बाराबंकी। दुनियाभर में पहली मई को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1886 में अमेरिका से हुई थी। इस दिन को मई दिवस, कामगार दिवस, श्रम दिवस और श्रमिक दिवस जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन लाखों मजदूरों ने आठ घंटे को लेकर देशव्यापी हड़ताल किया था। अमेरिकी मजदूरों के हड़ताल के बाद से साल 1889 में पेरिस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महासभा की एक बैठक के दौरान अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। प्रस्ताव के पारित होते ही अमेरिका में सिर्फ 8 घंटे काम करने की इजाजत दे दी गई थी। भारत में पहली बार मजदूर दिवस आधिकारिक रूप से पहली मई 1923 को मनाया गया। वर्ष 2023 में सकारात्मक सुरक्षा और हेल्थ कल्चर के निर्माण के लिए मिलकर कार्य करना है। जी हां बताते चलें कि हर साल की तरह 2024 में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की थीम जलवायु परिवर्तन के बीच काम की जगह पर श्रमिकों के स्वास्थय और सुरक्षा को सुनिश्चित करना। विनोद यादव ने बताया कि श्रमिक विपरीत परिस्थितियों में श्रम के माध्यम से अपनी पहचान बनाता है, वह श्रमिक ही है, जो सुई से लेकर जहाज तक बनाता है, झोपड़ी से लेकर बेशकीमती इमारतें महल, विधान भवन और संसद भी बनाता है, गांव की चकरोड से लेकर एक्सप्रेस वे एवं हाईवे भी बनाता है, यानी श्रमिक सृजनहार है, निर्माता है और विश्व का भाग्य विधाता भी है। श्रमिक समाज व श्रम शक्ति को कोटिशः नमन करता हूँ। चित्रकार व कवि ध्यान सिंह चिंतन ने कहा कि वक्त के हाथ बेबस है मजबूर है, बीवी बच्चों से अपने बहुत दूर है, रीढ़ की हड्डी है, राष्ट्र निर्माण की, उसकी पहचान बस एक मजदूर है। राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले सभी निर्माण श्रमिकों को बहुत बहुत बधाई। उक्त बातें समाजसेविका नेहा मौर्या ने कही।