हमीरपुर : आजादी के संघर्ष के महत्व के मद्देनजर वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे कस्बा सुमेरपुर में विमर्श विविधा के अन्तर्गत जिनका देश ऋणी है के तहत समाज सुधार और शिक्षोन्नति के नायक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयन्ती पर संस्था के अध्यक्ष डा. भवानीदीन ने नमन करते हुये कहा कि ज्योतिबाफुले सही अर्थों मे समाज सुधार और शैक्षिक विकास के अग्रदूत थे। इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। इनका जन्म 11अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे मे ज्योतिराव फुले और चिमनाबाई के घर हुआ था। ये प्रारंभ से ही क्रातिधर्मी थे। 13 वर्ष की उम्र मे इनकी शादी सावित्रीबाई फुले से हुई। जिनके सहयोग से 1848 में महाराष्ट्र मे स्त्री शिक्षा के विकास के लिए पहला विद्यालय खोला गया। पढाने के लिए महिला शिक्षिका न होने पर ज्योतिबा ने खुद सावित्रीबाई को शिक्षित किया।
इस तरह सावित्रीबाई देश की पहली महिला शिक्षिका बनी। पति-पत्नी दोनों ने उस समय के अनेक सामाजिक तानों, अपमानों एवं बाधाओं का सामना करते हुए दलितों एवं वंचितों के समग्र विकास के लिये काम किया। 1873 में महाराष्ट्र मे सत्यशोधक समाज की स्थापना कर समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा की आवश्यकता बतायी। ये बाल विवाह के विरोधी और विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे। इन्होंने गुलामगिरी नामक कृति सहित कई पुस्तकें लिखीं। इनकी सामाजिक सेवा की देश भर मे प्रशंसा होने के फलस्वरूप मुंबई की एक विशाल सभा मे 1888 मे विट्ठलराव वंडेकर ने फुले को महात्मा की उपाधि से नवाजा। कालांतर मे 28 नवम्बर 1890 को ज्योतिबाफुले का निधन हो गया। कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्त एडवोकेट, दिलीप अवस्थी, पंकज सिंह, संतोष, प्रेम, प्रिन्स, सिद्धा, मुकेश राहुल सोनी, रिचा, अजय गुप्ता और दस्सी आदि शामिल रहे।