नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ और भक्तों का नाता अनूठा है। भगवान जहां भक्तों के प्रेम में इतना स्नान करते हैं कि बीमार हो जाते हैं। वहीं, भक्त भी 14 दिनों तक अपने भगवान की सेवा करते नहीं थकते। यही कारण है कि भगवान स्वस्थ होकर काशीवासियों से मिलने के लिए गलियों में निकलते हैं। भगवान और भक्त के इस खास पर्व यानी रथयात्रा मेले से काशी के लक्खे मेले की शुरुआत होती है। खास ये कि इस बार भक्त भगवान जगन्नाथ को 40 तरह की नानखटाई का भोग लगाएंगे।
सात जुलाई से शुरू होने वाले रथयात्रा मेले में भक्त भगवान को नानखटाई का भोग चढ़ाते हैं और इसी को प्रसाद स्वरूप घर भी ले जाते हैं। इस बार भगवान जगन्नाथ को 40 प्रकार से ज्यादा तरह की नानखटाई का भोग अर्पित किया जाएगा। हिंदू धर्म में देवी-देवता की पूजा करने के साथ भोग लगाने का भी विधान है।
मान्यता है कि पूजा के दौरान अगर भगवान को भोग न लगे तो पूजा अधूरी मानी जाती है। देवी-देवता को उनके अनुसार भोग लगाने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं। रथयात्रा मेले के दौरान नानखटाई भगवान जगन्नाथ का पारंपरिक भोग (प्रसाद) है। तीन दिवसीय रथयात्रा मेले में नानखटाई का विशेष महत्व है। वैसे तो नानखटाई पूरे साल मिलती है मगर रथयात्रा के मेले में इसका अलग ही महत्व होता है। इस नानखटाई की यह खासियत होती है कि यह मुंह में रखते ही घुल जाती है।
40 से ज्यादा फ्लेवर की बन रही नानखटाई
समय के साथ पारंपरिक नानखटाई भी आधुनिक हो चुकी है। रथयात्रा मेले में नारियल, काजू, पिस्ता के अलावा चॉकलेट, स्ट्राबेरी सहित करीब 40 से ज्यादा आकर्षक फ्लेवर की नानखटाई बनाई जा रही है। इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी है। रथयात्रा का लक्खा मेला और नानखटाई का संबंध भी बहुत पुराना है। न केवल श्रद्धालु बल्कि नानखटाई से जुड़े व्यापारी इस मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
ऐसे बनती है नानखटाई
नानखटाई के व्यवसायी विकास साव ने बताया कि नानखटाई बनाने में मेहनत के साथ ही काफी समय लगता है। सूजी, मैदा, नारियल व मेवे की सामग्री तैयार कर सांचे में भरकर नानखटाई का स्वरूप दिया जाता है। उसके बाद तंदूर में लकड़ी का कोयला जलाकर उस पर सेंकाई होती है। इसमें ध्यान दिया जाता है कि सेंकाई के दौरान यह जले नहीं, वरना स्वाद खराब हो जाता है।
भगवान विष्णु के अवतार हैं भगवान जगन्नाथ
सनातन धर्म में भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जिनके नाम का अर्थ पूरे जगत के नाथ या फिर कहें ब्रह्मांड का स्वामी होता है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा काशीपुराधिपति की नगरी में हर साल निकलती है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है।