बेनी बाबू की पौत्री श्रेया वर्मा को कीर्तिवर्द्धन सिंह और सौरभ मिश्रा की चुनौती
अगड़ों और पिछड़ों के बीच होगी राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई
गोंडा। दशकों से गोंडा संसदीय सीट की नुमाइंदगी रियासत और विरासत के बीच ही घूमती रही है। इस बार भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है। गोनार्द की तपोभूमि और गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली गोंडा का सियासी पारा लगातार तपती दोपहरी के साथ उफान पर है। एक ओर बेनी बाबू के परिवार के सामने विरासत बचाने की चुनौती है तो दूसरी ओर भाजपा के सामने विजय को बरकरार रखने और रियासत के अस्तित्व को कायम रखने की जंग है। पांचवे चरण के मतदान से पहले बीते बुधवार को 40 डिग्री तापमान में गठबंधन से सपा प्रत्याशी श्रेया वर्मा के नामांकन सभा में जमीनी स्तर पर इंडिया गठबंधन और पीडीए का एका साफ दिख रहा था। लोगों का उत्साह साफ तौर पर बदलाव की बाट जोह रहा था। लोग बोल रहे थे कि इस बार भाजपा वाकई सपा कांग्रेस गठबंधन को पटखनी दे पाएगी या नतीजा कुछ और होगा।
बताते चलें कि गोंडा जिले की उतरौला, गौरा, मनकापुर और मेहनौन विधानसभाओं में राजनीतिक दबदबा कायम रखने वाले राजघराने से लगातार तीसरी बार टिकट देकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। गोंडा में ब्राह्मण, ठाकुर, मुस्लिम व कुर्मी वोटरों का प्रभावी असर है। पक्ष-विपक्ष दोनों ही अपने कोर वोटरों के साथ लहर व समीकरण के भरोसे हैं। दलित वोटर भी यहां 2 लाख से अधिक हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीटों उतरौला, मेहनौन, गोंडा, मनकापुर (एससी) और गौरा पर भाजपा काबिज है। जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा ने फिर कीर्तिवर्धन सिंह पर दांव खेला है। इंडिया गठबंधन से सपा उम्मीदवार के तौर पर श्रेया वर्मा उनके सामने है, जिनके दादा बेनी प्रसाद वर्मा का सूबे की कुर्मी प्रभावित क्षेत्रों में मतदाताओं पर गहरा प्रभाव रहा है। उन्होंने साल 2009 में यहां कीर्तिवर्धन सिंह को पटखनी दी थी। बहरहाल, बेनी प्रसाद वर्मा की यादें यहां के जनमानस में जिस तरह से रची-बसी है, उससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि हवा का रुख किधर रहेगा।
स्थानीय मतदाता नरसिंह पाल यादव, पिन्टू वर्मा और केशवराम वर्मा बताते हैं कि बेनी बाबू ने चुनाव जीतने के बाद गोंडा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। केन्द्रीय इस्पात मंत्री रहते हुए उन्होंने स्टील प्लांट की आधारशिला रखी। करोड़ों की लागत से कई मुख्य मार्ग और सम्पर्क मार्गो का निर्माण कराया, जिस पर फर्राटे भरते वाहन विकास की गाथा सुनाते हैं। उतरौला में आईटीआई कॉलेज, कुतुबगंज में निर्माणाधीन आईटीआई कॉलेज व सैकड़ों बच्चों को पढ़ने के लिए सोलर लालटेन, सैकड़ों विद्यालयों की नींव मजबूत करने के लिए आर्थिक अनुदान, जो युवाओं के बेहतर कॅरिअर की गवाह हैं। उतरौला, गोंडा, गौरा व अन्य विधानसभाओं में गांव-गांव तक चौड़ी सड़कें खुद-ब-खुद विकास के किस्से सुना रही हैं। ऐसे में बेनी बाबू के कराए विकास कार्यो का फायदा श्रेया को कितना मिलेगा यह तो चुनाव परिणाम बताएगा।
बताते चलें कि सपा प्रत्याशी श्रेया वर्मा को जहां भाजपा प्रत्याशी कीर्तिवर्धन सिंह राजा भईया चुनौती दे रहे हैं, वहीं बसपा प्रत्याशी सौरभ कुमार मिश्रा भी भाजपा के ब्राह्मण वोटरों में सेंधमारी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। इस पक्ष के मतदाता हों या उस पक्ष के, थोड़ी देर की बातचीत में ही बता देते हैं कि परिणाम क्या आने वाला है। दरअसल स्थानीय लोगों की माने तो विकास की बाट जोह रहे गोण्डा संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी कीर्तिवर्द्धन सिंह के विजय रथ को रोकने के लिए पिछड़े, दलित व मुस्लिम वोटरों की एकजुटता भारी पड़ सकती है। साथ ही राजा भईया के रूखे स्वाभाव के चलते ब्राह्मण और ठाकुर वोटरों का एक तबका असंतुष्ट नज़र आ रहा है। जिसका फायदा श्रेया वर्मा को मिल सकता है।
हालांकि इस बार 18वीं लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षी पाटियों के धुरंधरों को ओबीसी, मुस्लिम व अन्य वोटो के सहारे धराषायी करने वाले बेनी बाबू की पौत्री श्रेया वर्मा, राजा भैया को कड़ी टक्कर देती नज़र आ रही है। जहां एक ओर चुनावी रण को श्रेया वर्मा अपने बाबा की तरह पीडीए व अन्य समाज को साथ लेकर चुनाव को रोचक बनाने में जुटी हैं वहीं अयोध्या से सटे गोंडा में राम लहर, मोदी-योगी मैजिक और राजघराने के खासे प्रभाव से राजा भैया तीसरी बार दिल्ली का सफर तय करने का दावा कर रहे है। अब देखना है कि भाजपा वाकई सपा कांग्रेस गठबंधन को पटखनी दे पाएगी या नतीजा कुछ और होगा।