राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है, भारत ही नही अपितु संपूर्ण दुनिया में जाना जाता है। जिसका कारण है संघ की अखण्ड तपस्या। संघ ने अपने ९९ वर्षो की यात्रा के अविरल प्रवाह में ऐसे – ऐसे कार्यकर्ता, स्वयंसेवक निर्माण किए हैं जो अपने और अपने परिवार के लिए नही जीते बल्कि राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से समाज में निरंतर बिना थके, बिना रुके कार्य करते हैं। वैशाख, जेष्ठ माह की प्रचण्ड गर्मी में जहां सामान्य लोग गर्मी से राहत पाने के लिए एयर कंडीशनर, कूलर में रहना पसंद करते है, ठंडे प्रदेशों – स्थानों पर जाकर मौज मस्ती करते हैं, घरों से निकलने में संकोच करते हैं वहीं संघ के स्वयंसेवक गर्मी की परवाह किए बिना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिक्षा के वर्गों में रहकर अपना पसीना बहाकर विपरीत परिस्थितियों में रहकर समाज, देश के कार्य के लिए कार्य करने के अनुकूल अपने व्यक्तिगत जीवन का निर्माण करने की कठिन तपस्या करते हैं।
संघ शिक्षा वर्ग ७ दिन से लेकर २५ दिन तक के आयोजित किए जाते हैं। ये वर्ग भौतिक सुख सुविधाओं से दूर किसी विद्यालय, महाविद्यालय के परिसर में आयोजित किए जाते हैं। संघ शिक्षा वर्ग की दिनचर्या प्रातः ४:०० बजे के जागरण से प्रारम्भ होकर रात्रि १०:०० बजे तक दीप विसर्जन तक रहती है। इसी दिनचर्या के आधार पर सारे दिनभर के कार्यक्रम संपन्न होते हैं जो दिनभर के व्यस्त कार्यक्रम होते हैं। इन वर्गों में स्वयंसेवकों को शारीरिक, बौद्धिक तथा व्यवहारिक रूप से दक्ष किया जाता है । वर्ग की दिनचर्या का नित्य प्रारम्भ एकात्मतास्त्रोत भारत माता की वन्दना के साथ प्रारम्भ होता है। पूरे दिन में प्रातः व सायं ४ घण्टे तक संघ स्थान की धूप में रहकर शारीरिक कार्यक्रम संचालित होते हैं जिनमे दण्ड, नि: युद्ध, योग, समता, खेल, पदविन्यास जैसे कठिन शारीरिक कार्यक्रम होते है जहां स्वयंसेवक आत्मरक्षा के कौशल में पारंगत होने के साथ – साथ स्वस्थ शरीर का निमार्ण करते हैं।
शेष समय के बौद्धिक व व्यवहारिक सत्र में समसामयिक विषयों, इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, हिंदुत्व, भारतीयता जैसे विषयों पर श्रेष्ठ अनुभवी संघ के अधिकारियों द्वारा चर्चा, संवाद, व्याख्यान सत्र अयोजित होते हैं जहां स्वयंसेवकों के बौद्धिक स्तर का विकास अपने अधिष्ठान के प्रति निष्ठा और आत्मविश्वास का विकास होता है। इन वर्गों में अधिकारी और सामान्य स्वयंसेवकों के बीच कोई अन्तर नहीं होता है सभी एक साथ, एक जैसा जमीन पर बैठकर सामान्य भोजन करते हैं। शिक्षार्थी व अधिकारी अपने भोजन के पात्र, कपड़े , अपने स्थान की स्वच्छता स्वयं करते हैं तथा एक साथ सभी जमीन पर शयन/ विश्राम करते हैं। इन वर्गों में सभी अपना व्यय स्वयं करते हैं शिक्षक, अधिकारी, शिक्षार्थी, व्यवस्था में लगे कार्यकर्ता आदि का वर्ग शुक्ल लिया जाता है उसी से वर्ग की सभी व्यवस्थाएं संपन्न होती हैं। संघ शिक्षा वर्ग की अवधि भर सभी का मोबाइल फोन बंद रहता है स्वयंसेवक अपना मोबाइल घर पर ही रखकर वर्ग में जाते हैं अथवा वर्ग में पहुंचते ही भण्डार में जमा कर देते हैं। इस प्रकार सभी स्वयंसेवक समस्त भौतिक संसाधनों सुख, सुविधाओं से दूर रहकर राष्ट्र भक्ती की साधना में स्वयं को समर्पित कर देते हैं। वर्गों में कठिन तपस्या पूर्वक सभी प्रसन्नता के साथ भारत भक्ति की आराधना करते हैं भारत माता को परमवैभव के सिंहासन पर आरूढ़ करने के लिए कटिबद्ध स्वयंसेवक कठिन तपस्या कर स्वयं को देश सेवा में समर्पित करते हैं। वर्तमान समय में देश भर के कुल ४३ प्रांतों में संघ शिक्षा वर्ग (अवधि २० दिन), कुल ११ क्षेत्रों में कार्यकर्ता विकास वर्ग (अवधि २० दिन) एवं पूज्य डाक्टर साहब, श्री गुरु जी की तपस्या भूमि रेशिमबाग नागपुर में कार्यकर्त्ता वर्ग २ (अवधि २५ दिन) के वर्ग चल रहें हैं जहां हजारों स्वयंसेवक इन भीषण गर्मी को दरकिनार कर तपस्या रूपी जीवन जी कर भारत माता की सेवा के लिए अपने को निर्माण कर रहे हैं।
वास्ताव में यह संघ शिक्षा वर्ग एक तपस्या है। आचार्य चाणक्य ने अपने राजनीति शास्त्र में कहा था कि किसी भी देश में शांति काल में जितना पसीना बहेगा, उस देश में युद्ध काल में उससे दूना रक्त बहने से बचेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन शिक्षा वर्गों में आये शिक्षार्थी आचार्य चाणक्य की कल्पना पर ही देश के शांति काल में योजना निर्माण-रचना पर अथक परिश्रम करते हुए सतत कर्मशील रहने का व अपना पसीना बहाने का संकल्पित प्रशिक्षण लेते हैं। जीवन की छोटी-छोटी बातों से लेकर विश्व भर के विषयों में व्यक्ति किस प्रकार समग्र चिंतन के साथ आगे बढ़े, इसका प्रशिक्षण इन वर्गों में दिया जाता है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, धर्मो रक्षति रक्षितः’, ‘इदं न मम इदं राष्ट्राय’ जैसे अति व्यापक अर्थों वाले पाठ व्यक्ति के मानस में सहज स्थापित हो जायें यही लक्ष्य होता है। ये वर्ग व्यक्ति में केवल भाव परिवर्तन या भाव विकास में सहयोगी होते है। संभवत यही व्यक्तित्व विकास का सर्वाधिक सफल मार्ग भी है।
बालभास्कर मिश्र
स्तम्भ लेखक, लखनऊ