अवध की 17 सीटों पर होगा महामुकाबला,

अवध की शस्य श्यामल धरती पर चुनावी महासमर का एक बड़ा भू-भाग है। सातों पुरियों में सबसे बड़ी अयोध्या। राजधानी लखनऊ। गांधी परिवार का गढ़ रही अमेठी, रायबरेली। अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख का समर क्षेत्र रहा बलरामपुर।

कुल 17 लोकसभा सीटों को समेटे अवध क्षेत्र का चुनावी परिदृश्य सदैव रोचक रहा। यहां दिग्गजों में तलवारें खिंचती रहीं हैं। चुनाव की तिथियों की घोषणा भले ही शनिवार को हुई, लेकिन हलचल बहुत पहले से है। अवध के चुनावी परिदृश्य पर नजर डाल रहे हैं… वरिष्ठ उप समाचार संपादक पवन तिवारी

…2019 में जब नहीं बची कइयों की जमानत

लखनऊ सीट से राजनाथ सिंह सहित कुल 15 प्रत्याशी मैदान में थे, वहीं मोहनलालगंज सीट से 12 प्रत्याशी दावा ठोंक रहे थे। लखनऊ में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी पूनम सिन्हा और कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद कृष्णम् को छोड़कर बाकी 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। मोहनलालगंज में दूसरे स्थान पर रहे गठबंधन से बसपा प्रत्याशी सीएल वर्मा को छोड़ बाकी 10 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।

फैजाबाद

अयोध्या के नाते पूरे विश्व के आकर्षण के केंद्र में है यह सीट। भाजपा का टिकट घोषित नहीं हुआ था, तब तक चर्चा थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहीं यहां से चुनाव न लड़ जाएं। अब स्थिति साफ है। भाजपा से वर्तमान सांसद लल्लू सिंह ही उम्मीदवार हैं।

समाजवादी पार्टी ने यहां मझे हुए नेता पुराने दिग्गज अवधेश प्रसाद को उतारा है। आप फैजाबाद में हैं तो यह बताने की जरूरत नहीं कि प्रचार के मामले में अवधेश प्रसाद अपनी पुरानी शैली के अनुसार बढ़े-चढ़े हुए हैं। शहर से लेकर देहात तक जगह-जगह उनके कार्यालय खुल चुके हैं। कार्यकर्ता सम्मेलन हो रहे हैं। वह खुद जनसंपर्क में जुटे हैं।

बेहद रोचक होगा मुकाबला

बसपा ने अभी यहां से प्रत्याशी की आधिकारिक घोषणा तो नहीं की है, लेकिन अंबेडकरनगर में भाजपा छोड़कर आए सच्चिदानंद पांडेय को लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया है। पांडेय स्वयं को उम्मीदवार मान चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। क्षेत्र में लगे होर्डिंग्स में उनके नाम के आगे बसपा प्रत्याशी लिखा है। कांग्रेस ने सपा से गठबंधन के कारण यहां से अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। यहां चुनाव बड़ा ही रोचक होगा।

पिछले चुनाव में भाजपा के लल्लू सिंह ने सपा उम्मीदवार आनंदसेन यादव को लगभग 65 हजार वोटों से हराया था। इस बार भी अवधेश प्रसाद से उनकी कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है। सोहावल और मिल्कीपुर से कुल नौ बार विधायक रह चुके अवधेश प्रसाद की पकड़ अनुसूचित वर्ग पर तो है ही, यादव और अल्पसंख्यकों में भी उनकी गहरी पैठ है। उन्हें चुनाव प्रबंधन का माहिर खिलाड़ी माना जाता है।

लखनऊ

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की सीट थी। उनके बाद लखनऊ के लोकप्रिय नेता लालजी टंडन की रणभूमि बनी और अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कर्मक्षेत्र है। इस बार भी राजनाथ सिंह ही चुनाव मैदान में हैं।

सपा ने यहां से रविदास मेहरोत्रा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वोट प्रतिशत की बात करें तो राजनाथ सिंह के लिए यह कह सकते हैं कि सपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। पिछले चुनाव में उनको 56 प्रतिशत मत मिले थे जबकि प्रतिद्वंद्वी सपा की पूनम सिन्हा (शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी) को मात्र 25 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था।

लखनऊ जिले की दूसरी लोकसभा सीट मोहनलालगंज से भाजपा के वर्तमान सांसद कौशल किशोर ही उम्मीदवार हैं तो सपा-कांग्रेस गठबंधन से हैं आरके चौधरी। बसपा यहां भी उम्मीदवार घोषित नहीं कर सकी है। यहां भी मुकाबला रोचक होगा।

रायबरेली

अभी तक किसी बड़े दल ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया। सोनिया गांधी की सीट है, लेकिन इस बार सबकी दृष्टि प्रियंका वाड्रा पर है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि एक दो दिन के भीतर रायबरेली से उम्मीदवारी को लेकर कोई घोषणा हो सकती है। भाजपा भी अपनी जमीन यहां लगातार मजबूत कर रही है। संभावित उम्मीदवारों की बात करें तो रायबरेली, लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के कई बड़े नेताओं के नाम हैं।

अंबेडकरनगर

अयोध्या (फैजाबाद) से सटी सीट है। बसपा सांसद रितेश पांडेय ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने पहली ही सूची में उनको अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। रितेश के मुकाबले यहां सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से लालजी वर्मा प्रत्याशी हैं। वह कटेहरी क्षेत्र के विधायक हैं। वर्तमान में विधानसभा की सभी सीटों पर सपा का कब्जा है। रितेश पांडेय के आने से भाजपा निश्चित तौर पर यहां मजबूत स्थिति में पहुंची है।

सुलतानपुर

मेनका गांधी इस समय भाजपा से सांसद हैं। अभी तक सिर्फ सपा ने भीम निषाद को प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं भाजपा ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि मेनका ही लड़ेंगी या कोई और। अन्य दल भी जुगत में हैं कि भाजपा टिकट को लेकर रणनीति सामने लाए तो वे भी अगली चाल चलें।

अमेठी लेबै बदला, देबै खून, भइया बिना अमेठी सून।

गौरीगंज में कांग्रेस कार्यालय के पास लगी यह होर्डिंग…अमेठी के कांग्रेसियों के भावनात्मक जुड़ाव की मूक साक्षी है। भइया यानी राहुल गांधी की वायनाड से उम्मीदवारी घोषित हो चुकी है, लेकिन अमेठी को लेकर पार्टी अभी मौन है। बड़ी मांग है कि राहुल यहां आएं। भाजपा से स्मृति इरानी ही सांसद और फिर उम्मीदवार भी हैं। क्षेत्र में अपनी सक्रियता, दमदार उपस्थिति को अपनी मजबूती मानती हैं।

राहुल गांधी अमेठी से चुनाव नहीं लड़े तब तो मुकाबला एकतरफा होगा। राहुल उतरते हैं तब…डगर आसान नहीं होगी। अमेठी के लोग कहते हैं कि जैसी हवा 2019 में राहुल को लेकर थी, कुछ वैसी ही बयार इस बार स्मृति ईरानी को लेकर है।

जो न समझे वो आगे क्या होगा रामा रे…

सीतापुर के एक नेता जी टिकट की आस में इस दल से उस दल में चक्कर लगा रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा से टिकट की आस में सपा में गए। नगर पालिका चुनाव में टिकट न मिलने पर उन्होंने पत्नी को चुनाव मैदान में उतार दिया। इसके बाद वह लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए कांग्रेसी हो गए। अब यहां भी टिकट पर संकट है। ऐसे में उनके समर्थक कहते सुने जा रहे हैं कि आगे क्या होगा रामा रे…

इनकी भी खूब चर्चा

अवध की इन सीटों के अलावा अन्य जो चर्चित सीटें हैं, उनमें कैसरगंज और खीरी है। कैसरगंज से सांसद हैं भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह। पहलवानों के विवाद के बाद वे खूब चर्चा में रहे। भाजपा ने अभी तक यहां से उम्मीदवार नहीं घोषित किया है। सबकी निगाहें इसी पर हैं कि यहां भाजपा से कौन लड़ेगा?

आइएनडीआइए गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में गई है, लेकिन उम्मीदवार नहीं घोषित है। दूसरी चर्चित सीट है खीरी। यहां से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी सांसद हैं। निघासन कांड से उनका नाम और सुर्खियों में आया था। वह इस बार भी चुनाव लड़ रहे हैं। उनके मुकाबले हैं सपा के उत्कर्ष वर्मा। टेनी के कारण सबकी जिज्ञासा रहेगी कि खीरी से कौन चुना जा रहा?

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