अजीत द्विवेदी
कतर में भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को फांसी की सजा हुई है। कतर की निचली अदालत ने क्या आरोप तय किए हैं और किस आरोप में फांसी की सजा सुनाई है उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन पर आरोप है कि वे कतर में रह कर इजराइल के लिए जासूसी कर रहे थे। पहले पिछले साल अगस्त में उनको गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद उनसे बहुत सख्त पूछताछ हुई। खबरों के मुताबिक पूछताछ के दौरान ज्यादती भी हुई। गिरफ्तारी के एक महीने बाद उनके परिजनों से उनका संपर्क हुआ और अक्टूबर में जाकर उनको कौंसुलर एक्सेस मिली। तभी कतर में भारत के राजदूत ने गिरफ्तार नौसेना अधिकारियों से मुलाकात की थी। उनकी फांसी की सजा पर भारत सरकार ने जो प्रतिक्रिया दी उससे लगता है कि फैसला अचानक आया और भारत को अंदाजा नहीं था कि फांसी की सजा हो सकती है। विदेश मंत्रालय ने पहली प्रतिक्रिया में कहा कि वह हैरान और स्तब्ध है। इसका मतलब है कि भारत को यह अंदाजा तो था कि सजा होगी लेकिन फांसी की सजा होगी यह अंदाजा नहीं था।
अगर कतर की न्यायिक व्यवस्था को देखें तो इसके बाद अपील की अदालत का रास्ता है और उसकी सर्वोच्च अदालत व फिर कतर के अमीर के पास अपील का रास्ता भी है। लेकिन आमतौर पर निचली अदालत से हुई सजा को बरकरार रखा जाता है और उस पर तत्काल अमल हो जाता है। जैसे 2017 में नेपाल के नागरिक अनिल चौधरी के साथ हुआ था। नेपाल के दूतावास को सूचना देने के एक दिन बाद ही चौधरी की फांसी की सजा पर अमल हो गया था। इसका मतलब है कि पहले चरण में ही भारत को सारी ताकत लगानी चाहिए थी। बहरहाल, अब भी भारत के पास रास्ता है कि किसी तरह से मामला अपील की अदालत में जाए और वहां भारतीय नागरिकों को बचाने का प्रयास हो। साथ ही बैक चैनल कूटनीति के जरिए भी उनकी रिहाई का प्रयास होना चाहिए।
लेकिन उससे पहले सवाल है कि भारत ने पिछले 14 महीने में क्या कूटनीतिक प्रयास किए और अपनी बढ़ती ताकत, जिसका आए दिन भारत में प्रचार किया जाता है, उसका क्या इस्तेमाल किया? अगर भारत विश्वगुरू और विश्वमित्र है और दुनिया में पहले के मुकाबले उसकी बात ज्यादा सुनी जा रही है और बकौल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, दुनिया में कोई भी बड़ा फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछे बगैर नहीं हो रहा है तो फिर आठ भारतीय नागरिकों को फांसी की सजा का फैसला कैसे हो गया? कतर ने क्यों भारत का लिहाज नहीं किया? क्या आठ भारतीयों का गुनाह इतना बड़ा है कि कतर ने भारत की परवाह करने की जरूरत नहीं समझी? ध्यान रहे कतर में आठ लाख भारतीय हैं, जो वहां की अर्थव्यवस्था और रोजमर्रा के जीवन में बड़ा योगदान कर रहे हैं। भारत के साथ उसका मजबूत कारोबारी संबंध है। भारत अपनी जरूरत का 40 फीसदी प्राकृतिक गैस कतर से लेता है और कतर को निर्माण सामग्री और खाने-पीने की ताजा वस्तुओं की आपूर्ति के मामले में भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। 2017 में खाड़ी देशों की पाबंदी के बावजूद भारत और कतर के कारोबारी संबंध कायम रहे थे। इसके बावजूद कतर ने भारतीय नागरिकों के लिए सबसे बड़ी सजा का ऐलान किया। कतर इस किस्म के उकसाने वाले काम करता रहता है। भारत का भगोड़ा जाकिर नाईक भी कतर में हुए फीफा वर्ल्ड कप के दौरान दिखाई दिया था। कतर वैसे भी मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने वाला देश है। इसलिए इस पूरे घटनाक्रम में कानूनी कार्रवाई से इतर कोई अन्य पहलू होने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
कतर में गिरफ्तार और फांसी की सजा पाए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों में कई बड़े सम्मानित पदों पर रहे हैं और भारतीय जलपोतों पर बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। उनके ऊपर जासूसी का आरोप लगाना न सिर्फ उनका, बल्कि भारत की नौसेना की महान परंपरा और भारत के लिए भी अपमानजनक है। उनकी गिरफ्तारी के समय से ऐसी खबरें आती रही हैं कि यह एक साजिश है, जिसमें पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी ने बड़ी भूमिका निभाई है। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले 14 महीने में अपने नागरिकों को छुड़ाने के लिए जितना प्रयास भारत ने किया उससे ज्यादा प्रयास पाकिस्तान ने इस बात का किया कैसे भारतीय नागरिकों को बड़ी से बड़ी सजा हो जाए। इस पूरे प्रकरण से एक वैश्विक ताकत होने का जो भ्रम भारत की ओर से रचा जा रहा था वह खुल गया है। अब चाहे कितना भी प्रचार हो वह भ्रम फिर से बहाल नहीं हो सकता है। इसके बावजूद भारत सरकार को अपने नागरिकों को फांसी की सजा से बचाने का प्रयास करना चाहिए।
इसके लिए कुछ लोग दिसंबर का इंतजार करने को कह रहे हैं क्योंकि 18 दिसंबर को कतर के अमीर का जन्मदिन है और अपने जन्मदिन पर वे दोषियों की सजा माफ करते हैं और उनकी रिहाई का आदेश देते हैं। लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह और भी अपमानजनक होगा। हालांकि भारत में पिछले कुछ समय से हर किस्म के अपमान को सम्मान बताने का सिलसिला एक नियम के तौर पर स्थापित हो गया है। फिर भी नौसैनिकों के मामले में ऐसा न हो तो बेहतर होगा। भारत को अमीर के जन्मदिन पर अपने सम्मानित नौसैनिकों की रिहाई का इंतजार नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी सामरिक, आर्थिक व वैश्विक कूटनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करके अपने नागरिकों को छुड़ाने का प्रयास करना चाहिए। दुनिया ने देखा कि किस तरह से इजराइल पर हमला करने वाले हमास की कैद से अमेरिकी बंधक छुड़ाए गए हैं। वह विश्व शक्ति का तरीका होता है। कतर ने हमास पर दबाव डाल कर दोनों अमेरिकी बंधकों को छुड़वाया।
सबको पता है कि पश्चिम एशिया में अमेरिका के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में कतर भी हैं। यह भी कहा जाता है कि वह अमेरिका का सबसे भरोसेमंद गैर-नाटो सहयोगी है। इसी तरह से जिस देश ने भारतीय नागरिकों पर जासूसी का आरोप लगाया है और जिस देश के लिए जासूसी का आरोप लगा है यानी इजराइल, दोनों अमेरिका के नजदीकी सहयोगी हैं। सो, निश्चित रूप से भारत और अमेरिका को पता चल गया होगा कि जासूसी के आरोपों में कितनी सचाई है। हालांकि इस बारे में जनता को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है, कोई सूचना सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं है लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि उस हकीकत के हिसाब से भारत और अमेरिका अपना अगला कदम उठाएं। इसमें अमेरिका के साथ साथ खाड़ी के दूसरे देश, जिनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े आत्मीय निजी संबंध बताए जाते हैं उन देशों की भी मदद लेनी चाहिए।
इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि पश्चिम एशिया में चल रहे भू-राजनीतिक टकराव यानी इजराइल और हमास की जंग में आठ भारतीय नागरिकों का जीवन सौदेबाजी का विषय न बने। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा और नागरिकों को बताना भी होगा कि कतर का फैसला इजराइल और हमास की जंग से नहीं जुड़ा है। भारत ने इजराइल का समर्थन किया और कतर हमास का समर्थक है तो भारत पर दबाव डालने के लिए कतर ने भारतीय नागरिकों का जीवन दांव पर लगाया, ऐसा नहीं होना चाहिए। भारत को यह भी दिखाना होगा कि वैश्विक जगत में उसकी हैसियत प्यादे की नहीं है, जिसे कूटनीतिक लाभ-हानि के लिए इस्तेमाल किया जाए। क्योंकि अगर एक बार इस तरह की घटना हो गई तो फिर पूरी दुनिया में रह रहे करोड़ों भारतीयों का जीवन खतरे में आएगा। खाड़ी के मुस्लिम देशों में ही लाखों भारतीय रहते हैं, जिनका जीवन खतरे में पड़ेगा। अगर सरकार आठ भारतीय नागरिकों के जीवन को 140 करोड़ भारतीयों के जीवन और उनके आत्मसम्मान का मुद्दा बनाती है तभी दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ेगा।