अशोक भाटिया
देश की सत्ता पर सबसे अधिक समय तक कायम रहने वाली और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में अब तक के चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने चुनावी इतिहास में सबसे कम सिर्फ 44 सांसद लोकसभा में भेजने वाली कांग्रेस पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में 350 से कम लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।कांग्रेस ने अब तक 266 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पार्टी इस लोकसभा चुनाव में कुल 330 से 340 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस पहली बार 400 से कम लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
भारत में हुए पहले लोकसभा चुनाव 1951-52 से लेकर साल 2019 तक हुए सत्रह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कभी भी 400 से कम लोकसभा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी। कांग्रेस ने अब तक सबसे कम सीटों पर लोकसभा का चुनाव 2004 में लड़ा था, जब पार्टी ने कुल 417 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 440, 2014 के लोकसभा चुनाव में 463, 2019 के लोकसभा चुनाव में 421 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था।कांग्रेस ने पिछले 17 लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक उम्मीदवार 1996 के लोकसभा चुनाव में उतारा था, तब कांग्रेस की तरफ से 529 प्रत्याशी चुनाव मैदान में कांग्रेस ने उतारे थे।
भाजपा सत्ता की हैट्रिक लगाने के साथ-साथ 370 सीटें जीतने का टारगेट सेट किया है, तो प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए गठबंधन के लिए ‘अबकी बार 400 पार’ का लक्ष्य तय किया है। भाजपा दोनों टारगेट को पूरा करने के लिए अपने गठबंधन के सियासी कुनबा बढ़ाने के साथ-साथ विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं को भी अपने पाले में करने में जुटी है। भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के अगुवाई में फुल कॉन्फिडेंस में नजर आ रही है, जबकि 2024 का चुनाव कांग्रेस के लिए सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए है।
कांग्रेस 2014 और 2019 का चुनाव बुरी तरह हार चुकी है और अब 2024 का चुनाव उसके लिए करो या मरो से कम नहीं है। ऐसे में भाजपा से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने तमाम विपक्षी दलों के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन का गठन किया, जिसका पहिया चुनाव से पहले ही पंचर हो गया। 2024 के रणभूमि में उतरने से पहले ही इंडिया गठबंधन से कई दलों ने किनारा कर लिया है। विपक्षी गठबंधन के शिल्पकार रहे नीतीश कुमार अब एनडीए के साथ हैं, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी एकला चलो की राह पर कदम बढ़ा चुकी हैं। इस तरह विपक्षी इंडिया गठबंधन अभी भी अपनी उलझन को सुलझाने में जुटा है, लेकिन वो सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा है।
भाजपा का कहना है कि इस बार कांग्रेस 40 के आंकड़े को भी नहीं छूने वाली है। भाजपा ही नहीं इंडिया गठबंधन से अलग होने के बात ममता बनर्जी भी कांग्रेस के लिए ऐसी ही बात कह चुकी हैं। ऐसे में समझते हैं कि आजादी के बाद कब-कब मुख्य विपक्ष दल को 50 से कम सीटें मिली हैं और क्या 2024 में वास्तव में कांग्रेस 40 सीट पार नहीं कर सकेगी?
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्यवाणी की थी कि कांग्रेस 40 सीट का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी। इंडिया गठबंधन से ममता बनर्जी हाल ही में अलग हुई हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत फरवरी में ही बता दिया था कि बंगाल से आपको चुनौती ममता बनर्जी से मिलने जा रही है, ऐसे में कांग्रेस 40 का आंकड़ा छू भी नहीं पाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘प्रार्थना करता हूं कि कांग्रेस 40 सीटों पर जीत हासिल कर ले।’
प्रधानमंत्री मोदी की तरह ही ममता बनर्जी कांग्रेस को 40 पार करने की चुनौती दे चुकीहैं। उन्होंने मुर्शिदाबाद में एक जनसभा में कहा था कि उन्होंने कांग्रेस को कांग्रेस 300 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, जिसको कांग्रेस ने सिरे से खारिज कर दिया। अब मुझे संदेह हो गया है कि 2024 में कांग्रेस क्या 40 सीटें भी जीत पाएंगी?
कांग्रेस 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इतनी भी सीटें देश भर में नहीं जीत सकी थी कि संसद में नेता प्रतिपक्ष बना सके। कांग्रेस 2014 में 44 तो 2019 में 52 सीट पर सिमट गई थी। कांग्रेस के सामने अब तीसरी बार चुनौती खड़ी है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और ममता ने जिस तरह से भविष्यवाणी करने का काम किया है, उससे लेकर सियासी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या 2024 के चुनाव में कांग्रेस 40 सीटें भी नहीं जीत सकेगी?
मुख्य विपक्षी दल को लोकसभा चुनाव में कब-कब 50 से नीचे सीटें मिली हैं? आजादी के बाद से देश में अब-तक 17 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं और दिलचस्प बात ये है कि लगभग आधी बार यानी 8 दफा मुख्य विपक्षी पार्टी 50 से नीचे सीटों पर सिमट गई। अब तक के इतिहास में कांग्रेस महज एक बार 50 सीट क्रॉस नहीं कर सकी, वो भी 2014 के लोकसभा चुनाव में। आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की स्थिति इतनी खराब नहीं थी, जिस तरह से आज के समय है।
पहली बार लोकसभा चुनाव 1952 में हुए थे। कांग्रेस पार्टी को 364 सीटें मिली थीं और मुख्य विपक्षी पार्टी सीपीआई को मात्र 16 सीटें मिली थीं। 1957 में कांग्रेस ने 371 सीटों पर जीत दर्ज की थी और सीपीआई को 27 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले उसे 11 सीटों का फायदा हुआ था। साल 1962 में कांग्रेस को 361 सीटें और सीपीआई को 29 सीटें मिली थीं। इसके बाद 1967 में कांग्रेस की सीटें घटकर 283 हो गई थीं, लेकिन उसे जीत जरूर मिल गई थी और बहुमत का आंकड़ा छू लिया था, जबकि मुख्य विपक्षी दल स्वतंत्र पार्टी बनी, लेकिन महज उसे 44 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
साल 1971 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा बढ़त हासिल करते हुए 352 सीटों पर जीत दर्ज की थी और मुख्य विपक्षी पार्टी सीप्रधानमंत्री 25 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, 1980 में कांग्रेस को 351 और विपक्ष जनता पार्टी (सेक्युलर) को 41 सीटें मिली थीं और 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की थी। इस बार उसे सबसे ज्यादा 404 सीटों पर विजय पताका फहराने का मौका मिला था और मुख्य विपक्षी पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) बनकर उभरी थी। उसे 30 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
हालांकि 2014 के चुनाव में मोदी लहर आई और कांग्रेस हवा हो गई। मोदी लहर में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई और ये आजादी के बाद उसकी सबसे बड़ी हार थी। 2009 में 206 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 44 सीटों पर ही सिकुड़ गई। भाजपा पूर्ण बहुमत हासिल करते हुए 282 सीटों पर अपना परचम लहराया। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 50 सीटों का आंकड़ा पार किया, लेकिन 52 सीट पर ही रुक गई। कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हार रही है और भाजपा लगातार दो चुनाव जीत चुकी है और अब सत्ता की हैट्रिक लगाने की जुगत में है।
अब कांग्रेस के सामने चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी के केंद्रीय राजनीति में दखल बढ़ने के बाद से कांग्रेस उभर नहीं पा रही है। 2024 में भाजपा से मुकाबले के लिए हर एक समझौता भी कर रही है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू है, उससे लोकसभा चुनाव की राह और भी मुश्किल होती जा रहा है। उत्तर भारत में हिमाचल छोड़कर किसी दूसरे राज्य में उसकी सरकार नहीं है। यूपी और बिहार की सत्ता से 90 के दशक से बाहर है।
बता दें कि पिछले पांच साल के चुनावों पर नजर डालें तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर भारत के चार राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में थी। लेकिन एक-एक करके सारे राज्य छिन गए। मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं की बगावत से सरकार गई और बाकी राज्यों में चुनाव हार गई। मध्य प्रदेश में इस बार और भी बुरी स्थिति रही।
2019 में कांग्रेस दिल्ली, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर हिमाचल, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा में खाता भी नहीं खोल सकी थी। 2014 में भी लगभग यही स्थिति थी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, एमपी, बिहार में कांग्रेस को एक-एक सीट मिली थी, जबकि छत्तीसगढ़ में दो लोकसभा सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा उत्तर भारत में काफी मजबूत स्थिति में खड़ी नजर आ रही है। ऐसे में उत्तर भारत में कांग्रेस का धीरे-धीरे सिमटना उनके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है।
दक्षिण के राज्यों में भले ही कांग्रेस अपना दायरा बढ़ा रही हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत जीते बिना काम नहीं चलेगा इसलिए कांग्रेस उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत के राज्यों पर फोकस कर रही है। कांग्रेस उत्तर भारत में कमजोर स्थिति में है, जिसके चलते सहयोगी दलों के बैसाखी के सहारे चुनावी मैदान में उतर रही है। उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में कांग्रेस खुद को ज्यादा मजबूत मान रही। तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की अपने दम पर सरकार है, जबकि तमिलनाडु में सरकार में भागीदार है। राहुल गांधी ने केरल को अपना सियासी ठिकाना बना रखा है। इस तरह कांग्रेस की कोशिश दक्षिण से अपनी सीटें बढ़ानी हैं, लेकिन भाजपा भी दक्षिण पर फोकस कर रही है और अपना सियासी कुनबा भी बढ़ा रही है। अब देखना है कि 2024 में कांग्रेस क्या 50 के पार होगी या फिर 40 सीटों पर सिमट जाएगी?