श्रुति व्यास
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का आगे का रास्ता कांटो भरा है।इसका अर्थ यह नहीं है कि सन 2020 में ट्रंप की हार के बाद से अब तक उनकी राह में फूल बिछे थे। लेकिन दुनिया में चल रहे दो युद्धों और उनके अपने देश की अंदरूनी समस्याएं 80 वर्षीय कमांडर-इन-चीफ को कितना परेशान किए हुए होगी, इसकी कल्पना कर सकते है।
बाइडन को पद संभालते ही कोरोना महामारी, आर्थिक मुद्दों, नस्लीय भेदभाव और जलवायु से जुड़ी समस्याओं से जूझना पड़ा। उसके बाद से अब तक इस सूची में दो और मुद्दे जुड़े हैं – यूक्रेन पर रूसी आक्रमण और उसके अगले साल इजराइल पर हमास का भयावह हमला। देश की आंतरिक राजनीतिक समस्याएं अलग हैं। रिपब्लिकन पार्टी अधिकाधिक एकला चलो रे की नीति अपनाती जा रही है। यह सब तब हो रहा है जब दुनिया में अमेरिका की प्रतिष्ठा और दबदबा कम हुआ है और उसे नफरत की नजर से देखा जा रहा है, विशेषकर पिछले तीन हफ्तों से। अमेरिका को एक जटिल और उसे नापसंद करने वाली दुनिया का सामना करना पड़ रहा है। सोवियत संघ के पतन के बाद से पहली बार उसका सामना एक शक्तिशाली और संगठित विरोधी से है, जिसका नेतृत्व चीन के हाथ में है। अब राष्ट्रपति को इजराइल और सऊदी अरब के बीच शांति समझौता करवाने की बजाए मध्यपूर्व में चल रहे एक संकटपूर्ण युद्ध का सामना करना पड़ा रहा है जिसमें बेकसूरों की जान जा रही है। और जिसके व्यापक और विस्फोटक रूप ले लेने का खतरा है।
यह धारणा भी जोर पकड़ रही है कि गाजा में चल रहे युद्ध में उनकी भूमिका का नतीजा उन्हें सन् 2024 के चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। हाल में गैलप द्वारा कराए गए एक जनमत संग्रह के अनुसार डेमोक्रेटिक मतदाताओं में उनका समर्थन करने वालों का प्रतिशत पिछले एक माह में 11 पॉइंट घटकर 75 रह गया है, जो राष्ट्रपति पद के उनके कार्यकाल में सबसे कम है। ऐसी खबरें हैं कि युवा एवं वामपंथी-झुकाव वाले मतदाताओं में उनका विरोध बढ़ता जा रहा है।
बाइडन इजराइल का पूरा-पूरा समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस से उसके लिए 14 अरब डालर की सैन्य सहायता स्वीकृत करने का अनुरोध किया है। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हमास अधिकांश फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वे गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने का प्रयास भी कर रहे हैं। लेकिन वे युद्धविराम की मांग का समर्थन नहीं करते। वे फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनके हर निर्णय की प्रतिक्रिया पूरी दुनिया में होगी। उनका कोई एक निर्णय भी अगले वर्ष उनके दुबारा चुने जाने में रूकावट बन सकता है।
बाइडन को दोनों तरफ से हमलों का सामना करना पड़ रहा है। लोकलुभावन नीतियों के पैरोकार ट्रंप-समर्थक दक्षिणपंथी, यूक्रेन को आर्थिक सहायता दिए जाने में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि सहायता बंद होने पर पुतिन की जीत हो जाएगी जिसके नतीजे में निरंकुश शासकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और लोकतंत्र के लिए खतरे पैदा होंगे। साथ ही गाजा में युद्ध विराम के आव्हान से दुनिया में एक ज्यादा बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इससे हमास की जीत होगी और गाजा पर उसका पूर्ण नियंत्रण कायम हो सकता है जो न सिर्फ मध्यपूर्व बल्कि पूरे विश्व के लिए बड़ा खतरा होगा। इससे हमास वह हासिल कर लेगा जो आईएसआईएस नहीं कर सका था अर्थात भयावह आतंकी हमला करने के बाद भी एक संगठन के रूप में बचे रहना, वह भी एक ऐसी सेना के सामने जो उसे मिट्टी में मिलाने की क्षमता रखती है।
दूसरी ओर इजराइल जिस पैमाने पर हमले कर रहा है उसे औचित्यपूर्ण ठहराना भी मुश्किल है। इसलिए सभ्य, मानवीय दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए इन मौतों और विनाश को देखकर इन निर्दोषों की दुर्गति पर आक्रोशित न होना असंभव है। यदि बाइडन गाजा संकट को संभालने में सफल हो जाते हैं – रणनीतिक और मानवीय दोनों दृष्टियों से – तो यह अमेरिका, मध्यपूर्व और सारी दुनिया के लिए शुभ होगा।
इसके अलावा चीन का मसला भी है जो दुनिया के घटनाक्रम पर नजऱें गड़ाए हुए है और बहुत सोच-समझकर बनाकर अपने मोहरे आगे बढ़ा रहा है।
सो एक तरफ कुआं एक तरफ खाई वाली स्थिति है। गंभीर चुनौतियां हैं, त्रासदियों के भंवर है, भ्रम के धुंध है और एक भी गलत कदम की कीमत चुकानी पड़ सकती है। लेकिन जो बाइडन को नेता की भूमिका निभानी ही होगी। अमरीका के लिए यह इम्तहान की घड़ी है। इम्तेहान इस बात का है कि वह एक अत्यधिक जटिल और खतरों भरी दुनिया से पटरी बिठा पाता है या नहीं। इस इम्तेहान में उनकी उम्र बाइडन की पूंजी है क्योंकि वह विदेश नीति के उनके बेजोड़ अनुभव को दर्शाती है। पूर्व रक्षा मंत्री और सीआईए प्रमुख लिओन पेनेटा कहते हैं, “वे मुद्दे की बात पकड़ लेते हैं, उसे समझ लेते हैं। वे समझ रहे हैं कि चीज़ें अब अपने चरम की ओर जा रही हैं। ढेर सारे मुद्दे हैं और ढेर सारे विकल्प हैं। और इस सब के बीच से सुरक्षित कैसे निकलना है, यदि कोई तह जानता है तो वो जो बाइडन हैं।”
यदि यह 80 वर्षीय कमांडर इन चीफ देश के बाहर चल रहे युद्धों की उथलपुथल और देश में अन्दर ध्रुवीकरण के इस दौर में दृढ़ रहता है, और इस दौरान आर्थिक विकास के ऐसे स्तर को कायम रख पाता है जो बाकी दुनिया की तुलना में कहीं बेहतर हो, तो उनका कार्यकाल उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में काफी हटके हो जाएगा और उनकी विरासत को कोई नकार नहीं पाएगा। यह कहा जाएगा कि त्रासदियों, पीड़ा, युद्ध, महंगाई और अलगाव के दौर में भी अमरीका की अर्थव्यवस्था फलती-फूलती रही और लोकतंत्र जिंदा रहा।
यह स्थिति उनकी चुनावी जीत में सहायक हो सकती है बशर्ते वे जनमत संग्रहों में उनकी घटती लोकप्रियता दर्शाते आंकड़ों से खुद को प्रभावित न होने दें। बहरहाल वे एक पथरीले रास्ते पर चल रहे हैं