“राहुल गांधी की नई सियासी बिसात: लालू के समधी की छुट्टी, शरद समर्थक को सौंपी कमान”

गुजरात के अहमदाबाद में दो दिन चिंतन-मंथन करने के बाद कांग्रेस ने आगे बढ़ने की सियासी दशा और दिशा तय कर ली है. राहुल गांधी के सामाजिक न्याय की राह पर चलकर कांग्रेस ने खुद को मजबूत करने का फैसला किया है. राहुल की सामाजिक न्याय वाली सियासी प्रयोगशाला की पहली नियुक्ति अनिल यादव जयहिंद के रूप में हुई है. कांग्रेस ने लालू यादव के समधी कैप्टन अजय सिंह यादव को पार्टी के ओबीसी डिपार्टमेंट के राष्ट्रीय चेयरमैन पद से हटाकर शरद यादव के शागिर्द रहे अनिल जयहिंद को कमान सौंप दी है.

कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने गुरुवार को जानकारी दी कि कि डॉ. अनिल जयहिंद (यादव) को कैप्टन अजय यादव की जगह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ओबीसी विंग का अध्यक्ष नियुक्त गया है. अजय यादव और अनिल जयहिंद एक ही यादव समाज से आते हैं और दोनों ही नेता हरियाणा के रहने वाले हैं. ओबीसी में सबसे बड़ी संख्या यादव समुदाय की है. अनिल जयहिंद जरूर यादव समाज से हैं, लेकिन मुख्यधारा की राजनीति करने के बजाय सेमीनार वाली पॉलिटिक्स करते रहे हैं.

अजय यादव की जगह अनिल जयहिंद
कैप्टन अजय यादव हरियाणा के दिग्गज नेता माने जाते हैं और तीन सालों से कांग्रेस के ओबीसी विभाग की बागडोर संभाल रहे थे. अजय यादव के बेटे चिरंजीवी राव की शादी आरजेडी के प्रमुख और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की बेटी के साथ हुई है. इस तरह लालू यादव के समधी अजय यादव हैं. कांग्रेस ने लालू के समधी के हाथों से ओबीसी विभाग की जिम्मेदारी लेकर अनिल यादव जयहिंद को सौंप दी है.

कांग्रेस ओबीसी विभाग से हटाए जाने के बाद अजय सिंह यादव भड़क गए हैं और नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि मुझे कांग्रेस अध्यक्ष ने बिना किसी औपचारिकता के अध्यक्ष पद से हटा दिया है. यह मुझे अपमानित करने के लिए एक गुट द्वारा रची गई साजिश है. मैंने अपने 40 साल के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, क्योंकि मैंने पहले ही इस्तीफा दे दिया था, लेकिन राहुल गांधी जी के निजी सचिव कौशल विद्यार्थी के कहने पर इस्तीफा वापस ले लिया था. अब मुझे विश्वास में लिए बगैर हटा दिया गया है और अनिल जयहिंद की नियुक्त कर दी गई है.

राहुल की सियासी प्रयोग की पहली नियुक्त
डॉ. अनिल जयहिंद को कांग्रेस ओबीसी विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के करीबी अनिल जयहिंद माने जाते हैं. राहुल के सामाजिक न्याय की राजनीति में जयहिंद का अहम रोल है. राहुल गांधी इन दिनों जिन सामाजिक न्याय के मुद्दे पर होने वाले सेमीनार और सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं, उसके पीछे अनिल जयहिंद का रोल है. देश में दलित, ओबीसी और आदिवासी की राजनीति, आरक्षण की लिमिट को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाने और जातीय जनगणना कराने जैसे मुद्दे पर राहुल गांधी मुखर है.

अनिल यादव जयहिंद शुरू से ही सामाजिक न्याय की राजनीति करते रहे हैं, जिसे देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें ओबीसी विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है. जयहिंद ने डॉक्टरी पेशे को छोड़कर सामाजिक न्याय की राह पर कदम बढ़ाया. ओबीसी के आरक्षण के शिल्पकार रहे बीपी मंडल और शरद यदव जैसे लोगों के साथ अनिल जयहिंद ने काम किया. शरद यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले जयहिंद कई ऐतिहासिक महत्व की किताब लिखने और अनुवाद करने के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई में लगातार सक्रिय रहे.

‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले संविधान की रक्षा विषय पर होने वाले सेमीनार के पीछे अनिल यादव हैं. अनिल जयहिंद परदे के पीछे रहकर कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे. यही नहीं राजेन्द्र पाल गौतम, डॉ. जगदीश प्रसाद, फ्रैंक हुजूर , अली अनवर , प्रो. रतनलाल इत्यादि दलित-ओबीसी नेता और बौद्धिकों को कांग्रेस के साथ जोड़ने का काम अनिल जयहिंद ने किया है. ऐसे में राहुल गांधी ने अपने सामाजिक न्याय वाली सियासी प्रयोग से पहली नियुक्ति कांग्रेस संगठन में की है.

राहुल की उम्मीद पर कितने खरे उतरेंगे
अनिल यादव जयहिंद के सामाजिक न्याय की राजनीति को देखते हुए कांग्रेस ओबीसी विभाग का चेयरमैन बनाया गया है, लेकिन सवाल यही है कि क्या सेमीनार और सम्मेलन से बाहर कांग्रेस के साथ ओबीसी समाज को जोड़ पाएंगे. कांग्रेस का परंपरागत वोटर ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित रहा है, लेकिन राहुल गांधी ने ओबीसी पर फोकस करने की बात अहमदाबाद सम्मेलन में कही है. इस तरह अनिल यादव जयहिंद के कंधों पर ओबीसी समाज को जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. जयहिंद कभी भी मुख्यधारा की राजनीति नहीं करते रहे हैं और न ही उन्हें संगठन का कोई सियासी अनुभव है. ऐसे में ओबीसी को कैसे अपने साथ जोड़ पाएंगे और आगे बढ़ेंगे.

कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से ओबीसी काफी अहम हैं, जिसके चलते ही राहुल गांधी ने अपना पूरा फोकस ओबीसी पर करने का प्लान बनाया है. मंडल कमीशन के लिहाज से देखें तो करीब 52 फीसदी ओबीसी समुदाय, 16.6 फीसदी दलित और 8.6 फीसदी आदिवासी समुदाय है. देश में करीब 75 फीसदी तीनों की आबादी है, जिस पर कांग्रेस की नजर है. इसके अलावा 14 फीसदी के करीब मुस्लिम हैं, जिसमें ओबीसी और सवर्ण दोनों ही मुस्लिम शामिल हैं. इस तरह से कांग्रेस सामाजिक न्याय के सहारे उन्हें अपने साथ जोड़ने की कवायद में है, जिसके लिए पार्टी ने ओबीसी को जोड़ने का जिम्मा अनिल जयहिंद को सौंपा है.

कांग्रेस से ओबीसी को जोड़ना आसान नहीं
आजादी के बाद से कांग्रेस की पूरी सियासत उच्च जातियों और गरीबों के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण हुआ करता था. कांग्रेस इन्हीं जातीय समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करती रही है. इसके चलते ही कांग्रेस को पिछड़े वर्ग और आरक्षण का विरोधी माना जाता रहा है और बार-बार राजीव गांधी के दिए उस भाषण का भी हवाला दिया जाता है, जिसमें उन्होंने लोकसभा में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का विरोध किया था.

मंडल कमीशन के बाद देश की सियासत ही पूरी तरह से बदल गई और ओबीसी आधारित राजनीति करने वाले नेता उभरे, जिनमें मुलायम सिंह यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे मजबूत क्षत्रप रहे. कांग्रेस के विरोध में सपा से लेकर आरजेडी और बसपा तक बनी, जिनका सियासी एजेंडा सामाजिक न्याय ही रहा है. ओबीसी में यादव की सबसे बड़ी आबादी है, लेकिन गैर-यादव ओबीसी जातियां यादव समाज के साथ संतुलन बनाकर नहीं चल पाती हैं. यूपी और बिहार में यादव और गैर-यादव ओबीसी की सियासत जगजाहिर है.

कांग्रेस ने जरूर कैप्टन अजय यादव को हटाकर भले ही अनिल जयहिंद को पार्टी के ओबीसी विभाग की जिम्मेदारी सौंप दी है, लेकिन समस्या गैर-यादव ओबीसी के विश्वास को जीतने की है. अनिल जयहिंद यादव के साथ गैर-यादव ओबीसी कितना विश्वास कांग्रेस के प्रति दिखा पाएगा, ये कहना मुश्किल हैं. हालांकि, सामाजिक न्याय के मुद्दे पर तमाम बौद्धिक लोगों को जोड़ने में जरूर कामयाब रहे हैं, लेकिन सियासी जमीन पर आसान नहीं है.

 

 

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