12 वर्षों बाद जिले में फिर लहराया छह विधानसभाओं में समाजवाद का परचम
बाराबंकी। जिले में इंडिया गठबंधन ने भाजपा की रणनीति और योगीराज के खेल को पलट दिया। सपा के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व मंत्री अरविन्द सिंह गोप ने भाजपा का रथ रोक लिया। बताते चलें कि बाराबंकी जिला कभी समाजवादियों का गढ़ कहा जाता था। 2007 के आम चुनाव में बसपा ने पांच सीटें जीतकर गढ़ को हिला दिया था। इसके बाद 2012 के चुनाव में अरविन्द सिंह गोप के नेतृत्व में सपा ने जिले की सभी छह की छह विधानसभा सीटें जीतकर अपना गढ़ ही वापस नहीं ले लिया था बल्कि इतिहास बना डाला था। इसी परिणाम के चलते सपा सरकार में अरविंद कुुमार सिंह गोप का कद बढा और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। लम्बे बनवास के बाद एक बार फिर 18वीं लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी ने सभी छह विधानसभाओं में जीत का परचम लहराया। इस जीत का श्रेय अरविंद सिंह गोप को जाता है, जिन्होंने सपा और कांग्रेस के नेताओं को ग़ुरूर से लबरेज़ हुकूमत से लड़ने की हिम्मत और सीख दी।
लोकसभा चुनाव से पहले बाराबंकी में भाजपा की लड़ाई तो प्रत्याशित थी। लेकिन तत्कालीन भाजपा सांसद उपन्ेद्र रावत का अश्लील वीडियो वायरल होने के बाद हुए डैमेज कंट्रोल से इस सीट के नतीजे अप्रत्याशित रहे। भाजपा को भनक भी नहीं लग सकी कि उसके पैरों के तले चुनावी जमीन खिसक चुकी है। जिसके बाद आए चुनाव परिणाम ने एक नया स्वर्णिम अध्याय का सृजन किया। मालूम हो कि इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया और अयोध्या से सपा प्रत्याशी अवधेश रावत ने मिलकर बाराबंकी की पांच और अध्योध्या की एक विधानसभा में सपा के किले को मजबूत ही नहीं किया बल्कि भाजपा की चूल्हें हिला दी। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया को जैदपुर विधानसभा में 162578 मत मिले तो वहीं भाजपा प्रत्याशी राजरानी रावत को 103445 मत मिले। हैदरगढ़ में तनुज पुनिया को 113357 मत मिले, राजरानी रावत को 984222 ही मत मिले। कुर्सी में तनुज पुनिया को 158850 मत मिले, राजरानी रावत को 111216 ही मत मिले। रामनगर में तनुज पुनिया को 126047 मत मिले, राजरानी रावत को 95999 ही मत मिले। बाराबंकी में तनुज पुनिया को 157696 मत मिले, राजरानी रावत को 94370 ही मत मिले। वहीं दरियाबाद में सपा प्रत्याशी अवधेश रावत को 131277 मत मिले, भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को 121183 ही मत मिले।
चुनाव परिणाम आने के बाद बाराबंकी लोकसभा उत्तर प्रदेश की तीसरी सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाली सीट बन गई। जिले में भाजपा की पूरी रणनीति, जातीय समीकरण और डबल इंजन का करिश्मा पूरी तरह फेल हो गया। संविधान बदलने का आरोप और आरक्षण छिनने का डर ही अति पिछड़ी व दलित जातियों के भाजपा से मोहभंग का कारण बना। दरअसल, पार्टी से ज्यादा उम्मीदवारों के प्रति सत्ता विरोधी लहर थी। उम्मीदवार का बदला जाना, बेहतर नतीजे नहीं दे सका। चुनाव परिणाम को खंगालते ऐसा लगता है कि भाजपा की रणनीति, अतिआत्मविश्वास या आत्ममुग्धता पर केंद्रित थी। प्रत्याशी और मोदी के बीच संतुलन नहीं बैठा। प्रत्याशी से जनता की नाराजगी भारी पड़ी। जिले में भाजपा के बनाए जातीय समीकरण, जिसमें गैर यादव पिछड़ों के साथ छोटी-छोटी अति पिछड़ी जातियां भाजपा के लिए गोलबंद हुई थीं। भाजपा के परंपरागत वोटबैंक के अलावा यह अनोखा ध्रुवीकरण था। इस बार यह गठजोड़ टूटा। जिले के जातीय गणित और उनकी जातियां कितनी मूल्यवान हैं, इसे अरविन्द सिंह गोप ने पहचाना। भाजपा ने इस गणित की अनदेखी की।
अरविन्द सिंह गोप, राकेश वर्मा, सुरेश यादव, डॉ. पी.एल पुनिया, रामसागर रावत समेत इंडिया गठबंधन के कई नेता दलित और पिछड़ों को यह समझाने में सफल रहे कि संविधान बदलेगा और अगर संविधान बदला, तो आरक्षण खत्म हो जाएगा। इसके अलावा एक लाख रुपये सीधे खाते में आने के वादे ने भी लोगों को आकर्षित किया। युवा और पढ़े-लिखे दलितों में यह अभियान घर कर गया और पहली दफा बसपा के दायरे से बाहर निकलकर इस समूह ने इंडिया गठबंधन को वोट किया। यह ध्रुवीकरण एकतरफा था। जिले में जातीय मतों का ऐसा परिवर्तन होगा, यह भाजपा ने भी नहीं सोचा था। इंडिया गठबंधन का अभियान आक्रामक था। मतदाताओं से बातचीत में इसे भांपना कठिन नहीं था कि संविधान बदलने और आरक्षण खत्म होने की आशंकाओं ने मतदाताओं को प्रभावित किया। बेरोजगार युवा प्रत्यक्ष तौर पर पहले से आंदोलित थे। ग्रामीण इलाकों में आवारा पशुओं का कहर, महंगाई और बेरोजगारी मुफ्त अनाज पर भारी पड़ी। दशकों बाद जिले में शून्य लहर का चुनाव था। न मंदिर मुद्दा था, न हिंदुत्व। राष्ट्रवादी मुद्दे भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। सिर्फ जातियों की गोलबंदी और उम्मीदवार केंद्रित यह चुनाव था। अयोध्या में जहां 500 वर्ष की हिंदू भावनाओं का शिखर मंदिर बनकर तैयार हुआ, जो देश में मुख्य मुद्दा बना, वहीं भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी के भीतर एक संशय और अविश्वास की खाई पूरे चुनाव के दौरान दिखी। इस बार भारतीय जनता पार्टी के भीतर हार के कुचक्र रचे गए। यह भाजपा के लिए आत्मचिंतन का मौका है। पन्ना प्रमुख और बूथ अध्यक्ष की योजना सिर्फ कागज पर रही। मतदान प्रतिशत से यही साबित हुआ। बहरहाल, इस पूरे चुनाव में अरविन्द सिंह गोप के प्रबंधन और रणनीति को हर कोई सराह रहा है। गोप हमेशा समाजवादी पार्टी और नेता अखिलेश यादव के प्रति वफादार रहकर, अथाह मेहनत की है। वह जनता के अपमान और तिरस्कार की माला गले मे डालने को तैयार रहते हैं। यह जीत उसी मेहनत, धैर्य और समर्पण का परिणाम हैं।