डॉ. मयंक चतुर्वेदी
इसे आप पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की निकृष्टता की हद मान सकते हैं कि वह केंद्रीय एजेंसियों पर भरोसा छोड़िए, उन पर पश्चिम बंगाल में आकर हथियार रखने तक के आरोप लगा रही हैं। आश्चर्य होता है यह जानकर कि वे कह रहीं हैं, ”जब्त की गई चीजें संभवत: उनके (सीबीआई) द्वारा एक कार में लाई गई होंगी”। अभी तक यह क्या कम था कि संदेशखाली के आरोपितों को ममता सरकार बचाती रही और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी वह कई दिनों तक गिरफ्तार नहीं हो सके थे।
वस्तुत: वामपंथियों की क्रूरता से मुक्त होने की छटपटाहट और उसके लिए तमाम जतन करने वाली बंगाल की जनता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जो उन्हें सुरक्षा और विकास का भरोसा दिला रही हैं, वह ममता दीदी भी भविष्य में सत्ता प्राप्त होते ही उन्हें प्रताड़ित करेंगी और समूचे बंगाल में एक ऐसा सिस्टम खड़ा करने में कामयाब हो जाएंगी जिसमें अपराधियों का ही बोल वाला सर्वत्र होगा। वहीं जो उनके विरोध में आवाज उठाएगा उसकी हमेशा के लिए साम, दाम, दंड,व भेद अपनाकर आवाज बंद कर दी जाएगी।
पश्चिम बंगाल सरकार शुरू से ही संदेशखाली के डॉन शाहजहां शेख पर मेहरबान दिखी है । पहले उसके गुनाह को नहीं माना, एफआईआर तक दर्ज करने से मना किया, जब एफआईआर दर्ज हुई तो गिरफ्तारी से बचाती रही। गिरफ्तारी हुई तो सीबीआई को सौंपने से मना कर रही थी। फिर जब न्यायालय की फटकार लगी तब कहीं जाकर संदेशखाली के मुख्य गुनहगार और उसके साथियों को ममता की पुलिस ने पकड़ा। संदेशखाली के आरोपी शाहजहां शेख पर केवल ईडी अधिकारियों की पिटाई करवाने का ही आरोप नहीं है बल्कि संदेशखाली में जमीन पर कब्जा करने और यौन उत्पीड़न के भी भयंकर आरोप लगे है। वाबजूद इसके आप ममता सरकार में शाहजहां का प्रभाव देखिए कि ज्यादातर मामलों में या तो केस की चार्जशीट उपलब्ध नहीं है या फिर शाहजहां के खिलाफ जांच लंबित है।
वास्तव में यह तथ्य सामने आने के बाद विश्वास ही नहीं होता कि कैसे कई मामले दर्ज होने के बावजूद प्रशासन ने अब तक शाहजहां के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। शाहजहां पर तीन भाजपा समर्थकों की हत्या और बिजली कर्मचारियों की मारपीट समेत अन्य 43 मामले दर्ज हैं, इसके बावजूद शेख के प्रति ममता की हमदर्दी शुरू से ही यहां देखने लायक है।
अभी जो हुआ और जिस तरह के हथियार, बम इत्यादि आग्नेयास्त्र संदेशखाली के मुख्य आरोपी शाहजहां के सहयोगी रिश्तेदार अबू तालेब मोल्ला के यहां मिले उससे तो लगता है कि पूरा बंगाल ही संकट के साए में है। उसके घर के फर्श के नीचे बड़ी संख्या में फायर आर्म्स छिपाए गए थे। रोबॉट-स्निफर डॉग्स और मेटल डिटेक्टर की मदद से सीबीआई और एनएसजी के कमांडो ने संदेशखाली से सात हथियार बरामद किए, जिनमें से चार विदेशी आग्नेयास्त्र हैं। शेष देशी पिस्तौल हैं। 228 राउंड कारतूस मिले, बरामद सभी बम स्वदेशी हैं।
यह तो एक तृणमूल कांग्रेस नेता के करीबी के यहां मिला है, यदि सभी के यहां ठीक से जांच हो जाए तो पता नहीं बारूद का कितना बड़ा जखीरा और आग्नेयास्त्र संपूर्ण पश्चिम बंगाल से बरामद होंगे । जिसे देखते हुए आज यहां हर व्यक्ति पर जीवन का संकट मंडरा रहा है। पता नहीं कब कौन, कहां शिकार हो जाए और कब बम की चपेट में आ जाए? ऐसे में कहना होगा कि लोकतंत्र की हत्या वास्तव में कहीं होते देखना है तो आप वर्तमान में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में हिंसा ग्रस्त बंगाल को देख सकते हैं।
क्या यह पहली बार है जो बंगाल में हथियार बरामद हो रहे हैं? क्या पहले भी सीबीआई या अन्य किसी केंद्रीय जांच एजेंसी ने यहां आकर हथियार रख दिए थे? जो ममता दीदी खुलेआम मंच से कह रही हैं कि तृणमूल व राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए बरामद वस्तुएं (हथियार) केंद्रीय एजेंसी सीबीआई के अधिकारियों द्वारा लाई हो सकती हैं। बंगाल में पटाखा भी फूटता है तो एनआईए, सीबीआई और एनएसजी जांच करने आ जाती है। ऐसा लगता है कि युद्ध चल रहा है।
वास्तव में ममता दीदी ऐसा बोलकर लोगों को भ्रमित कर देना चाहती हैं, साथ ही उनका विश्वास केंद्रीय एजेंसियों से पूरी तरह से उठा देना चाहती हैं। किंतु पश्चिम बंगाल की जनता को अपनी मुख्यमंत्री से पूछना चाहिए कि आखिर उनकी क्या मजबूरी है जो वे 2022 के भूपतिनगर विस्फोट मामले के आरोपितों को बचाती रही हैं। वह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारियों को फंसाने की कोशिश करती क्यों नजर आती हैं? केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस घटना के बारे में बोला भी कि “वहां एक विस्फोट हुआ था। क्या ब्लास्ट के आरोपितों पर कार्रवाई जरूरी नहीं? लेकिन जब एनआईए अधिकारियों ने मामले की जांच शुरू की और उन पर हमला किया गया, तो मुख्यमंत्री केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों पर मामला दर्ज कर जांच अधिकारी को फंसाने का प्रयास कर रही हैं।”
जिस ब्लास्ट की जांच करने राष्ट्रीय जांच एजेंसी पहुंची थी उसे ममता बनर्जी ने पटाखे फोड़ने की घटना बताया। साथ ही एनआईए पर गंभीर आरोप लगते हुए अजीबो-गरीब टिपण्णी भी कर दी थी। ममता ने आरोप लगाया था कि पूर्व मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर इलाके में ग्रामीणों ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के अधिकारियों पर हमला नहीं किया, बल्कि एनआईए के अधिकारियों ने उनपर (ग्रामीणों पर) हमला किया था । क्या ममता दीदी का यह बयान केंद्रीय जांच एजेंसी के संदर्भ में उचित ठहराया जा सकता है? इस घटना का पूरा संदर्भ यह है कि 2022 में भूपतिनगर में बम धमाका हुआ था जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी। बाद में कोर्ट के आदेश पर घटना की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी।
रामनवमी वाले दिन शोभा यात्राओं पर मुर्शिदाबाद के दो इलाकों में पथराव और आगजनी हुई थी। मुर्शिदाबाद में रामनवमी के दौरान हुए दंगों की एनआईए जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई, ऐसे में जनता को ममता से पूछना ही चाहिए कि पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के मतदान से पहले राज्य के मुर्शिदाबाद इलाके में जारी हिंसा और अनियंत्रित घटनाओं को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी क्यों की? क्यों हर साल राम नवमी के दिन भी शोभा यात्राओं को इस्लामपंथियों द्वारा टार्गेट किया जाता है?
दरअसल, यहां रामनवमी पर राज्य भर में गांव से लेकर शहरों और महानगरों में भव्य रामनवमी शोभायात्राओं का आयोजन किया जाता है। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भी शोभायात्रा का आयोजन किया गया था, लेकिन जैसे ही रामभक्तों का जत्था मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र से गुजर रहा था तभी अचानक से मकानों की छतों से पत्थरों की बरसात होना शुरू हो गई। जिससे शोभायात्रा में शामिल कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए। पथराव एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया था। जिससे रामभक्तों को संभलने का मौका तक नहीं मिला। कई जगह तो पत्थरों के साथ देशी बम भी राम भक्तों पर फेंके गए। जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हैं। इसलिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम को आखिर कहना ही पड़ा, “जहां लोग आठ घंटे तक शांति से अपना त्योहार नहीं मना सकते, वहां इस वक्त वोट देने की कोई जरूरत नहीं है।”
यहां भी ममता की हद यह है कि वह उलटा रामनवमी के मौके पर हुई हिंसा के लिए भाजपा को ही जिम्मेदार ठहरा रही है और कह रही हैं कि हिंसा उसी ने भड़काई थी। रामनवमी के कार्यक्रमों और शोभा यात्राओं को उपद्रवियों द्वारा इस साल निशाना बनाए जाने का यह क्या पहला मामला है ? आप देखेंगे, ममता के राज में हर साल इस तरह की घटनाएं घट रही हैं। पिछले साल भी जिहादियों द्वारा न केवल पत्थरबाजी की गई बल्कि आगजनी तक की घटनाओं को अंजाम दिया गया। इन घटनाओं में दर्जनों रामभक्तों के घायल हुए थे। जिसमें कि बांकुड़ा और हावड़ा में जमकर हुए उपद्रव देश भर में चर्चा के विषय रहे । बीरभूम नरसंहार को लेकर विपक्ष लगातार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमलावर रहा है। यहां भाजपा को तो छोड़िए, कांग्रेस भी इस मुद्दे पर राज्य में ममता दीदी को लगातार घेरती आई है।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला सही कहते हैं कि आज यह देखकर बहुत दुख होता है कि प. बंगाल में ममता बनर्जी के राज में कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। आज टीएमसी का मतलब ‘आतंकवाद, माफिया, भ्रष्टाचार’ हो गया है। इस टीएमसी सरकार में बंगाल में कानून व्यवस्था हर दिन बिगड़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल में भय का ऐसा माहौल बना हुआ है कि केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर यहां ‘मां माटी और मानुष’ कैसे सुरक्षित होंगे?
देखा जाए तो आज इस तरह की अनेक घटनाएं हमारे सामने हैं जोकि पिछले दिनों में पश्चिम बंगाल में घटी हैं, लेकिन ममता दीदी उनकी जिम्मेदारी लेने के बजाय उलटे इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार और राजनीतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराकर बच निकलना चाहती हैं, लेकिन वे भूल जाती हैं कि जनता सब देख रही है, उनकी तुष्टिकरण की राजनीति अब और अधिक दिन चलनेवाली नहीं है। अच्छा हो ममता दीदी अपनी इस नकारात्मक सोच से बाहर निकलें ।