मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पाकिस्तान के कलाकारों का भारत में काम करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करनेवाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साथ ही कहा कि देशभक्त होने के लिए विदेशियों का विरोध करने की जरूरत नहीं, खासकर पड़ोसी देशों के नागरिकों का विरोध बिल्कुल जरूरी नहीं है।
जस्टिस सुनील शुक्रे के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने गुरुवार (19 अक्टूबर) को अपने फैसले में कहा कि दिल से अच्छा व्यक्ति अपने देश में और सीमा पार शांति, सद्भाव और समरसता को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों का स्वागत करेगा। खंडपीठ ने सिनेकर्मी और कलाकार होने का दावा करने वाले फैज अनवर कुरैशी की याचिका को खारिज कर दिया है।
याचिका में मांग की गई थी कि…
याचिका में मांग की गई थी कि कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह भारतीय नागरिकों, कंपनियों और संगठनों पर पाकिस्तानी कलाकारों (सिनेकर्मी, गायक, संगीतकारों, गीतकारों और तकनीशियनों) के साथ किसी भी तरह का काम करने, सेवाएं लेने या उनके साथ किसी भी संगठन के तौर पर जुड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए।
याचिका एकता और शांति को बढ़ावा देने से रोकती है- कोर्ट
कोर्ट ने यह याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं है। साथ ही इसमें जो मांग की गई है वह सांस्कृतिक सद्भाव, एकता और शांति को बढ़ावा देने से रोकती है। यह समझने की जरूरत है कि देशभक्त होने के लिए विदेश में रहने वालों का विरोधी होने की जरूरत नहीं है। खासकर पड़ोसी देश में रहने वालों का विरोध जरूरी नहीं है। एक सच्चा देशभक्त वह व्यक्ति है जो निस्वार्थ भाव से देश के हित के लिए प्रतिबद्ध है।
एक दिल से अच्छा व्यक्ति हमेशा इनका स्वागत करेगा- HC
कोर्ट ने आगे कहा कि एक दिल से अच्छा व्यक्ति हमेशा अपने देश में शांति, सद्भाव और समरसता को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों का स्वागत करेगा। उसका यही नजरिया सीमा पार के लिए भी होगा। खंडपीठ ने कहा कि कला, संगीत, खेल, संस्कृति, नृत्य आदि गतिविधियां नागरिकता, संस्कृति और राष्ट्र से परे होती हैं। इससे देशों के बीच सदभावना बढ़ती है।
सरकार को कोई कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकते- कोर्ट
खंडपीठ ने कहा कि भारत में हो रहे क्रिकेट वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तानी टीम भी आई है। यह सब भारत सरकार के सद्भावना बढ़ाने के सकारात्मक कदमों के चलते संभव हुआ है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के तहत भी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि कोर्ट सरकार को कोई नीति या कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकती है।