भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अंतरिक्ष के अनंत सफर की खोज में लगातार तेजी से आगे बढ़ रहा है. इस साल के अंत तक दो और महत्वाकांक्षी मिशनों को भी लॉन्च करने की योजना है. यह जानकारी इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने दी है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट की मानें तो स्पेडैक्स (SPADEX) 2035 अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना का महत्वपूर्ण पड़ाव है. इस पर तेजी से काम चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2040 तक स्पेस स्टेशन स्थापित करने का समय निर्धारित किया है. एस सोमनाथ ने कहा, “इनके अलावा, विभिन्न मिशनों को देखने वाली विशिष्ट समितियां होंगी जो समय पर मिशन को पूरा करने में मददगार साबित होंगी.”
दिसंबर तक लॉन्च होंगे दो मिशन
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी नवंबर-दिसंबर में कम से कम दो और लॉन्च का लक्ष्य बना रही है. एक अपने वर्कहॉर्स, पीएसएलवी पर, और दूसरा जीएसएलवी-एमके2 पर. पीएसएलवी एक्सपोसैट लॉन्च करेगा और इसमें वैज्ञानिक और वाणिज्यिक पेलोड ले जाने वाला पीओईएम (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) भी होगा. जीएसएलवी इनसैट-3 डीएस सैटेलाइट लॉन्च करेगा, जो लगभग तैयार है.
एक्सपोसै खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है, जबकि इनसैट-3डीएस मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली के हिस्से के रूप में बनाया गया एक मौसम उपग्रह है.
निसार का परीक्षण जारी
नासा (NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच सहयोग बढ़ाते हुए एक बड़े प्रोजेक्ट ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार’ (एनआईएसएआर) यानी निसार (NISAR) उपग्रह का परीक्षण चल रहा है. इसे पृथ्वी के अवलोकन के लिए तैयार किया गया है. यह पृथ्वी के वन और वेटलैंड इको-सिस्टम और उनके प्रभाव के अध्ययन करेगा. साथ जलवायु परिवर्तन की दिशा में सबसे सटीक आंकड़े उपलब्ध करवाने में मददगार साबित होगा.
2024 तक लॉन्च होगा निसार
निसार को 2024 की शुरुआत में लॉन्च करने का लक्ष्य तय किया गया है. निसार रडार उपग्रह मिशन दो महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र प्रकारों यानि जंगलों और आर्द्रभूमि में गहन जानकारी देगा जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों के नेचुरल रेगुलेशन में भी बड़ी भूमिका निभाने वाला है.
कक्षा में प्रवेश करने पर निसार के उन्नत रडार सिस्टम हर 12 दिनों में पृथ्वी की लगभग सभी भूमि और बर्फ की सतहों का व्यापक स्कैन करने में सक्षम होंगे. वैश्विक स्तर पर भूमि आवरण में इन बदलावों की निगरानी से शोधकर्ताओं को कार्बन चक्र पर उनके प्रभाव की जांच करने में काफी मदद मिलेगी, जो वायुमंडल, भूमि, महासागर और जीवित जीवों के बीच कार्बन की गति को नियंत्रित करता है.