Aligarh News : पांच हजार से खोली थी ऑटो पार्ट्स की दुकान,आज हुआ इतने का फायदा..

यह कहानी एक प्रेरणादायक उद्यमी की है, जिसने अपनी कड़ी मेहनत और संकल्प से एक छोटे से व्यवसाय को बड़ा बना दिया। शुरुआत में पाँच हजार रुपये से ऑटो पार्ट्स की एक दुकान खोलने वाला व्यक्ति आज 50 करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल कर चुका है। इस सफर में उस व्यक्ति ने कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और व्यापार की समझ से उसे सफलता मिली।

शुरुआत:

वह उद्यमी शुरुआत में बहुत साधारण स्थिति में था, और उसके पास व्यवसाय शुरू करने के लिए केवल 5,000 रुपये थे। उसने अपनी छोटी सी दुकान में ऑटो पार्ट्स बेचना शुरू किया, और इसके लिए स्थानीय बाजार से संपर्क किया। धीरे-धीरे उसने अपने ग्राहक आधार को बढ़ाया और व्यवसाय की समझ विकसित की।

संघर्ष और कड़ी मेहनत:

व्यवसाय की शुरुआत में वह दिन-रात मेहनत करता था, अपने ग्राहकों को अच्छे से सर्विस देने और उत्पाद की गुणवत्ता को बनाए रखने में यकीन करता था। समय के साथ, वह अपने नेटवर्क को बढ़ाने में सफल रहा और धीरे-धीरे ऑटो पार्ट्स की डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क में भी अपना नाम बना लिया।

विस्तार और सफलता:

धीरे-धीरे उसके व्यवसाय में विस्तार हुआ। वह केवल एक छोटे से स्टोर से बड़ा व्यापारी बन गया। उसकी कंपनी ने गुणवत्ता, समय पर डिलीवरी और उचित मूल्य के कारण ग्राहकों का विश्वास जीता। इसके बाद उसने ऑटो पार्ट्स के और भी उत्पाद शामिल किए और बड़े बाजारों में अपनी उपस्थिति दर्ज की। आज उसकी कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है।

क्या रहा सफलता का राज?

व्यवसाय शुरू करने के बाद भी उसने कभी हार नहीं मानी और लगातार मेहनत की। उसने हमेशा अपने उत्पाद की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी, जिससे ग्राहक संतुष्ट होते गए।समय के साथ उसने सही निर्णय लिए, नए उत्पादों को जोड़ा और व्यावासिक दृष्टिकोण से हमेशा नए अवसरों को पहचाना।ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री में नवीनतम तकनीकों को अपनाने से उसने व्यवसाय को प्रतिस्पर्धा से आगे रखा। यह कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर इंसान में आत्मविश्वास, मेहनत और सही दिशा में सोचने की क्षमता हो, तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। 5,000 रुपये से शुरू होकर 50 करोड़ रुपये के टर्नओवर तक का सफर कई उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है।

यह कहानी एक उद्यमिता की यात्रा है, जिसमें संघर्ष, मेहनत और सही दिशा में निर्णय लेने से सफलता मिली। 1975 में जट्टारी (जो शायद एक छोटे शहर या गांव का नाम है) में एक साधारण सी ऑटो पार्ट्स की दुकान खोलने वाला व्यक्ति आज सफल बिजनेस मैन बन चुका है। शुरुआत में इसने काफी संघर्ष किया, लेकिन धीरे-धीरे काम चला और फिर यह अपने व्यापार में सफलता हासिल करने में सफल हुआ।

शुरुआत और संघर्ष:

इस व्यक्ति ने खराद और कुटी मशीन के काम से शुरुआत की थी, जो उस समय के लिए एक कठिन और मेहनत भरा कार्य था। मशीनों के काम में भी मेहनत और वक्त लगता था, लेकिन यह उसे व्यापार की बुनियादी समझ दे रहा था। धीरे-धीरे उसे यह महसूस हुआ कि वह ऑटो पार्ट्स का कारोबार शुरू करके ज्यादा मुनाफा कमा सकता है, और 1975 में जट्टारी में उसने ऑटो पार्ट्स की दुकान खोल ली।

शुरुआत में यह कारोबार आसान नहीं था। जैसे कि किसी भी नए व्यवसाय में शुरुआती दौर में बहुत संघर्ष होता है, ठीक वैसे ही इसे भी ग्राहक और सप्लाई चेन की समस्या का सामना करना पड़ा। लेकिन उसने हार मानने के बजाय कड़ी मेहनत की, और धीरे-धीरे ग्राहक उसका भरोसा बनाने लगे।

सफलता और व्यापार का विस्तार:

दुकान चल निकली और उसे बाजार में पहचान मिलने लगी। जब काम ठीक से चलने लगा और व्यापार में रफ्तार आई, तो उसने अपने परिवार के दादा के नाम पर “कुंदन टॉकीज सिनेमा हॉल” खोला। यह कदम व्यापार के विस्तार और अपने समुदाय में एक नया पहलू जोड़ने के रूप में देखा जा सकता है। सिनेमा हॉल खोलने से न केवल व्यापार में बढ़ोतरी हुई, बल्कि क्षेत्र में लोगों के मनोरंजन के लिए भी एक नई सुविधा उपलब्ध हुई।

सफलता का राज:

शुरुआती संघर्ष के बावजूद, उसने अपनी मेहनत, लगन, और सही फैसलों के साथ अपने व्यवसाय को सफल बनाया।जब ऑटो पार्ट्स की दुकान चल पड़ी, तो उसने अपने दादा के नाम पर सिनेमा हॉल खोलकर व्यवसाय को और भी विस्तार दिया। पुराने काम से शुरुआत करने के बाद नए कारोबार में प्रवेश करने का साहस और उस क्षेत्र की समझ ने उसकी सफलता को और आसान बना दिया।

सुधीर गोयल कहते हैं कि यहां तक का सफर इतना आसना नहीं था। आज उनके पास महिंद्रा, विक्रम, थ्रीव्हीर्ल्स, ईवी और ऑटोमोबाइल्स का पूरा साम्राज्य है। सन 1974 के आसपास एक वक्त था जब उनके घर में दो रुपये भी आ जाते थे तो लगता था कि बहुत कुछ आ गया है। बहुत कठिन दौर था। सरकार ने सब कुछ ले लिया था। बुआ की शादी की तो पास का पैसा भी गया। इसके बाद हालात मुश्किल ही होते गए।

टर्निंग प्वाइंट
सुधीर गोयल कहते हैं कि पिता रमेश चंद्र गोयल ने सन 1975 में जट्टारी में ऑटोपार्ट्स की दुकान खोली थी। शुरुआती संघर्ष के बाद काम चल निकला। इससे पहले खराद और कुटी मशीन के भी काम किए थे। काम कुछ पटरी पर आया तो दादा के नाम पर कुंदन टॉकीज सिनेमा हाल खोला। इसके साथ ही डीएस कॉलेज से सन 1983 में बीकॉम किया।

अगली पीढ़ी को सौंप रहे विरासत
सुधीर गोयल के भाई पंकज गोयल और नीरज गोयल उनके कारोबार में साथ हैं। तीनों भाइयों के बेटे सजल, सक्षम और काव्य कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं। सुधीर गोयल कहते हैं कि पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कि कोई घटनाक्रम एक साथ घटित हो रहा है। वह अपने परिवार में भी इस संघर्ष का अक्सर जिक्र करते हैं जिससे उन्हें सफलता के विषय में कोई भ्रम न रहे। उन्होंने बताया कि उनकी सफलता में ताऊ ओमप्रकाश गोयल का काफी योगदान है।

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