसरे ठिकानों पर जा रहे हैं।
बुजुर्ग कहते हैं, कि यह झील 360 बीघे के क्षेत्रफल में फैली हुई थी। यह झील जैवविविधता और नैसिर्गक प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है। मौसम के मुताबिक झील के क्षेत्र में काफी परिवर्तन होता रहता था।इस झील की प्रसिद्धि स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की शरण स्थली के कारण तो है ही साथ ही विविध प्रकार के जलीय पौधों के आश्रय के रूप में भी यह झील काफी मशहूर है।
15 नवम्बर के बाद विदेशी पक्षियों का इस झील में आना प्रारम्भ हो जाता था, जिसमें लालसर, हिवीसील, कोचार्ड, सूरखाल, गोजू, सवल,सुर्खाब, भपटेल आदि हैं।जबकि स्थानीय पक्षियों में कैमा, वाटरहेंन, कारमेंट, बगुला, सारस समेत स्थानीय प्रवासी शिल्ली, पडुंक, अधंगा, दवचीक, व्हीसीलग टेल, नीलसर, संजन आदि के साथ प्रवासी पक्षी वाडहेडगीज, ब्राह्मणी डक, सोवलर, कामन टेल व बत्तख की विभिन्न प्रजातियों की पक्षियाँ शामिल हैं। प्रवासी पक्षियाँ मार्च के अन्तिम व अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक तिब्बत, साइबेरिया आदि ठंडे देशों में वापस लौट जाती हैं।लाखों की संख्या में किस्म-किस्म के पक्षी खासकर शीतकाल में यहाँ दिखाई देते थे। अन्तरराष्ट्रीय पक्षी मलेशिया, चीन, श्रीलंका, जापान, साइबेरिया, मंगोलिया, रूस से जाड़े के मौसम में प्रवास पर यहाँ आते हैं। लेकिन स्थिति यह है कि अब सौतल झील में पानी नहीं है, नतीजतन विदेशी पक्षी दूसरी झीलों की ओर अपना रुख कर रहे हैं।
अल्दमपुर गांव के पूर्व प्रधान व अधिवक्ता अतुल कुमार शुक्ला का कहना है कि सौतल झील में पक्षी अभयारण्य की असीम सम्भावनाए हैं। इस झील के सौन्दर्यीकरण के बाद यह झील पर्यटन का बड़ा केन्द्र भी बन सकता है।उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर ने जिले की सबसे बड़ी इस झील की जमीन से अवैध कब्जे हटाकर इसका सौन्दर्यीकरण कराकर इसे पर्यटन स्थल बनाने की कार्ययोजना बनाई थी।लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद इस झील की लगभग 200 बीघा जमीन पर दोबारा जलालपुर और उसरना गांव के दबंग लोगों ने अवैध कब्जा कर खेती शुरु कर दी।जिससे झील का क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ता चला जा रहा है।
मौजूदा समय में भी झील की लगभग 200 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा कर खेती की जा रही है।झील की जमीन खाली कराने के लिए हमने तहसील संपूर्ण समाधान दिवस,एसडीएम व जिलाधिकारी को सैकड़ों बार लिखित शिकायती पत्र दिये,लेकिन आज तक भी झील की जमीन को खाली नहीं कराया जा सका है।उन्होंने यह भी बताया कि सरकार व प्रशासन को इस झील के सौन्दर्यीकरण के बारे में कई बार ज्ञापन दिया गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है।गांधी ग्राम बगहा के निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता ठाकुर रामकुमार सिंह कहते हैं कि क्षेत्र के लोग अब यह भी आशंका जताने लगे हैं, कि झील का यदि यथाशीघ्र सौंदर्यीकरण नहीं कराया गया तो इस झील का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।उन्होंने यह भी कहा कि समय रहते यदि झील को बचाने के लिये प्रयास नहीं किये गए तो आने वाली पीढ़ियाँ इस झील का केवल नाम ही सुन पाएँगी।
वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि दबंग इस झील के आधे से अधिक रकबे पर खेती कर रहे हैं।यह झील कभी विदेशी परिंदों की पहली पसंद हुआ करती थी।लेकिन झील की जमीन पर खेती होने के कारण विदेशी मेहमान इससे रूठ गये हैं।जब इस झील में पानी रहता था तब वे पूरी शरद ऋतु इसी झील में आनन्द से रहते थे।लेकिन तहसील क्षेत्र के विभिन्न गांवों में स्थित तालाबों, झीलों पर लगातार कुकुरमुत्ते की बढ़ रहे अवैध कब्ज़ों के चलते उन्होंने अपना ठिकाना बदल दिया है।विगत कुछ वर्षों से लगातार बढ़ गये अवैध कब्जों के कारण झील में जल संकट गहरा गया है।
लेकिन सौतल झील को पक्षी विहार घोषित किये जाने को लेकर सरकार विफल रही है। एक ठोस पर्यटन रणनीति से इस झील को खूबसूरत बनाया जा सकता है इससे पर्यटक भी आकर्षित होंगे और इलाके में रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे।