कानपुर। कोविड के समय में घरों में रहने का सबसे ज्यादा असर बच्चों की आंखों में पड़ा है। कोरोना काल से पहले मायोपिया यानी दूर देखने की समस्या से जूझ रहे बच्चों का प्रतिशत करीब दस था। जो बढ़कर 40 से ज्यादा हो गया था।
स्क्रीन टाइम की अधिकता के कारण पहले दस वर्ष से अधिक के बच्चों में चश्मा लगता था। जो अब चार वर्ष तक के बच्चों में तेजी से बढ़ा है।
कानपुर आफ्थेल्मिक सोसाइटी की ओर से रविवार आयोजित यूपी स्टेट जोनल और पीजी शिक्षण कार्यक्रम में यूपीएसओएस की महासचिव डॉ. मोहिता शर्मा ने कहा कि अधिक स्क्रीन टाइम होने से आंख का नंबर बढ़ रहा है। जो आंख के पर्दे को क्षतिग्रस्त भी कर रहा है। जिसको चश्मा और दवाओं से ही रोका जा सकता है।
बचाव के उपाय
बचाव के लिए बच्चों को मोबाइल से दूर करकर खुले मैदान में खेलने की आदत डलवाएं। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आए नागपुर के डॉ. प्रशांत बावनकुले ने कहा कि ड्राई आई वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या बन रहा है। जो आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ बुजुर्गों में होता था, अब बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं। हालांकि कुछ चीजों में बदलाव कर इससे बचा जा सकता है।
कार्यक्रम में देश के जाने-माने नेत्र रोग विशेषज्ञों ने भविष्य के डॉक्टरों को नेत्र रोग के इलाज में कारगर जांच व नई तकनीक के बारे में बताया। उप्र के करीब 150 नेत्र सर्जन इसमें शामिल हुए। इस दौरान कानपुर आफ्थेल्मिक सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. सोनिया दमेले, सचिव डॉ. पारुल सिंह, डॉ. मलय चतुर्वेदी, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. शालिनी मोहन, डॉ. विनोद राय, डॉ. दीपक मिश्रा आदि उपस्थित रहे।