प्राथमिकी में इल्जाम है कि श्योमी और वीवो जैसी चीनी कंपनियां भारत में आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलपब्ध कराने का माध्यम बनीं। तो सवाल है कि इन कंपनियों को भारत में कारोबार करने की इजाजत किसने दे रखी है?
न्यूजक्लिक के खिलाफ दायर एफआईआर में इस वेबसाइट पर दिल्ली पुलिस ने गंभीर अभियोग लगाए हैं, लेकिन जिन आधार पर इन्हें लगाया गया है, उनसे कई गंभीर सवाल भारत सरकार पर उठ खड़े हुए हैँ। अगर एफआईआर के तर्कों को आगे बढ़ाया जाए, तो यह धारणा बन सकती है कि भारत में आतंकी गतिविधियों को फंडिंग उपलब्ध कराने में सरकार मददगार बन रही है। प्राथमिकी में इल्जाम है कि श्योमी और वीवो जैसी चीनी कंपनियां भारत में आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलपब्ध कराने का माध्यम बनीं। तो सवाल है कि इन कंपनियों को भारत में कारोबार करने की इजाजत किसने दे रखी है? ये कंपनियां न्यूज चैनलों को करोड़ों रुपए के विज्ञापन देती रही हैं और उनमें से एक तो कुछ वर्ष पहले तक क्रिकेट के सबसे टॉप ब्रांड आईपीएल की स्पॉन्सर थी। यहां तक कि कुछ कंपनियों ने पीएम केयर फंड में चंदा दिया। तो जिस आधार पर न्यूजक्लिक पर कार्रवाई हुई है, क्या उससे उपरोक्त तमाम संस्थाएं और उनके प्रबंधक भी नहीं घिर जाते हैं?
एफआईआर में यह अजीब दलील है कि किसान आंदोलन का समर्थन आतंकवादी गतिविधि का हिस्सा था। फिर यह कि कोरोना महामारी के दौरान भारत में जैसी अफरातफरी देखने को मिली, उसकी चर्चा करना देश के खिलाफ किसी बड़ी साजिश का हिस्सा था। एफआईआर से संबंधित जानकारी सामने आने के बाद सार्वजनिक चर्चाओं में लोग कटाक्ष भरे लहजे में उन गौतम भाटिया को ढूंढने की चुनौती एक-दूसरे को दे रहे हैं, जिन्हें चीनी कंपनियों का वकील बताया गया है। आम जानकारी में संविधान विशेषज्ञ गौतम भाटिया जरूर हैं, जो वर्तमान सरकार के आलोचक हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि उन्होंने टैक्स संबंधी विवाद में फंसी चीनी कंपनियों की नुमाइंदगी किसी कोर्ट में नही की है। दरअसल, प्राथमिकी में ऐसे कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं शामिल कर दिए गए हैं, जिनका न्यूजक्लिक मामले से सीधा कोई संबंध नजर नहीं आता। इसीलिए कुछ विशेषज्ञों ने इस एफआईआर को कानूनी के बजाय एक राजनीतिक दस्तावेज कहा है। जाहिर है, दर्ज आरोपों की सच्चाई के साथ-साथ इस धारणा की पड़ताल भी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान होगी।