अशोक भाटिया
जब-जब पश्चिम बंगाल में चुनाव होते हैं, सभी पार्टियों की नजरें दो समुदायों पर टिक जाती हैं। मुस्लिम और मतुआ। बंगाल में 30 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं और 15 फीसदी मतुआ। हम बात यहां मुस्लिम वोटर्स की करेंगे क्योंकि इस बारी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा मुस्लिम वोट बैंक को साध रही है।
हाल ही में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कार्यकर्ताओं और राज्य के नेताओं को खास निर्देश मिले हैं कि जनता के बीच केंद्र की उन स्कीमों के बारे में बताए जो वंचित और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए शुरू की गई हैं। भाजपा इस बार बंगाल चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। यही वजह है कि राज्य के नेता मुस्लिम बहुल इलाकों में रैलियां करके ममता के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव पर फोकस करने की बात कही थी। कार्यकर्ताओं से बंगाल के वंचित समुदायों और खासकर अल्पसंख्यकों सहित समाज के सभी वर्गों तक पहुंचने का केंद्र की स्कीम पहुंचाने और जागरुक करने आग्रह किया था। भाजपा नेता पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम वोट बैंक को साधने में जुटे हैं।भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि पश्चिम बंगाल में 30% अल्पसंख्यक आबादी है। आजादी के 75 साल बाद, जब देश ‘अमृतमहोत्सव’ मना रहा है, तो अल्पसंख्यक समुदाय को क्या मिला? इसलिए इस आबादी को मुख्यधारा में लाना बेहद जरूरी है। भाजपा नेता अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में रैली कर टीएमसी के वोट बैंक में सेंध करने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष मानना है कि अगर 30% आबादी वंचित है और वे मुख्यधारा में नहीं आते हैं, तो पश्चिम बंगाल राज्य कैसे प्रगति करेगा? गरीबों के विकास के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई योजनाएं शुरू कीं, जिनमें से अल्पसंख्यक समुदायों को इतना लाभ मिल रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना में लूट हुई तो अल्पसंख्यक समुदाय को खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में उन्हें इससे वंचित रखा गया है। लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बाधा बनी हुई हैं।
भाजपा के राज्य नेताओं ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समुदाय को विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए कृषक सम्मान निधि और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। हाल ही में, बॉलीवुड अभिनेता से राजनेता बने मिथुन चक्रवर्ती, जो भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य हैं, ने दक्षिण 24 परगना जिले में कई सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया, जो अल्पसंख्यक बहुल है और सत्तारूढ़ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। उन्होंने लोगों से पंचायत चुनावों में भाजपा को वोट देने और प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उठाने का आग्रह किया।उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्र की मुहिम से ममता सरकार को नुकसान हुआ है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भाजपा कभी भी अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नहीं रही है। उनका कहना है कि भाजपा के खिलाफ एक नैरेटिव तैयार किया गया है। हम मुस्लिम भाइयों का कल्याण चाहते हैं ।
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का मानना है कि आपने (अल्पसंख्यक समुदाय) किसे सत्ता में लाया है? 100 में से कम से कम 95 ने ममता बनर्जी को वोट दिया है। देखिए, आपने किसे सत्ता में लाया है? आपको करना होगा। जमीनी स्तर पर काम करो और ममता बनर्जी को सत्ता से हटाओ।
वैसे लोकनीति और सीएसडीएस के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो भारतीय जनता पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक बढ़ने की शुरुआत 1998 से शुरू हो गई थी। जहां 1996 में भाजपा को मात्र 2 परसेंट मुस्लिम वोट मिला था। वहीं 1998 में वह तीन गुना यानी 6 परसेंट पहुंच गया था। इसके बाद 1999 और 2004 में एक फीसद बढ़कर यह 7 परसेंट तक पहुंच गया था।
15वीं लोकसभा में यह घटकर 4 परसेंट पर आ गया था। इसके बाद प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतरने वाले नरेंद्र मोदी जिनकी छवि विपक्ष ने मुस्लिम विरोधी की बना रखी थी के आने के बावजूद 16वीं लोकसभा यानी 2014 में भाजपा को मुस्लिमों का 9 परसेंट वोट मिला। यह पिछली बार की तुलना में दोगुना से अधिक रहा। मुस्लिम वोटरों की वृद्धि 17वीं लोकसभा में भी जारी रही।
चुनाव की तैयारी में तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी भी लगी हैं। ममता की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर ही ज्यादा है। सोमवार को ममता बनर्जी की सरकार ने कोलकाता में इमाम और मुअज्जिनों का सम्मेलन किया जिसमें पूरे राज्य से अल्पसंख्यकों के नेता जुटे। इस मौके पर ममता ने इमामों की तनख्वाह में हर महीने 500 रुपये की बढ़ोत्तरी का ऐलान किया। इसके साथ साथ ममता ने कहा कि उनकी सरकार पुजारियों का भत्ता भी 500 रुपये महीने बढ़ाएगी। अब बंगाल में इमामों को तीन हजार रुपये और पुजारियों को 1500 रुपये हर महीने मिलेंगे। पुजारियों और इमामों की तनख्वाह में इजाफे के ऐलान के बाद ममता ने भाजपा पर मुसलमानों से नफरत करने का इल्जाम लगाया। ममता ने कहा कि अल्पसंख्यकों को, खासतौर पर मुसलमानों को भाजपा से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि भाजपा के कुछ नेता, कई अल्पसंख्यक नेताओं को पैसे देकर बंगाल का माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। ममता ने ये भी कह दिया कि बंगाल के लोगों को प्रधानमंत्री और कांग्रेस से भी बचकर रहना चाहिए क्योंकि भाजपा , प्रधानमंत्री और कांग्रेस आपस में मिले हुए हैं।
इसके बाद ममता बनर्जी ने यूनीफॉर्म सिविल कोड, और सीएए की बात करती है । ममता बनर्जी का कहना है कि वो बंगाल में इस तरह के कानून किसी कीमत पर लागू नहीं होने देंगी। उन्होंने कहा, ‘मैं फुरफुरा शरीफ के मौलाना का बहुत सम्मान करती हूं, लेकिन मैं आपसे भी ये उम्मीद करती हूं कि आप राजनीति में नहीं पड़ेंगे। क्या बेलूर मठ किसी राजनीतिक विवाद में पड़ता है? जब कोई धार्मिक स्थल किसी सियासी मामले में पड़ता है, तो उससे उस धर्मस्थान का नाम नहीं बढ़ता, उनका अपयश होता है। मैं अपना धर्म अपने माथे पर लिखकर नहीं चलती। मेरा धर्म मेरे दिल में है। मेरा धर्म मेरे मन में है। मेरे प्राण में है।’ ममता बनर्जी इमामों की तनख्वाह बढ़ाएं, इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। ममता भाजपा का नाम लेकर मुसलमान को डराएं, इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अचरज की बात तो ये है कि ममता ने बंगाल के लोगों से कहा कि भाजपा , सीप्रधानमंत्री और कांग्रेस आपस में मिले हुए हैं। अब लोग पूछ सकते हैं कि ममता तो पटना और बैंगलोर में दो-दो बार कांग्रेस और सीप्रधानमंत्री के नेताओं के साथ मीटिंग कर चुकी हैं, मोदी के खिलाफ जो गठबंधन बना है, उसमें ममता के साथ राहुल गांधी और सीताराम येचुरी भी शामिल हैं। तो फिर बंगाल में सीप्रधानमंत्री और कांग्रेस भाजपा की मदद क्यों करते हैं? इसका जवाब ममता ही दे पाएगी ।
गौरतलब यह भी है कि भाजपा व ममता को मात्र 3 साल पहले बने नए दल आईएसएफ से भी उसे कांटे की टक्कर मिल सकती है। अभी हाल में समाप्त हुए पंचायत चुनाव में आईएसएफ ने 300 से अधिक सीटें जीतकर भाजपा व ममता के माथे पर बल ला दिया था। खासकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में टीएमसी को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। आईएसएफ की अब उर्दू के साथ-साथ बंगाली भाषी मुस्लिमों पर अच्छी पकड़ बन गई है।
भाजपा और ममता के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव2019 में यह पार्टी वजूद में ही नहीं थीं। टीएमसी को उस चुनाव में 70 परसेंट के करीब मुस्लिम वोट मिला था और उसने 42 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब आईएसएफ के चुनाव में उतरने के बाद निश्चित तौर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा। ऐसी स्थिति से निपटना भाजपा व ममता के लिए लोहे के चने चबाने के समान होगा।
अगर हाल में हुए पंचायत चुनाव पर नजर डाली जाए तो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र भानगर, 24 परगना दक्षिण और उत्तर में आईएसएफ की मजबूत पकड़ है। उसने इन इलाकों में 300 से अधिक पंचायत सीटें हासिल कर अपनी ताकत दिखाई है। इतना ही उसने 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में भी एक सीट भानगर की जीती थी। भाजपा व ममता को आगामी चुनाव की तैयारी में आईएसएफ की पकड़ पर भी ध्यान देना होगा ।